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Saturday, June 14, 2008

ये है नॉएडा मेरी जान


दिल्ली हो या मेरठ , फरीदाबाद हो या हापुड़, और तो और बुलंदशाहर जिसे देखो नॉएडा की तरफ़ कूच कर रहा है. नॉएडा नौकरी वाला शहर जो बन गया है. एनसीआर मैं और दिल्ली मैं नॉएडा काम करने वालो का प्रतिशत कुछ ज्यादा ही हो गया है. यही नही देश के सभी भागो से लोग यह नौकरी करने के लिए भागे आ रहे है. नॉएडा रोजगार के मामले मैं होट सिटी बन गया है. मैं ख़ुद भी नॉएडा में हूँ और मेरे पति भी. एक अनार सो बीमार वाली कहावत यहां भी हो रही है. लोग इतने, और जगह की कमी. ऐसे में यह प्रोपर्टी के दाम आसमाम पर जा रहे हैं. जिन लोगों की अपनी जमीन हैं. वो चार मंजिले मकान बनाकर किराया खा खा कर धन्ना सेठ बन रहे हैं. मजबूरी में आदमी को इनके मंहगे मकान लेने पड़ते है. लड़के लड़कियां ग्रुप बनाकर एक कमरे में चार चार रहते है. खाना पेइंग गेस्ट के रूप में मकान मालकिन के घर खाया या फिर ढाबा जिन्दाबाद. यहां का पानी तो आपको बिल्कुल सूट नही करेगा. पैसा है तो एक्वा गार्ड लगवा लें या फिर तीस तीस रुपए में पानी के डिब्बे लीजिये. लाइट- भी बड़ी ही विकट समस्या है. आती कम है और जाती ज्यादा है. नॉएडा पुलिस के बारे में तो आजकल मीडिया में आप रोज ही सुन रहे है. पुलिस की नाक के नीच लूट होती है, खून तक हो जाते है. और पुलिस केवल जांच करती रह जाती है. सच मानिए तो नॉएडा की तरह यह कि पुलिस भी कुछ सुस्त है. नॉएडा में कुछ है तो वो है, बड़ी बड़ी कम्पनियां और मॉल्स. शानदार इमारतें और चमकते हुए मॉल्स. ये मॉल्स सब कुछ बेचते है. सुई से लेकर कार तक मिलेगी यहाँ.लेकिन जरा सावधान होकर जाएं क्यूकि ये मॉल्स चकाचोंध में आपकी जेब खाली कर देते है. नॉएडा का ट्रेफिक तो पूछिये मत. यहां सड़क पर ऑटो वालो की चलती है. ये सब अपनी मस्ती में चलते और रुकते हैं. ट्रेफिक नियमो की चिंता किसी को नही. लाइट ग्रीन हो या रेड, गाड़ी को सबसे आगे निकल कर ले जाना है. तीन की सीट पर चार को बिठाना और सवारी को भेड़ की तरह भर लेना इनकी पुरानी आदत है. यहां इनकी तानाशाही चली आ रही है. कुछ भी हो, नॉएडा में फिर भी भीड़ है जो कम होने की बजाये बढती ही जा रही है. नॉएडा का क्रेज सब पर चढ़ कर बोल रहा है. ये शहर लोगो को रोजगार जो देता है. जीने की एक आस देता है.