Wednesday, October 14, 2009

भारतीय लोकतंत्र के उल्लु

भारतीय लोकतंत्र मे दीपावली के मौके पर हर कोई चकाचौंध के जरिए लक्ष्मी माता की कृपा पाना चाह रहा है। हर कोई रोशनी करके लक्ष्मी मां का आह्वान कर रहा है लेकिन उल्लुओं को अंधकार पक्ष रास आ रहा है। वो चाह रहे हैं कि अंधकार बढ़ता रहे और उनकी संख्या और सेहत बढ़ती रहे। भारतीय लोकतंत्र की विडंबना ही है यहां हर शाख पे उल्लु बैठा है और उल्लुओं का लक्ष्मी मां से लगाव जगजाहिर है। देश को चलाने वाले और संभालने वाले हाथ इन उल्लुओं से इस कदर प्रेरित हो गए हैं कि हर जगह उल्लु नजर आ रहा है। सत्ता के गलियारों में उल्लुओं के बीच गठजोड़ हो रहा है, सरकारी कार्यालयों में उल्लु मेज पर बैठे बड़े बड़े फैसले कर रहे है और पुलिस दफ्तरों में उल्लु बदमाशों से सांठ गांठ कर रहे हैं। यानी उल्लु होना फायदे का सौदा है। इस दीपावली भी ये सभी प्रतिनिधि उल्लु लक्ष्मी मां का आह्वान करते हुए प्रार्थना करेंगे कि देश की जनता इसी तरह उल्लु बनती रहे और देश का बंटाधार करके हम जैसों का उल्लु सीधा होता रहे।

कमाल की बात है पहले जमाने में लक्ष्मी मां उल्लू की सवारी करती थी अब उल्लु लक्ष्मी की सवारी कर रहे हैं। 'जिसके पास माया उसके दर पर हर कोई आया ’। लक्ष्मी मैया समझ चुकी है कि जिस देश में भ्रष्टाचार का अंधेरा पूरी तरह फैल चुका है उस देश में उल्लु महाराज की ही चलेगी। सो उन्होंने भारतीय लोकतंत्र का जिम्मा उल्लुओं को सौंप दिया है। ये उल्लु कहने भर को ही उल्लु हैं, अपने आप को उल्लु घोषित करने का तात्पर्य केवल दूसरे को उल्लु बनाना है। आज के जमाने में लक्ष्मी मैया को ऐसे ही उल्लु भा रहे हैं जो दूसरो का पैसा डकार कर लक्ष्मी मैया को खुश करते रहे। हर उल्लु को अंधकार पसंद है ताकि उस अंधकार में जनता उसके कारनामों को देख न सके।

राजनीति में कुछ उल्लु आरक्षण का नाम लेकर वोट बना रहे हैं तो कोई विवादास्पद किताबों के जरिए पीआर बढ़ा रहा है। कोई मूर्तियों पर करोड़ों रुपए फूंक रहा है तो कोई टीचरों की भरती के जरिए अरबों डकार चुका है। छोटे मोटे अधिकारी स्तर के उल्लु भी हर माह लाखों का वारा न्यारा कर रहे हैं। दरअसल इस उल्लुतंत्र में हर उल्लु का अपना प्रॉफिट मार्जिन तय है।

हर किसी के हाथों उल्लु बन चुकी जनता में भी एक दूसरे को उल्लु बनाने का कंपटीशन चल रहा है। ग्राहक सेल के फेर में दुकानदार को उल्लु बनाने का भ्रम पाले खुश हो रहा है और दुकानदार इसी सेल के फेर में ग्राहक को उल्लु बना रहा है। शेयर बाजार अपनी करिश्माई फुदकन से निवेशकों को उल्लु बना रहा है। बाजार मंदी और महंगाई के नाम पर उपभोक्ताओं को उल्लु बना रहा है। कर्मचारी कंपनी को और कंपनी कर्मचारी को उल्लू बना रही है। उधर घर में भी 'उल्लू बनाओ खेल ’ चल रहा है। पत्नी पति को ताउम्र उल्लु बनाए रखना चाहती है और पति पत्नी को उल्लु बना रहा है। प्रेमिका एक साथ चार चार अफेयर संभाल कर चारों को उल्लु बना रही है। शिक्षक विद्यार्थियों को उल्लु बनाकर अपना शिक्षण धर्म पूरा कर रहे हैं और विद्यार्थी शिक्षकों को उल्लु बनाकर गुरुदक्षिणा दे रहे हैं।

Tuesday, July 28, 2009

माँ ने कभी बाज़ार नहीं देखा ...

