Tuesday, July 28, 2009

माँ ने कभी बाज़ार नहीं देखा ...

माँ ने कभी अपने जीवन में
छतरी का उपयोग नहीं किया
क्योंकि
बारिश में उसने
घर के बाहर कभी कदम नहीं रखा।

माँ ने कभी चप्पल नहीं खरीदी
क्योंकि
दादी की पुरानी चप्पल
फेंक नहीं सकते थे।

माँ ने कभी
ताजी रोटी नहीं खाई
क्योंकि
घर में नौकर
नहीं थे।

माँ ने कभी
नई साड़ी नहीं पहनी
क्योंकि
बुआओं को
हर तीज-त्योहार पर
शगुन भेजना जरुरी होता था।

माँ कभी भी
पलंग पर नहीं सोई
क्योंकि
पलंग सिर्फ
दादा,बाबूजी और चाचाजी
के लिए था।

माँ ने कभी
बाजार नहीं देखा
क्योंकि
उसकी अपनी कोई जरुरत
ही नहीं होती थी।

शोभना चोरे
के सौजन्य से....

15 comments:

ओम आर्य said...

ATISUNDAR BHAW

ओम आर्य said...

ATISUNDAR BHAW

Dr. Ravi Srivastava said...

सचमुच में बहुत ही प्रभावशाली लेखन है... वाह…!!! वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी, बधाई स्वीकारें।

डिम्पल मल्होत्रा said...

sach me ma aise hi hoti hai...emotional poem...

RAJNISH PARIHAR said...

सच में माँ का इन चीज़ों पर क्या हक?वो तो सब की इच्छा पूरी करने में ही खुश रहती है....

रंजन said...

बहुत सुन्दर.. और भावुक.. एसे ही होती है माँ...

Harshvardhan said...

nice poem...........

कुश said...

Excellent..! Really!

Kulwant Happy said...

बहुत सी माताओं की स्थिति उजागर करती आपकी ये पोस्ट दिल को छू गई।

निर्झर'नीर said...

exceelent marmsparshi

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

only a daughter can think about her mother....

kavi said...

gud poem....keep it up...have a nice day

Dharmesh said...

bahuti achcha blog
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