माँ ने कभी अपने जीवन में
छतरी का उपयोग नहीं किया
क्योंकि
बारिश में उसने
घर के बाहर कभी कदम नहीं रखा।
माँ ने कभी चप्पल नहीं खरीदी
क्योंकि
दादी की पुरानी चप्पल
फेंक नहीं सकते थे।
माँ ने कभी
ताजी रोटी नहीं खाई
क्योंकि
घर में नौकर
नहीं थे।
माँ ने कभी
नई साड़ी नहीं पहनी
क्योंकि
बुआओं को
हर तीज-त्योहार पर
शगुन भेजना जरुरी होता था।
माँ कभी भी
पलंग पर नहीं सोई
क्योंकि
पलंग सिर्फ
दादा,बाबूजी और चाचाजी
के लिए था।
माँ ने कभी
बाजार नहीं देखा
क्योंकि
उसकी अपनी कोई जरुरत
ही नहीं होती थी।
शोभना चोरे के सौजन्य से....
Tuesday, July 28, 2009
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15 comments:
ATISUNDAR BHAW
ATISUNDAR BHAW
सचमुच में बहुत ही प्रभावशाली लेखन है... वाह…!!! वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी, बधाई स्वीकारें।
sach me ma aise hi hoti hai...emotional poem...
सच में माँ का इन चीज़ों पर क्या हक?वो तो सब की इच्छा पूरी करने में ही खुश रहती है....
बहुत सुन्दर.. और भावुक.. एसे ही होती है माँ...
nice poem...........
Excellent..! Really!
बहुत सी माताओं की स्थिति उजागर करती आपकी ये पोस्ट दिल को छू गई।
exceelent marmsparshi
only a daughter can think about her mother....
gud poem....keep it up...have a nice day
bahuti achcha blog
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