माँ ने कभी अपने जीवन में
छतरी का उपयोग नहीं किया
क्योंकि
बारिश में उसने
घर के बाहर कभी कदम नहीं रखा।

माँ ने कभी चप्पल नहीं खरीदी
क्योंकि
दादी की पुरानी चप्पल
फेंक नहीं सकते थे।

माँ ने कभी
ताजी रोटी नहीं खाई
क्योंकि
घर में नौकर
नहीं थे।

माँ ने कभी
नई साड़ी नहीं पहनी
क्योंकि
बुआओं को
हर तीज-त्योहार पर
शगुन भेजना जरुरी होता था।

माँ कभी भी
पलंग पर नहीं सोई
क्योंकि
पलंग सिर्फ
दादा,बाबूजी और चाचाजी
के लिए था।

माँ ने कभी
बाजार नहीं देखा
क्योंकि
उसकी अपनी कोई जरुरत
ही नहीं होती थी।

शोभना चोरे
के सौजन्य से....

Monday, July 27, 2009

फोटो चेंज करने में कृपया मेरी मदद करें

मैं कई दिनों से ब्लागवाणी पर डिस्प्ले हो रही अपनी फोटो को बदलना चाह रही हूं लेकिन कर नहीं पा रही। क्या कोई महानुभाव मेरी मदद कर सकता है। (ये छोटी फोटो जो ब्लागवाणी पर मैटर प्रकाशित होने के साथ लगती है)

Saturday, July 25, 2009

सपना और सच का सामना

कल रात सपने में सीरियल 'सच का सामना ’ देखा। मुख्य अतिथि यानी प्रतियोगी की सीट पर पति महाशय बैठे हुए थे, सामने सीरियल के प्रस्तोता बैठे थे और परिजनों की सीट पर हम विराजमान थे। प्रश्न पूछने वाला अभी आरंभिक प्रश्नों की गोलियां दाग रहा था और हम मन ही मन में सीरियस यानी उन अंतरंग प्रश्नों की सूची बना रहे थे जिनके जवाब हर पत्नी जानना चाहती है लेकिन जान नहीं पाती। लेकिन हम आश्वस्त थे कि हमारे पति पत्नीव्रता हैं और वे हमारा विश्वास नहीं तोड़ सकते।
पहला प्रश्न : क्या आपने अपनी किसी स्कूल टीचर को लाइन मारी है?
पति : जी बिलकुल हां, एक नहीं चार चार टीचरें ऐसी थी जो हमारे दिल में हलचल पैदा किया करती थी।

हाय राम !!!!!!! तुम पैदाइशी ऐसे ही हो क्या...हम दर्शक दीर्धा में बैठे ही फट पड़े थे। तुम तो कहा करते थे कि हम टीचरों को बड़ा सम्मान देते रहे हैं। अब पता चला कि तुम सारे दिन क्लास में क्या करते होंगे। घर चलो, हम बताएंगे तुम्हे कि पढ़ाई क्या होती है।

खैर....
दूसरा प्रश्न : क्या आपने अपनी बहन की किसी सहेली को किस किया है?

उत्तर : जी हां, एक नहीं तीन तीन सहेलियों को किस किया है। सच इतनी स्मार्ट थी कि हम कृष्ण कन्हैया बना रहता था और वो किसी न किसी बहाने मुझे छेड़ती रहती थी।

हे भगवान, तुम तो चरित्तरहीन से भी गए गुजरे निकले, बहन की सहेली बहन होती है और तुमनें उन्हें भी नहीं छोड़ा, घर चलो, हम सिखाएंगे तुम्हे कि दोस्ती किसे कहते हैं।

तीसरा प्रश्न : क्या आप ऑफिस की किसी सहयोगी पर मोहित हुए हैं?

पति उछलकर : आपको कैसे पता, ये बातें तो बस ऑफिस के लोग ही जानते हैं। लगभग सभी सहयोगी मेरी अंतरंग मित्र है। मैं सभी का चहेता हूं और सभी मेरी चहेती। उनके बिना ऑफिस का समय ही नहीं गुजरता। काम के बहाने मीठी और चुटीली बातें करना मुझे अच्छा लगता है।

ओह ! अब तो हद हो गई, मां-बाबा ने क्या सोचकर मेरे लिए तुम्हें पसंद किया। इतना चरित्रहीन तो मैंने आज तक नहीं देखा। हे ईश्वर अब उठा ले मुझको। तुम घर चलो....तुम्हारे परिवारवालों को सामने बिठाकर ये बातें बताउंगी।

एक और प्रश्न : क्या आप अभी भी अपनी किसी पूर्व प्रेमिका के संपर्क में हैं?

