Wednesday, December 10, 2008

तेरह किलो का आलू ....

आप चाहे मानो या ना मानो आलुओं का बाप आ चुका है। दक्षिणी लेबनान में एक किसान के खेत में ११.३ किलो का आलू निकला है। इसे दुनिया का सबसे भारी आलू कहा जा रहा है। बेरूत से ८५ किलोमीटर दूर रहने वाले किसान खलील सेमहत इसे पाकर फूले नहीं समा रहे। उनका कहना है कि मैं छोटी सी उम्र से खेती कर रहा हूं लेकिन मैंने पहली बार इतना बड़ा आलू देखा है। सेमहत ने कहा कि इस भारी भरकम आलू को निकालने के लिए मुझे अपने दोस्तों को बुलाना पड़ा। उन्होंने कहा कि मैं उपज बढ़ाने के लिए कोई उर्वरक या रसायन नहीं प्रयोग करता हूं। अभी तक गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकॉर्ड में ब्रिटेन के स्लोआन के खेत से पैदा ३.५ किलोग्राम का आलू दर्ज है। खाद्य सुरक्षा और गरीबी दूर करने के लिए वर्ष २००८ को इंटरनेशनल इयर आफ द पोटैटो के तौर पर मनाया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट क ो ब्रिटेन प्रायोजित क र रहा है जिससे सब्जियों के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सके ।
उम्मीद : काश भारत भी कोई ऐसा प्रोजेक्ट चलाए जिससे खाद्यान्न के इस देश में भूख से मरने वालों की संख्या में कमी आ सके।

Monday, December 8, 2008

....और मोबाइल चोरी हो गया

रविवार की रात को एक हादसा हमारे साथ हो गया। पतिदेव का मोबाइल चोरी हो गया। दरअसल हम जैकेट लेने के लिए रविवार की रात को अक्षरधाम मंदिर के पास फ्लाइओवर के नीचे चल रहे लुधियाना स्वेटर मेले में गए। नोएडा मोड़ पर लगने वाले इस मेले में हम पहले भी जा चुके थे और यहां बच्चे के लिए अच्छे स्वेटर मिल गए। हमने सोचा कि चलो एक आध जैकेट यहां से ले ली जाए। खाना बनाने के बाद आठ बजे हम वहां गए तो कुछ खास भीड़ नहीं थी। यही कोई ८ या दस लोग थे और १०-१२ लोग मैनेजमेंट के थे। बच्चा (आतंकवादी और शायद मोबाइल चोरी होने के लिए बड़ा जिम्मेदार वही है) हमारे साथ था और जरूरत से ज्यादा उछलकूद कर रहा था। पतिदेव जैकेट देखने लगे और मैं बच्चे को पकड़ रही थी। अचानक बच्चा उछलकूद करने लगा। मैं उसको पकडऩे के लिए यहां वहां दौडऩे लगी। तभी पतिदेव को एक जैकेट पसंद आई और उन्होंने अपनी पहनी हुई जैकेट उतारकर मुझे दी। मैंने जैकेट पक ड़ ली और बच्चे को कसकर गोद में पकड़ लिया। लेकिन ये शरारती महाराज कहां रुकने वाले थे। इन्होंने जोर मारा और मेरे हाथ से कूद पड़े। इनके गिरने के डर से मैने जैकेट को हाथ में मरोड़ लिया और इनके पीछे भागी। तभी दो एक लोग मुझसे टकराए और काम हो गया। मेरा ध्यान तब भी नहीं गया। इन्होंने जैकेट पसंद करके काउंटर पर भिजवाई और जैसे ही अपनी जैकेट पहनी, इनके मुंह से निकला ओह! मोबाइल गया। मेरे तो पसीने छूट गए। हमने सारा स्टाल छान मारा। लेकिन कहीं नहीं मिला। फिर एक दो लोगों के फोन से बैल भी मारी लेकिन चोर ने उसकी बैटरी निकाल दी थी। बड़ी मायूसी से हम लौट चले। ७५० रुपए की जैकेट हमे ६००० रुपए की पड़ी।

नन्हा आतंकवादी - नन्हे आतंकवादी पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था लेकिन क्या क रूं उस पर गुस्सा निकाल नहीं पा रही थी। क्योंकि वो अभी भी उतनी ही उछलकूद कर रहा था और हंस रहा था। मोबाइल में दो सिम कार्ड और एक एक जीबी का मेमोरी कार्ड था। पतिदेव ने तुरंत पांडव नगर थाने जाकर रिपोर्ट दर्ज कराई और एफआईआर की कापी लेकर घर लौटे।
लापरवाह एमटीएनएल- उधर मैं एमटीएनएल के कस्टमर केयर को नंबर लगा रही थी लेकिन कोई नंबर उठा कर काट रहा था। ऐसे में एमटीएनएल पर बड़ा गुस्सा आया। सच में कितने लापरवाह है इस कंपनी के लोग। कल को इस नंबर को दुरुपयोग हुआ तो कंपनी इस चीज की जिम्मेदारी नहीं लेगी। आखिर कस्टमर केयर २४ घंटे खुलता है लेकिन अधिकारी क्या नींद लेने के लिए आते हैं। आज ईद की छुट्टी है तो जाहिर सी बात है कि आज एमटीएनएल का दफ्तर आज खुलेगा नहीं। कल तक पतिदेव को बिना मोबाइल के रहना होगा।
शक - मुझे स्टाल के मैनेजमेंट पर पूरा शक है। वहां कई लोग थे जो यहां वहां (काम न होने पर भी) घूम रहे थे और लोगों से टकरा रहे थे। एक लड़की ने बताया भी कि सुबह से तीन मोबाइल यहां गायब हो चुके हैं। लेकिन हम भी क्या करते, लोगों की तलाशी तो नहीं ले सकते थे। लग गया था पांच हजार का फटका। सच बुरा ही रविवार था। इस महीने का बजट बनाते समय हाथ कुछ टाइट रखना होगा।

