Wednesday, November 26, 2008

मां दा लाडला बिगड़ गया

मां दा लाडला बिगड़ गया-सब गा रहे हैं। बुरी बात को हंस हंस कर गा रहे हैं और जश्न मना रहे हैं। लाडला भी दिल खोलकर हंस गा रहा है और मां भी शान से अपने लाडले की करतूत पर वारी जा रही है। धन्य है मार्डन मां और धन्य है उसका लाडला। दोस्ताना का ये गीत आजकल हर गली और मोहल्ले में सुनाई दे रहा है। बच्चे से लेकर बड़े भी गा रहे हैं। मां को भी ऐतराज नहीं। आखिर हो भी क्यूं। बिगड़ गया तो बिगड़ गया। मिडिल क्लास मां जानती है कि गाना भी फिल्मी है और बेटा भी। उसे एक भरोसा है कि बेटा मोहल्ले और शहर भर की लड़कियों को छेड़ लेगा लेकिन किसी मर्द की तरफ आंख उठाकर नहीं देखेगा।

बेटी गा रही है-तू साला काम से गया और बेटा गा रहा है-मां दा लाडला बिगड़ गया। सिनेमा दोनो को बिगाडऩे पर तुला है। ना ना ....हम यहां सिनेमाई आदर्श झाडऩे नहीं जा रहे, हम तो बात कर रहे हैं उन गानों की जो बिगाड़ रहे हैं लफ्जों की सुनहरी और प्यारी दुनिया के सुर और ताल। गोलमाल रिटर्न का-तू साला काम से गया। जाने तू-पप्पू कांट डांस साला। और भी जाने क्या इश्क कमीना, इश्क निकम्मा, कम्बख्त इश्क। अगर इतना ही बुरा है इश्क तो क्यों करते हो प्यारे। गानों में फूहड़ता और जल्दबाजी को डाल कर इंस्टेंट बनाया जा रहा है। ओए ओए, ओले ओले के बाद अब दुनिया की ठां ठां ठां हो रही है। दिल अब किसी के प्यार में करवटें नहीं बदलता, दर्दे डिस्को करता है।

11 comments:

admin said...

सही कहा आपने, सिनेमा यह काम बडे काम से कर रहा है। पर किसी राष्‍ट्रभक्‍त को इस ओर देखने की फुर्सत नहीं है।

ghughutibasuti said...

मां का बिगड़ा लाड़ला यदि अपने सेक्सुअल ओरिन्टेशन को समझे व जाने तो एक स्त्री का जीवन बर्बाद होने से तो बच जाएगा। फिल्म नहीं देखती, परन्तु अनुमान लगा सकती हूँ कि यह समलैंगिगता पर है ।
घुघूती बासूती

adil farsi said...

बहुत अच्छे..सही कहा आपने...इशक को भी नफरत बता रहे हैं आँचल का दूध पीकर पूछ रहे है..चोली के पीछे क्या है

परमजीत सिहँ बाली said...

प्रभू इन्हें सद्धबुद्धि दे।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

अपने लाड़लों को बिगाड़ने में उनके माँ-बाप का पूरा हाथ होता है। धन और यश के पीछे पीछे लगता है कि शायद बचपन का नामोनिशान मिटाने का षड़यंत्र पूरे देश में एक सुनियोजित तरीके से चलाया जा रहा है। कोफ्त होती है उन मां-बाप को देख जो अश्लीलता की सीमा छूते गानों पर मटकते अपनी संतानों को देख फूला नहीं समाते।

मोहन वशिष्‍ठ said...

अच्‍छा विषय चुना है आपने लिखने के लिए। क्‍या कहें आजकल जो गाने आ रहे हैं म्‍यूजिक के नाम से नफरत सी पैदा कर रहे हैं। अब ये ही गाना सुन लो तैने दुल्‍हा किन्‍ने बनाया भूतनी के छी छी छी किसी और को गाली थोडी दी है। इसमें तो मां के नाम को भूतनी बोला हे सरासर। बहुत ही बुरा गाना है अभी कुछ दिन पहले मैं एक शादी में गया तो वहां पर यही गाना चल रहा था लोग नाच रहे थे दुल्‍हा भी खुश हो रहा था कि मेरी शादी में इतने सारे लोग नाच रहे हैं ये नहीं सोच रहा वो निलर्ज कि ये भूतनी किसको कह रहे हैं सच में बहुत बेकार गानों का जमाना है । आप सभी मुझे माफ करना अगर मैं कुछ गलत बोल गया हूं तो।

Anonymous said...

फ़िल्में समाज का आइना हैं । या फ़िर यूं कहें कि समाज फ़िल्मों से बहुत कुछ लेता है । दोनों ही सूरत में नुकसान सामाजिक व्यवस्था का ही है । भाषा पर लगाम ज़रुरी है ,वरना आज साला -ससुरा से हुई ये शुरुआत कहां तक जा पहुंचेगी केवल कयास ही लगाए जा सकते हैं ।

डॉ .अनुराग said...

सिनेमा नही कुछ एड भी यही काम कर रहे है ....फ़िर समाचार के बीच भद्दे अश्लील चुटकुले ....

Anonymous said...

ये जितना जल्दी आते है वैसे ही चले जाते है.. बकवास.. और क्या कहे इनको?

pritima vats said...

माडर्न मां के बारे में तो जितना कहो कम है, ये मांए अपने बच्चो के भविष्य से ज्यादा ध्यान उसके फूहड़ आथुनिकता पर देती हैं। इन्हे सामान्य ज्ञान से ज्यादा सिनेमा ज्ञान की चिन्ता रहती है।

राज भाटिय़ा said...

विनिता जी आप ने बिलकुल सही लिखा बच्चो को मां बाप ही बिगाड रहै है, मुझे याद है जब हम छोटे होते थे तो घर पर रेडियो सुनना भी मना था,फ़िल्म तो बहुत दुर की बात थी , उन्ही संस्करो की वजह से आज अपने बच्चो को भी आज की गन्दगी से बचा रहै है, लेकिन कब तक.
धन्यवाद