पति : जी हां, पर एक हो तो बताऊं, हर रोज एक से मुलाकात और बात होती है। अब इन सभी की आदत सी हो गई है। दरअसल चेंज मुझको पसंद है।

हम गुस्से से लाल पीले हुए जा रहे थे। घर चलो, आज से तुम्हारा घर से निकलना बंद। प्लीज बंद कीजिए ये सवाल जवाब, मैं और नहीं सुन सकती।

अंतिम प्रश्न : क्या आपका पत्नी के अलावा , उनकी जानकारी से बाहर किसी से अंतरंग (आंख मारते हुए) संबंध है।

पति : जी...याद करने दीजिए...हममममम. दो प्रेमिकाओं से है।

प्रस्तोता : वाह वाह..सभी सवालों के जवाब आपने सच बताए हैं। मशीन एक भी झूठ नहीं पकड़ पाई। मैं आपको एक करोड़ जीतने की बधाई देता हूं और साथ में यह चैक भी। ....तालियां.......तालियां .....तालियां।

इधर हम जार जार रो रहे हैं और उधर पतिदेव को एक करोड़ का चैक लिए हमारे पास दौड़े चले आ रहे हैं।

इसके पहले कि हम उन्हें धक्का दें...वो कान में फुसफुसाए....नाराज मत हो मेरी जान....लो एक करोड़ का चैक और मजे करो...

हम उनकी बेहयाई पर अचंभित थे....कुछ कहने से पहले ही वो हमे अपनी और प्रस्तोता की सीटों के पीछे ले गए। वहां का नजारा देख कर हम हक्के बक्के थे।...........................पालिग्राफिक मशीन का तार पतिदेव की बजाय प्रस्तोता की सीट पर लगा हुआ था।

Tuesday, April 14, 2009

राहुल बाबा पीएम बनेंगे...



कई दिनों से उलझन में हूं, कभी खीज होती है और कभी हंसी आती है। लेकिन समझ में नहीं आता कि राहुल गांधी में भारत का प्रधानमंत्री बनने के सारे गुण एकाएक कैसे आ गए। क्या प्रधानमंत्री के गुणों का कोई इंजेक्शन लगता है या कोई टॉनिक है जिसे पीते ही प्रधानमंत्री गुण किसी व्यक्ति के शरीर में समा जाते हैं। हो सकता है कि विदेश में ऐसी कोई दवा इजाद हो गई हो। तभी तो कांग्रेस का हर छोटा बड़ा नेता यही कहता दिख रहा है कि राहुल बाबा में पीएम बनने के सभी गुण है और उन्हें पीएम बनाया जाना चाहिए।

मजे की बात है कि खुद पीएम मनमोहन सिंह भी मरे मन से लेकिन कहते नजर आ रहे हैं कि राहुल बाबा में पीएम बनने की सारी योग्यताएं है। अब क्या पता उन्होंने पीएम की अपनी कथित (?) योग्यताएं राहुल बाबा को शिक्षा में दे दी हों। आखिर सोनिया मैडम का अहसान जो उतारना है। लेकिन फिर भी बात हजम नहीं होती।

संसद में भाषण के दौरान कलावती रटने वाले राहुल बाबा में ऐसा क्या है जो देश के किसी और अनुभवी और योग्य नेता में नहीं है। क्या देश को प्रधानमंत्री देेने का ठेका आजीवन के लिए नेहरू खानदान को दे दिया गया है या, राहुल विदेश में पीएम बनने के स्पेशल गुण लेकर देश का भविष्य सुधारने आए है। जुम्मा जुम्मा चार या पांच साल राजनीतिक अनुभव (कागजी तौर पर) के आधार पर एक अनुभवहीन (सही कहा, समय तो राजनीति में गुजारा, लेकिन प्राप्त कुछ नहीं कर पाए)व्यक्ति को क्यूंकर प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताया जा रहा है। क्या इसे महज चाटुकारिता नहीं कहा जाएगा। केवल दलित के घर भोजन कर लेने से या अमेठी या रायबरेली की जनता के हित में आवाज उठा देने से कोई प्रधानमंत्री जैसे पद के योग्य बन सकता है। उनकी बहन का कहना है कि प्रधानमंत्री बनने से पहले वो राहुल बाबा को दूल्हा बनता देखना चाहती है। यानी प्रधानमंत्री बनना तो तय है, दूल्हा बनने में कुछ शंकाएं हो सकती हैं।

देश की समस्याएं और हालात इतने संवेदनशील हैं कि पचास साल राजनीति में बिताने वाला व्यक्ति भी इन्हें नहीं संभाल सकता, और यहां राहुल बाबा को कमान देकर क्या कांग्रेस देश के साथ खिलवाड़ करने का सपना नहीं देख रही है। जरूरी नहीं कि राहुल के एवज में भाजपा को जिताया जाए या किसी खास पार्टी को वोट किया जाए। जरूरत ये है कि जो भी पार्टी सत्ता में आए वो किसी जिम्मेदार व्यक्ति को ही पीएम पद पर बिठाए ताकि उससे देश में सुधार की कुछ उम्मीद की जा सके।

मन उम्मीद करता है ....काश कलाम जैसे कुछ और नेता होते तो क्षुद्र राजनीति से उठकर देश के लिए सोचने वालों की इतनी कमी न महसूस होती।

Sunday, March 8, 2009

होली का भविष्यफल

होली के दिन हमारे ज्योतिषाचार्य जरा भांग के नशे में मस्त हो गए और इसी टल्लमटल्ली में उन्होंने होली का भविष्यफल लिख डाला। क्या कहते हैं होली के दिन आपके सितारे और कैसा बीतेगा आपका दिन। बता रहे हैं हमारे रंगीले ज्योतिषाचार्य। लेकिन पढऩे से पहले ही बोले देते हैं - बुरा न मानो होली है!!!!