Friday, December 5, 2008

आज हमारा अवतार दिवस

आज हमारा अवतार दिवस है। यानी बर्थडे। हम आज ही के दिन धरती पर उतरे थे। आज ही के दिन बाबरी विध्वंस हुआ और इसी कारण कई लोग इसे शोक दिवस और कई लोग इसे विजय दिवस के रूप में मनाते है। बहरहाल हमारे घर के लोग तो उसे उल्लास के तौर पर मनाते है। रात को बारह बजे पतिदेव ने विश किया और सुबह प्यारे बेटे ने प्यारी सी पप्पी दी। बच्चे को मां के घर छोडऩे गए तो मां ने भी खूब आशीष दिए। कहा खूब खुश रहो। ८ बजे बहन का फोन आया और नौ बजे भाई का। सबको याद था। मन को कुछ तसल्ली हो रही थी कि कुछ लोगों को तो मेरा दिन याद है। हालांकि ज्यादा सेलीब्रेट करने की गुंजाइश नहीं बन पा रही। कारण साफ है कि महीने का आखिरी दौर चल रहा है और मन के बर्थडे (पिछले शनिवार को मनाया था) पर पैसा खर्च हो चुका है। फिर भी कुछ गिफ्ट पर हमारा हक भी बनता है।
आफिस आए तो आश्चर्यजनक रूप से कई लोगों को हमारा अवतार दिवस याद था। सभी पार्टी की जिद कर रहे थे और जेब मना कर रही थी। सबको टाल दिया कि कुछ समय बाद देंगे। हां चाय पानी प्रायोजित किए जा सकते हैं। आज जबकि सारा हिंदुस्तान बाबरी को याद करता है, कुछ लोग इस बावरी को भी याद किया करते हैं। जयपुर से अभिन्न मित्र राजीव जैन के फोन का इंतजार है। वो हमारा बर्थडे याद रखते हैं और हमे उनका बर्थडे टीवी के न्यूज चैनल याद (११ अक्तूबर-अमिताभ बच्चन का जन्मदिन) दिला देते हैं।
आज जल्द ऑफिस से निकल जाएंगे और पतिदेव के साथ कुछ तफरी का प्रोग्राम है। अभी तक सब अच्छा चल रहा है और ईश्वर से प्रार्थना है कि सब अच्छा चले। ब्लॉग लेखक होने के नाते ब्लॉग जगत के साथियों से जुड़ी हुई हूं और इस नाते आप सभी के प्यार और आशीर्वाद की हकदार हूं।

Wednesday, December 3, 2008

नन्हे मोशे का भविष्य

क्या होगा उस नन्ही सी जान का...। कौन उसे वो ही लाड़ देगा, जो उसके मां-बाप दिया करते थे। क्या उसका भविष्य वैसा ही हो पाएगा, जैसा उसके मां-बाप ने संजोया था। वो रात में किसके आंचल में छिपकर सोया करेगा। रात में उठने पर मां की गंध न महसूस करने पर वो कैसा महसूस करेगा। असहाय और आंखों में आंसू लिए मैं कई दिनों से ये सोच रही थी। डा. अनुराग के ब्लाग ने आंसुओं का सैलाब और बढ़ा दिया। दिल भर्रा रहा है और बैचेनी सी है। बार बार मोशे की तुलना अपने खेलते हुए बेटे से कर सकती हूं। क्या कसूर है मोशे का, अपने जन्मदिन का केक काट रहा था और मां बाप को खो बैठा। क्या ये जन्मदिन वो कभी भूल पाएगा। मोशे अभी नासमझ है। लेकिन इसी दौर में बच्चे को मां बाप के प्यार, दुलार और संरक्षण की सबसे ज्यादा जरूरत रहती है। मां का लाड़ प्यार अब कौन करेगा। उसकी किलकारियों पर कौन उसे गोद में उठाकर झूमेगा। बेचारा बच्चा, उसे अभी तो पता ही नहीं कि उसके साथ ये क्या हो गया है। .......सच कह रही हूं, उसका ख्याल आते ही आंसू निकलने लगते हैं और मेरे पति कहते हैं कि खुद को संभालो। लेकिन उस बच्चे को कौन संभालेगा जो अनाथ हो चुका है और जिसका भविष्य वैसा नहीं बन पाएगा, जैसा उसके मां-बाप चाहते थे। गला भारी हो चुका है और अब और नहीं लिख पा रही हूं। आप समझ सकते हैं मां की भावना, जो हर बच्चे को एक जैसा समझती है। बस उसी के चलते लाचार हूं।