भारतीय लोकतंत्र मे दीपावली के मौके पर हर कोई चकाचौंध के जरिए लक्ष्मी माता की कृपा पाना चाह रहा है। हर कोई रोशनी करके लक्ष्मी मां का आह्वान कर रहा है लेकिन उल्लुओं को अंधकार पक्ष रास आ रहा है। वो चाह रहे हैं कि अंधकार बढ़ता रहे और उनकी संख्या और सेहत बढ़ती रहे। भारतीय लोकतंत्र की विडंबना ही है यहां हर शाख पे उल्लु बैठा है और उल्लुओं का लक्ष्मी मां से लगाव जगजाहिर है। देश को चलाने वाले और संभालने वाले हाथ इन उल्लुओं से इस कदर प्रेरित हो गए हैं कि हर जगह उल्लु नजर आ रहा है। सत्ता के गलियारों में उल्लुओं के बीच गठजोड़ हो रहा है, सरकारी कार्यालयों में उल्लु मेज पर बैठे बड़े बड़े फैसले कर रहे है और पुलिस दफ्तरों में उल्लु बदमाशों से सांठ गांठ कर रहे हैं। यानी उल्लु होना फायदे का सौदा है। इस दीपावली भी ये सभी प्रतिनिधि उल्लु लक्ष्मी मां का आह्वान करते हुए प्रार्थना करेंगे कि देश की जनता इसी तरह उल्लु बनती रहे और देश का बंटाधार करके हम जैसों का उल्लु सीधा होता रहे।
कमाल की बात है पहले जमाने में लक्ष्मी मां उल्लू की सवारी करती थी अब उल्लु लक्ष्मी की सवारी कर रहे हैं। 'जिसके पास माया उसके दर पर हर कोई आया ’। लक्ष्मी मैया समझ चुकी है कि जिस देश में भ्रष्टाचार का अंधेरा पूरी तरह फैल चुका है उस देश में उल्लु महाराज की ही चलेगी। सो उन्होंने भारतीय लोकतंत्र का जिम्मा उल्लुओं को सौंप दिया है। ये उल्लु कहने भर को ही उल्लु हैं, अपने आप को उल्लु घोषित करने का तात्पर्य केवल दूसरे को उल्लु बनाना है। आज के जमाने में लक्ष्मी मैया को ऐसे ही उल्लु भा रहे हैं जो दूसरो का पैसा डकार कर लक्ष्मी मैया को खुश करते रहे। हर उल्लु को अंधकार पसंद है ताकि उस अंधकार में जनता उसके कारनामों को देख न सके।
राजनीति में कुछ उल्लु आरक्षण का नाम लेकर वोट बना रहे हैं तो कोई विवादास्पद किताबों के जरिए पीआर बढ़ा रहा है। कोई मूर्तियों पर करोड़ों रुपए फूंक रहा है तो कोई टीचरों की भरती के जरिए अरबों डकार चुका है। छोटे मोटे अधिकारी स्तर के उल्लु भी हर माह लाखों का वारा न्यारा कर रहे हैं। दरअसल इस उल्लुतंत्र में हर उल्लु का अपना प्रॉफिट मार्जिन तय है।
हर किसी के हाथों उल्लु बन चुकी जनता में भी एक दूसरे को उल्लु बनाने का कंपटीशन चल रहा है। ग्राहक सेल के फेर में दुकानदार को उल्लु बनाने का भ्रम पाले खुश हो रहा है और दुकानदार इसी सेल के फेर में ग्राहक को उल्लु बना रहा है। शेयर बाजार अपनी करिश्माई फुदकन से निवेशकों को उल्लु बना रहा है। बाजार मंदी और महंगाई के नाम पर उपभोक्ताओं को उल्लु बना रहा है। कर्मचारी कंपनी को और कंपनी कर्मचारी को उल्लू बना रही है। उधर घर में भी 'उल्लू बनाओ खेल ’ चल रहा है। पत्नी पति को ताउम्र उल्लु बनाए रखना चाहती है और पति पत्नी को उल्लु बना रहा है। प्रेमिका एक साथ चार चार अफेयर संभाल कर चारों को उल्लु बना रही है। शिक्षक विद्यार्थियों को उल्लु बनाकर अपना शिक्षण धर्म पूरा कर रहे हैं और विद्यार्थी शिक्षकों को उल्लु बनाकर गुरुदक्षिणा दे रहे हैं।
Wednesday, October 14, 2009
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