मेष
इस दिन रंगने और रंगे जाने के पूरे आसार हैं। यदि बचना चाहते हैं तो दिन भर पानी की टंकी में छिपने की योजना बनानी होगी। दुश्मन तो दुश्मन परम प्रिय मित्र भी इस मौके पर गुब्बारों को हथियार बना सकता है। गणेश जी बता रहे हैं कि पकोड़ों में भांग मिलाई है या नहीं, खाकर चैक कर ले। होलिया गए तो संबंधियोंं के हाथों पिटने का योग बन रहा है। शुभ रंग : वहीं जिसमे रंग जाएं

वृष
भांग और रंग का नशा सिर चढ़कर बोलेगा। आपके ग्रह और सितारे भी होली के मूड मेंं हैं। पड़ोसन से आत्मीय होली खेलने का प्रयास किया तो पड़ोसी के रुद्रावतार के दर्शन होंगे। ज्यादा स्याना बनने की कोशिश न करें वरना कौऐ की तरह काले कर दिए जाएंगे। गणेश जी बता रहे हैं कि रंगों से बचने वालों की खैर नहीं, दो दिनो तक पहचाने नहीं जाने की आशंका है। शुभ रंग-जो पिचकारी से निकले

मिथुन
सुबह आइना देखने से पहले सावधानी बरतें। वहां अपनी जगह रंगे बंदर का चेहरा दिखे तो घबराना व्यर्थ होगा, वैसे दिन बेहतर गुजरेगा। बेवकूफ साथी के साथ बाहर निकले तो गुब्बारे और जूते दोनों पड़ेंगे। दोस्तों के साथ किसी खास प्लान को बना रहे हैं तो ध्यान रहें, पहला निशाना आप ही बनेंगे। घर के स्टोर में रखे ऑयल और पेंट आपके राहू को प्रबल बना रहे हैं। गणेश जी बता रहे हैं कि माशूका से होली खेलें, मगर उनके भाई से मुक्कालात (मुलाकात) भारी पड़ेगी। शुभ रंग - जिसका गुब्बारा पहले पड़े

कर्क
रंगीन तबियत वालों की होली संगीन होने के फुलटूश चांस है। साली या सलहज से होली खेलने का प्लान है तो लठमार होली का वर्जन देखने को मिलेगा। नशे की हालत में सड़क पर निकले तो कुत्तों, गायों और भैंसों से भी होली खेलने के आसार बन रहे हैं, वैसे सवारी मिले न मिले पर गधे जरूर मिल जाएंगे। गणेश जी बता रहे हैं कि पियक्कड़ों की पकड़ में आने की आशंका है। शुभ रंग -रंग दे बसंती

सिंह
ज्यादा फाग गाने के चक्कर में गला बैठेगा ही, डॉक्टर का बिल देखकर दिल भी बैठ जाएगा। बहुएं कलर-प्रूफ घूंघट में रहें क्योंकि सास भी...... फुल मूड में रहेंगी। बीवी से होली खेलने के ख्याली पुलाव पका रहे हैं तो ध्यान रहे, दिन भर वही पुलाव खाने को मिलेगा। गणेश जी बता रहे हैं कि दोस्तों से छिपने के लिए कमरे में छिपने का प्लान खारिज कर दें। फिर से पेंट कराना महंगा पड़ेगा। ग्रह भी होली खेलने में व्यस्त रहेंगे, अत: आपके बल्ले बल्ले हैं। शुभ रंग-वहीं जो छुड़ा न पाएं

तुला
चुन्नू-मुन्नू दिन भर रंगे रंगाए रहेंगे। रंगों से परहेज करने वालों की खैर नहीं। बचना चाह रहे हैं तो बीमार पड़ जाएं। नाश्ते से पहले श्रीमती जी से होली खेलने का प्रयास महंगा पड़ेगा। शाम तक रसोई नाराज रहेगी। गणेश जी बता रहे हैं कि पड़ोसी से खुन्नस निकालने के लिए आज का दिन सबसे बेहतर है। जंगे-होली में गुब्बारों का इस्तेमाल घायल करेगा। रंगों से बचने के लिए भगवान को न पुकारें, वे भी होली खेलने में व्यस्त रहेंगे। शुभ रंग-रंग बरसे भीगे चुनर वाली

