Monday, October 20, 2008
राज की टीआरपी और मराठी
राज ठाकरे बोले जा रहे है बोले जा रहे है. जय महाराष्ट्र, जय मराठी और जय मुम्बईकर . सब सुन रहे है. बाहर से आए बेचारे लोग उनकी गुन्डागर्दी का शिकार हो रहे है और मुंबई पुलिस उनकी गिरफ्तारी के लिए सही समय का इन्तजार कर रही है. राज ठाकरे को इतना पता है कि शिवसेना से अलग होने के बाद मुंबई में अपनी पहचान बनाने के लिए टीआरपी को बढ़ाना जरूरी है. और टीआरपी कैसे बड़ाई जाती है, इसका नुस्खा शायद उन्होंने (बदनाम हुए तो क्या नाम ना होगा) वाली कहावत से ली है. सो राज भाई जुट गये है बदनाम होने में. कभी मारपीट तो कभी उत्तेजक बयान देकर. कभी किसी अभिनेता के पोस्टर फाड़ कर तो कभी किसी पुलिस अधिकारी को धमकी देकर वो नाम कमा रहे है. कमाल है इतना नाम तो शिवसेना ने भी नही कमाया. लेकिन राज जानते नही है कि टीआरपी बढ़ाने के जो तरीके वो अपना रहे है, वो टिकाऊ नही हैं. यानि कि चुनाव में वो काम नही आयेंगे. मुंबई में भले ही लोग उनके डर से कुछ ना बोलते हों लेकिन सब इस बात को मानते है कि उनकी गुंडागर्दी हद से ज्यादा बढती जा रही है. राज शायद ये भूल गये हैं कि उनके जैसे नीति अगर दूसरे राज्यों में भी अपनाई गयी तो वहा रह रहे मराठी सबसे पहले उनका शिकार बनेंगे.. हो सकता है कि मुंबई में बाहरी लोगो के साथ हो रहा सलूक दूसरे प्रदेशों में बसे मराठिओं के साथ भी हो. तब राज क्या करेंगे. हो भी यही रहा है मुंबई के नाम पर लोगो में कड़वाहट घुलने लगी है. अगर ऐसा ही रहा तो वहा रोजगार ख़तम हो जायेगा. मुंबई में बसे सभी लोग तो मराठी नही है. यहाँ सब जगह से आए लोग है जिन्होंने अपनी जिन्दगी के अच्छे साल मुंबई में जिए और मुंबई को भी बहुत कुछ दिया. ऐसे लोगो कि संख्या भी काफ़ी है और यही लोग चाहे तो मिलकर राज को सही रास्ते पर नला सकते है. केवल मुठी भर कम अकाल कार्यकर्ताओं के दम पर उचल रहे राज को सबक सिखाया जन ही चाहिए वरना किसी भी प्रदेश में बाहरी लोग सुरक्षित नही रहेंगे.
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1:57 AM
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7 comments:
aapne sahi swaal uthaya hai....is fan ko yahi kuchalana hoga
सुंदर विचार
राज का गुंडाराज खत्म करने के लिए सरकार के पास ताकत चाहिए, लेकिन सबको वोट की लालच ने मार रखा है।
अच्छी पोस्ट।
कुर्सी का डर इतना नीचे गिरा देता है की बाकी सरकार ओर नेता खामोश है.....पर दुःख बुद्दिजीवी कॉम का है खासतौर से मराठी अखबार ओर बुद्दिजीवी उन्हें खुलकर इसका विरोध करना चाहिए ....कभी कभी सोचता हूँ की अगर राज ठाकरे के बेटे या बेटी कई बाहर पढने गए ओर उनके साथ ऐसा व्यहवार हुआ तो ?
आपका विचार प्रशंसनीय है पर आपने देखा जो कुछ हो रहा है महाराष्ट्र में । सब बेबस नजर आते है ।यहां मुद्दा केवल चुनाव का ही नहीं अपितु क्षेत्रवाद और देश में जातिवादी । हिन्दी और मराठी के बीच दीवार को बढ़ा रहें है । भारत किसी एक का नहीं और न महाराष्ट्र किसी एक का है पर कोई कुछ करता नहीं ।
जब सरकार निक्कमी हो , ओर वोटो की तरफ़ देखॆ तो यही होगा, अब लोगो को चाहिये इस सरकार को भी इस राज के साथ ठोकर मारे.
धन्यवाद
काहे का नाम भइये, लोग थूक रहे हैं उसके नाम पर। अगर दूसरों की गालियों को ही वह नाम समझ रहा है, तो फिर उसका इलाज तो उपर वाले के ही पास है।
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