Friday, January 23, 2009

ऐसे हुआ सी लेसिक ऑपरेशन

राज भाटिया जी ने मेरे हालिया ब्लाग पर अपनी प्रतिक्रिया में लेसिक आपरेशन के बारे में पूछा था। बता हा देती हूं, ताकि किसी को कराना हो तो डरे नहीं। दरअसल पहले करेक्ट नंबर (आंख का सही नंबर लिया जाता है)। ये प्रक्रिया दो दिन की होती है। जो लोग चश्मा लगाते हैं उनका करेक्ट नंबर एक ही बार में लिया जा सकता है और जो लोग लैंस यूज करते हैं उनके साथ सप्ताह भर लगता है। यानी कंप्यूटर और लोकल तरीके से आंख का नंबर लिया जाता है। ऐसा इसलिए जरूरी है कि आपरेशन के समय बिलकुल सही नंबर ठीक किया जा सके।
मुझे जब आपरेशन थिएटर में ले जाया गया तो मेरे डॉक्टर और पति मेरे साथ थे, डॉ अन्दर मेरे साथ आए और पति बाहर ही रहे। मेरी आंखों को एंटीबायोटिक डालकर साफ किया गया और सिर पर कपड़ा भी बांध दिया गया। अब मैं डर भी गई थी क्योंकि सिर पर कपड़ा तो मेजर आपरेशन के समय बांधा जाता है। लेकिन आदतन मजाक किए जा रही थी (शायद डर पर काबू पाने के लिए)। चौधरी आई सैंटर के डॉ. को मेरा आपरेशन करना था। भई, मशीने भी उनकी दिल्ली में सबसे बेहतर हैं इसीलिए सभी डॉक्टर अपने मरीजों को वहीं ले जाते हैं। खैर मुझे आपरेशन थिएटर में एक बड़ी सी मशीन (उसके नीचे एक बेड था) के नीचे लिटा दिया गया। फिर मेरे चेहरे पर एक कपड़ा ढक दिया गया लेकिन कपड़े में सुराख था जिसके जरिए डॉ. को मेरी दाईं आंख दिख रही थी। फिर उन्होंने मेरे डॉ. से मेरा डाटा लिया और अपने कंप्यूटर पर फीड किया। अब आंख पर एक अजीब सा सॉल्यूशन मला गया जिससे आंख सुन्न हो गई। आंख में एक कटोरीनुमा वस्तु डाली गई जिससे मुख्य आंख बाहर की तरह डॉ. के औजारों की पहुंच में आ गई । इस दौरान दर्द हुआ, ज्यादा नहीं हलका सा। फिर डॉक्टर ने लेजर के जरिए आंख का कोर्निया काटा। उस दौरान झझझझझझझझझझ की आवाज के साथ कुछ जलने की बदबू भी आई जिसके बारे में मेरे डॉक्टर मुझे पहले ही बता चुके थे। मेरी आंख के ठीक ऊपर लगी मशीन में एक लाल लाइट जल रही थी जिसे लगातार देखते रहने की हिदायत दी गई थी। हलका दर्द भी हुआ। कोर्निया काटने के बाद उन्होंने आंख में कुछ तरल डाला और चम्मचनुमा किसी चीज से आंख की सफाई की और फिर कोर्निया वापस अपनी जगह पर रख दिया। इस प्रक्रिया में महज एक मिनट का समय लगा। दूसरी आंख में भी यही क्रम अपनाया गया। पूरे ऑपरेशन के दौरान आंखों में तरल दवाई लगातार उड़ेली जाती रही।

ऑपरेशन के बाद मुझे एक पेन किलर खाने को दी गई और ज्यादा से ज्यादा समय तक आंख बंद रखने का निर्देश दिया गया। दो घंटे बाद दवाई खानी और आंखों में डालनी थी। डॉ. ने हमे अपनी गाड़ी से घर छोड़ा और घर आते ही मैं तो नींद के हवाले हुई और पतिदेव सेवा में। दवाईयों का क्रम जारी है। घर पर पतिदेव और ऑफिस में सहयोगी अपना दायित्व निभाते हैं और हम आंखलाभ कर रहे हैं। वैसे जो लोग ऑपरेशन के नाम से डरते हैं उन्हे बता दूं कि इस ऑपरेशन के ज्यादा नुकसान नहीं है। इसके तुरंत बाद आप अपने सामान्य काम कर सकते हैं। गाड़ी भी चला सकते हैं।

9 comments:

Anonymous said...

इतना पढ़के ही डर लग रहा है, इससे तो शायद चश्मा ही भला या फिर कांटेक्ट लेंस। आपका अच्छे से निपट गया ये बढ़िया रहा वैसे ये आइ सेंटर है कहाँ दिल्ली में क्या?

Anonymous said...

आपने कहा थोड़ा दर्द दिया, बस इतना काफ़ी है हमारे डरने के लिए. अच्छा विस्तार से बताया आपने. आभार.

vineeta said...

अरे तरुण जी... डरने की कोई बात नही है. जैसे आप सुई लगवाते है, ठीक उतना ही दर्द हुआ. वैसे काफी नोर्मल ओपरेशन है.

Dr. Amar Jyoti said...

बहुत उपयोगी जानकारी दी है आपने। यदि अनुमानित व्यय का भी ज़िक्र कर देतीं तो उपयोगिता और भी बढ़ जाती।

संगीता पुरी said...

अच्‍छी जानकारी...राज भाटिया जी के बहाने हमें भी मिल गयी।

Vinay said...

चलिए सब अच्छे से निपट गया, प्रभु की कृपा है


---आपका हार्दिक स्वागत है
गुलाबी कोंपलें

राज भाटिय़ा said...

मेने इस लिये पुछा की शायद हम भी यह करवा ले, तीन साल पहले सोचा था तो एक दोस्त ने हमे डरा दिया था कि इस से नुकसान बहुत होता है, ओर कई तरह के डर मन मे बिठा दिये,ओर आप का लेख पढा तो सोचा पहले आप से पुछ ले. हम बाप बेटा तीनो को चशमा लगा है, सोचता हुं, एक बार मे ही तीनो का ओप्रेशन करवा लूं.
आप का धन्यवाद

Udan Tashtari said...

अच्छा लगा..जनहित में जारी कहलाया विवरण..सभी आँखों वालों केल इए. :)

Puja Upadhyay said...

dar gaye ham bhi...ek aadh baar socha tha ki operation kara lein...par ye cornea kaatna aur wapas rakhna sun kar hi lag lag raha hai...chashma hi bhala hamein to :)

aapki aankhein acchi hone ke liye badhai.