कन्या
अपनी मिस मोहल्ला को रंगने का ख्वाब बुनने वालों का राहू रोष में रहेगा। संभलकर रहे वरना पहलवानों से होली खेलनी पड़ेगी। दोपहर से पहले नहाना खतरनाक साबित होगा, शाम को नहाने जाते समय पानी का रंग चैक करना न भूलें। गणेश जी बता रहे हैं कि आप पड़ोसियों के निशाने पर हैं और घर से बाहर निकलते ही बाल्टियां लुढ़कने की संभावना है। शुभ रंग-जो सबसे पहले लगे

वृश्चिक
अगर होली खेलने से परहेज करते हैं तो दिन आपके लिए बहुत संवेदनशील रहेगा। गुब्बारे और रंग भरी बाल्टियों से दूर रहे, रंगों का संक्रमण होने की संभावना प्रबल है। कम अक्ल दोस्त से समझदार दुश्मन भले, ये कहावत आज चरितार्थ होगी। गणेश जी बता रहे हैं कि अजनबियों से रंगों भरी झड़प हो सकती है। इतना न पिएं कि खाना भूल जाएं। शुभ रंग-सतरंगी चुनरिया

मकर
रंगों से बचने के सारे तरीके फेल होंगे। घर में छिपने वालों की खैर नहीं। बचने का एकमात्र उपाय, खुद ही रंग जाएं। प्रेमिका से होली की मान मनुहार रंगीली होगी। सड़क के मजनुओं का मुंह काला होने की संभावना है। बुजुर्गों को ज्यादा उत्साह में आने का फैसला भारी पड़ेगा। भांग के साथ साथ सांग (गाना) का भी मजा रहेगा। गणेश जी बता रहे हैं कि ग्रह भी रंगीली तबियत अपनाए हुए हैं, जो करना है कर डालो, होली पर सब माफ। शुभ रंग-काले को छोड़कर सभी

धनु
किसी अजनबी कन्या से होली खेलने के लिए रंगों की जरूरत ही नहीं। उसके गाल शर्म से और आपके गाल चांटे से लाल होने की प्रबल संभावना है। ससुराल जा रहे हैं तो कवच लेकर जाएं, लठमार होली के लिए आपकी प्रतीक्षा है। गणेश जी बता रहे हैं कि पड़ोसी से रंगीली महाभारत होने के आसार है। गुब्बारों का इस्तेमाल किया तो जूते पड़ेंगे। शुभ रंग-मुझे रंग दे...

कुंभ
घर में रहना खतरे से खाली नहीं। कहीं बाहर जाने की योजना है तो 'मुझे रंग दे-मुझे रंग दे ’ का मंत्र जपें, उत्तम फल मिलेगा। हालांकि मौसम रंगीन रहेगा लेकिन गुब्बारों की बरसात होने की संभावना है। गली के बच्चों में से अपने बच्चे पहचानने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। गणेश जी बता रहे हैं कि कोई कपड़ा डाई कराने की सोच रहे हैं तो उसे होली पर पहन डाले। शुभ रंग-नीला न पीला न लाल-गुलाबी

मीन
माशूका से होली खेलने से पहले उसके बाप और भाई से होली मिलन के लिए तैयार रहे। गली में निकलने से पहले पड़ोसी के घर में झांक लें। आज सितारों की चाल भी मनचली है, कब कौन कृपा कर दे, पता नहीं। भूल कर भी किसी कवि मित्र को घर पर आमंत्रित करने की भूल न करें। गणेश जी बता रहे हैं कि बुरा मानने और मनाने का दिन नहीं है और बुरा मान भी गए तो कुछ कर नहीं पाएंगे। शुभ रंग-रंगीला रे...

Friday, January 30, 2009

कैमिस्ट्री लव की....

प्रेम कैसे होता है और प्रेम होने पर कैसा लगता है। आमतौर पर माना जाता है कि जिसे देखकर दिल धड़के उससे प्रेम हुआ समझो। लेकिन वैज्ञानिकों ने प्रेम की पूरी प्रक्रिया को अपनी ही भाषा में समझाने की कोशिश की है। आइए आपको प्रेम की वैज्ञानिक परिभाषा बता देते हैं।

पीईए यानी लव रसायन
फिनाइल इथाइल एमाइन यानी पीईए को प्रेम का रसायन कहा जाता है। यही वह रसायन है जो प्रेम के समय दिमाग में सुरूर पैदा करता है। प्रेम के समय या कहे, अपने प्रियतम को देखते समय इसी रसायन का स्त्राव होता है और धीरे धीरे ये पूरे शरीर में फैल जाता है। ऐसे में पूरे शरीर में एक सुरूर पैदा होता है, दिल की धड़कनें बढ़ जाती है, इंद्रियां क्रियाशील हो जाती हैं। हालांकि यह रसायन तेज झूला झूलते समय, ऊंचाई से नदी में छलांग लगाते समय, चाकलेट खाते समय और तेज गाड़ी चलाते समय भी स्त्राव होता है।

दिल क्यों धड़कता है
जब युवा किसी ऐसे के पास पहुंचते हैं जिसे वो सबसे ज्यादा प्यार करते हैं तो दिल धड़कनें लगता है। लगता है जैसे दिल उछलकर बाहर आ जाएगा। उस समय मस्तिष्क में नोरेप्राइनफीन नामक रसायन का स्त्राव हो रहा होता है। यह रसायन एड्रेरनाइलान हारमोन्स को बढ़ावा देता है।

उन्हें देखकर खुशी क्यों
प्रियतम को देखकर खुशी क्यों महसूस होती है। दरअसल सेराटनीन नामक रासायनिक रिसाव से हमें खुशी महसूस होती है। आसान भाषा में इसे दिमाग का न्यूरोट्रांसमीटर कहते हैं जो इच्छित व्यक्ति की पहचान कराकर खुशी के हारमोन बढ़ाता है।


अब तो आप समझ गए होंगे कि प्रेम, प्यार यानी लव क्यों और कैसे होता है। जब भी किसी को देखकर सुरूर पैदा हो तो जान जाइएगा कि लव रसायन काम कर रहा है। वैसे आज वसंत पंचमी के दिन मौसम भी है और मौका भी। तो जरा लव कैमिस्ट्री हो ही जाए।

Tuesday, January 27, 2009

कुछ खास नहीं है स्लमडॉग...

कल रात कंप्यूटर पर स्लमडॉग देखी। कुछ खास नहीं लगी। फिल्म देखते हुए सोच रही थी कि क्या देखकर इसे गोल्डन ग्लोब मिला और किस सोच के आधार पर इसे ऑस्कर मिलेगा। दरअसल फिल्म में भारतीय दर्शकों के लिए कुछ खास नहीं है। मुंबई की कमियां-मसलन वहां की गंदगी, चोरी चपाटी, रेड लाइट ऐरिया, भीख मंगवाने वालों का जाल, पुलिस की दरिंदगी, भाईगिरी सभी कुछ फिल्म में अनवरत चलता रहता है। फिल्म की कहानी तो खैर आप लोगों ने कई जगह सुनी और पढ़ी होगी। खैर हम शार्टकट में बताए देते हैं। जमाल, एक कॉल सैंटर में चायवाला, कौन बनेगी करोड़पति में एक करोड़ जीत जाता है। शो के एंकर को शक होता है और वो उसे पुलिस के हवाले कर देता है। पुलिस की पूछताछ में जमाल अपने बचपन से जवानी तक का सफर याद करता है। इसी सफर में करोड़पति में पूछ गए सभी सवालों के जवाब भी छिपे हुए हैं। कैसे जमाल उसका भाई सलीम और लतिका अपने परिजन खोते हैं। भीख मांगने वालों के गिरोह के हाथों से बचकर जमाल और सलीम आगरा भाग जाते हैं और लतिका वहीं फंसकर रेड लाइट एरिया में पहुंच जाती है। जमाल फिर लौट कर आता है और लतिका को खोज निकालता है। सलीम के हाथों इस दौैरान एक हत्या होती है और सलीम जमाल को भगा देता है। वो लतिका को जावेद भाई के हवाले कर उसके लिए काम करने लगता है। जमाल फिर लौटता है लेकिन अब लतिका जावेद की रखैल है और सलीम जावेद के लिए काम करता है। जमाल लतिका को भगाने का प्रयास करता है लेकिन सफल नहीं हो पाता। फिर वो करोड़पति खेलता है ताकि पैसा कमा सके और लतिका को पा सके। उधर लतिका को जमाल के पास भेजने के लिए सलीम जावेद को मार डालता है और जावेद के आदमी सलीम को। उधर जमाल दो करोड़ जीतता है और लतिका जमाल के पास पहुंच जाती है।

अभिनय
अभिनय के हिसाब से भी फिल्म औसत ही रही। हां, बच्चों का अभिनय अच्छा लगा। छोटे जमाल और सलीम ने बेहतरीन अभिनय किया। आगरा जाने के बाद कुछ बड़े हो चुके जमाल और सलीम चालाकी और काईयापन करते नजर आए जो उनकी उम्र के अनाथ और आवारा किशोर करते हैं। आगरा में विदेशी पर्यटकों को ढगते हुए सलीम और जमाल रोमाङ्क्षचत करने के साथ साथ कुछ गुदगुदाते भी हैं। लेकिन कॉल सेंटर में बतौर चायवाला जमाल कुछ जमा नहीं। सच बताएं हमे तो किसी भी एंगल से वो चायवाला नहीं लगा। अनिल कपूर काफी हद तक एक ईष्यालू एंकर की सफल भूूमिका निभाते नजर आए और उनके अभिनय में अमिताभ की नकल भी साफ दिखाई दे रही थी। बड़ी हो चुकी लतिका सुंदर लगी। बड़े जमाल की याददाश्त बड़ी तेज थी तभी तो वो अपनी शुरूआती जिंदगी के हर हिस्से से खोजकर एंकर के सभी सवालों के जवाब दे डालता है। फिल्म अंग्रेजी में है और कहीं कहीं कुछ हिस्से अतिवादिता के शिकार हो गए लगते हैं।

गीत संगीत
फिल्म चूंकि कंप्यूटर पर देखी थी सो गाने नहीं थे। शायद काट लिए गए थे। जय हो गाना अंत में है (इसके लिए रहमान ऑस्कर में नामांकित हुए हैं), जो अंग्रेजी और हिंदी सी लगती धुनों का मिश्रण है। रिंगा रिंगा गीत की धुन प्यारी लगती है। इस गाने में दोहरे अर्थो वाले शब्दों का प्रयोग किया गया है जिस कारण बार बार सुना नहीं जा सकता।

असल मुद्दा
अब बात असल मुद्दे की कि विदेशियों को इस फिल्म में क्या भाया और क्यों। फिल्म में एक विकासशील देश की आर्थिक राजधानी (जो देश के कई बड़े हिस्सों की कहानी बयां करती है)। अमिताभ बच्चन का भी कहना सही है कि गरीबी क्यों देखी जा रही है। फिल्म का निर्देशक भी दरअसल उसी गंदगी, गरीबी और कमियों को खासतौर पर फोकस करता है। फिल्म में आप एक नई मुंबई देखेंगे जो वहां के मध्यम वर्गीय लोग भी नहीं देख पाते होंगे। हमारे ख्याल से फिल्म के इसी विशेष पहलू को देखकर विदेशी ज्यूरी शायद अचंभित हो और फिल्म को ऑस्कर मिल जाए। लेकिन इसमें हमारी कोई उपलब्धि नहीं होगी। उपलब्धि होगी डैनी बोएल की जिन्होंने एक बड़े शहर की कुरूपता को जग जाहिर करने में सफलता प्राप्त की है।

Friday, January 23, 2009

ऐसे हुआ सी लेसिक ऑपरेशन

राज भाटिया जी ने मेरे हालिया ब्लाग पर अपनी प्रतिक्रिया में लेसिक आपरेशन के बारे में पूछा था। बता हा देती हूं, ताकि किसी को कराना हो तो डरे नहीं। दरअसल पहले करेक्ट नंबर (आंख का सही नंबर लिया जाता है)। ये प्रक्रिया दो दिन की होती है। जो लोग चश्मा लगाते हैं उनका करेक्ट नंबर एक ही बार में लिया जा सकता है और जो लोग लैंस यूज करते हैं उनके साथ सप्ताह भर लगता है। यानी कंप्यूटर और लोकल तरीके से आंख का नंबर लिया जाता है। ऐसा इसलिए जरूरी है कि आपरेशन के समय बिलकुल सही नंबर ठीक किया जा सके।
मुझे जब आपरेशन थिएटर में ले जाया गया तो मेरे डॉक्टर और पति मेरे साथ थे, डॉ अन्दर मेरे साथ आए और पति बाहर ही रहे। मेरी आंखों को एंटीबायोटिक डालकर साफ किया गया और सिर पर कपड़ा भी बांध दिया गया। अब मैं डर भी गई थी क्योंकि सिर पर कपड़ा तो मेजर आपरेशन के समय बांधा जाता है। लेकिन आदतन मजाक किए जा रही थी (शायद डर पर काबू पाने के लिए)। चौधरी आई सैंटर के डॉ. को मेरा आपरेशन करना था। भई, मशीने भी उनकी दिल्ली में सबसे बेहतर हैं इसीलिए सभी डॉक्टर अपने मरीजों को वहीं ले जाते हैं। खैर मुझे आपरेशन थिएटर में एक बड़ी सी मशीन (उसके नीचे एक बेड था) के नीचे लिटा दिया गया। फिर मेरे चेहरे पर एक कपड़ा ढक दिया गया लेकिन कपड़े में सुराख था जिसके जरिए डॉ. को मेरी दाईं आंख दिख रही थी। फिर उन्होंने मेरे डॉ. से मेरा डाटा लिया और अपने कंप्यूटर पर फीड किया। अब आंख पर एक अजीब सा सॉल्यूशन मला गया जिससे आंख सुन्न हो गई। आंख में एक कटोरीनुमा वस्तु डाली गई जिससे मुख्य आंख बाहर की तरह डॉ. के औजारों की पहुंच में आ गई । इस दौरान दर्द हुआ, ज्यादा नहीं हलका सा। फिर डॉक्टर ने लेजर के जरिए आंख का कोर्निया काटा। उस दौरान झझझझझझझझझझ की आवाज के साथ कुछ जलने की बदबू भी आई जिसके बारे में मेरे डॉक्टर मुझे पहले ही बता चुके थे। मेरी आंख के ठीक ऊपर लगी मशीन में एक लाल लाइट जल रही थी जिसे लगातार देखते रहने की हिदायत दी गई थी। हलका दर्द भी हुआ। कोर्निया काटने के बाद उन्होंने आंख में कुछ तरल डाला और चम्मचनुमा किसी चीज से आंख की सफाई की और फिर कोर्निया वापस अपनी जगह पर रख दिया। इस प्रक्रिया में महज एक मिनट का समय लगा। दूसरी आंख में भी यही क्रम अपनाया गया। पूरे ऑपरेशन के दौरान आंखों में तरल दवाई लगातार उड़ेली जाती रही।

ऑपरेशन के बाद मुझे एक पेन किलर खाने को दी गई और ज्यादा से ज्यादा समय तक आंख बंद रखने का निर्देश दिया गया। दो घंटे बाद दवाई खानी और आंखों में डालनी थी। डॉ. ने हमे अपनी गाड़ी से घर छोड़ा और घर आते ही मैं तो नींद के हवाले हुई और पतिदेव सेवा में। दवाईयों का क्रम जारी है। घर पर पतिदेव और ऑफिस में सहयोगी अपना दायित्व निभाते हैं और हम आंखलाभ कर रहे हैं। वैसे जो लोग ऑपरेशन के नाम से डरते हैं उन्हे बता दूं कि इस ऑपरेशन के ज्यादा नुकसान नहीं है। इसके तुरंत बाद आप अपने सामान्य काम कर सकते हैं। गाड़ी भी चला सकते हैं।

ब्लॉग जगत पर हमारी वापसी

काफी दिन बाद ब्लॉग लिखने की हिम्मत जुटाई है। दरअसल आंखों का सी-लेजिक आपरेशन कराया था तो डॉक्टर ने कंप्यूटर से दूर रहने के लिए कहा था। इसीलिए कुछ लिख नहीं पाए थे। १३ किलो के आलू के बाद आज कुछ लिखने की हिम्मत जुटा पाए तो सोचा अपने ऑपरेशन की जानकारी देते चले। वैसे हमारा आपरेशन तो काफी पहले हो गया था लेकिन कुछ दिन के परहेज के लिए डॉक्टर सलाह देते हैं, इसलिए बिलागिंग से दूर ही रहे। अब आंखें ठीक हैं और हम बिना चश्मे या लैंस के सब कुछ साफ साफ देख पा रहे हैं।

वैसे इतने दिनों में काफी सारा पानी यमुना में गुजर गया राजू का असत्य, शेयर मार्केट की धड़ाम, स्लमडॉग मिलयेनेयर और जाने क्या क्या। पेट्रोल के दामों पर तनातनी और अफवाहों का बाजार चल रहा है। सच कहें, अगर दस रुपए सस्ता हो गया तो हम पक्का कांग्रेस को वोट दे बैठेंगे।

कुछ दिन तो समाचारों से भी दूर रहे, लगा जैसे जिंदगी बोर बोर सी है। पहले ऑफिस जाते थे तो दिल कहता था, काश कई दिन की छुट्टी मिले तो जी भर कर सोएंगे। अब कई दिन घर पर रहे तो दिल ऑफिस जाने के लिए करता रहा। अच्छा लग रहा है, लिखना भी और दूसरों को पढऩा भी।

सच कहें तो समीर भाई, अनुराग जी, आदित्य रंजन, रचना और फुरसतिया को बहुत मिस किया। सबसे पहले लपूझन्ना देखा और फिर इन्हीं लोगों के ब्लॉग पड़ डाले। बाकियों को फुरसत में पढ़ेंगे।

दिल्ली के चौधरी आई सैंटर में आपरेशन हुआ और ऑपरेशन में २५ हजार रुपए खर्च हुए। वैसे ऑपरेशन महज दो मिनट का होता है और थोड़ा सा दर्द भी होता है लेकिन सर्जरी जैसी कोई चीज नहीं होती। उसके बाद कुछ दिन का परहेज रखना होता है जैसे पानी नहीं लगाना, रोना नहीं, खाना नहीं बना सक ते। वैसे तो आपरेशन के तुरंत बाद ही साफ दिखना आरंभ हो गया था लेकिन एक जनवरी की सुबह बिना लैंस लगाए घड़ी देखी तो बड़ा सकून मिला। अब कंप्यूटर पर भी काम कर रहे हैं तो दिक्कत नहीं है।

आज इतना ही....बाकी बाद में