पन्द्रह अगस्त, रक्षा बंधन और फ़िर रविवार की छुट्टी ने जनता को तीन दिन की मौज उपहार में दी हैं. हम तो बड़े ही खुश है. महीना शुरू होने से पहले ही लोग इन तीन दिनों की मौज को केश कराने का प्लान बना रहे हैं.. हमारे कई साथी (जो बाहर प्रदेशों से आकर यह काम करते है.) इन तीन दिनों का पूरा लुत्फ़ अपने परिवार के साथ बिताने के लिए आज ही गावँ कूच कर गये हैं. साथ वाले मिश्रा जी तो बुधवार की शाम को ऑफिस से ही रेलवे स्टेशन पहुँच गये. बैग्स सुबह अपने साथ ऑफिस ले गये थे, वही से निकल लिए. ... कहने लगे. कौन समय ख़राब करे गुरूवार की छुट्टी ले ली है और अब रविवार की रात को ही लौटेंगे. यानि एक दिन की छुट्टी पर चार छुट्टी का बोनस. बाय वन गेट फोर.....
ये रिवाज़ एनसीआर की छोटी बड़ी सभी कंपनिओं में हो गया हैं. ज्यादातर कर्मचारी बाहर से आए होते है जो त्योहारों पर खूंटे से छूटे बैल की तरह अपने गावं की ओर भागते हैं. ओर काम करने के लिए बेचारे दिल्ली वाले यानि लोकल रह जाते है. हालाँकि बाहर प्रदेशों से आए लोग रिटेल में छुट्टी नही करते...वो एक या डेढ़ हफ्ते की थोक भावः की छुट्टी करते है. और लोकल लोग रिटेल में छुट्टी करते है. आज मामा के यहाँ जाना है. आज बिजली का बिल जमा करना था. कोई सगा बीमार था, उसे देखने अस्पताल चला गया...घर की मरम्मत करानी है....आउट साइडर अपनी या बहन की शादी, होली दीवाली या छठ पर ही घर जाते है और बाकी दिनों वो कंपनी के प्रति पूरी वफादारी दिखाते है. ...
ये तो हुई छुट्टी की बात... अब बात करते हैं माहौल की....छुट्टी की रोमानियत मन में ऐसी हैं कि माहौल भी रंगा हुआ नज़र आ रहा है. बाज़ार राखिओं और पतंगों से पटे पड़े है. औरतें राखियों और मर्द-बच्चे पतंगों पर टूटे पड़े हैं. जहा देखो आज़ादी के गीत और रक्षा बंधन के गाने लाउड स्पीकरों पर जोर जोर से बजाये जा रहे है. कमाल की बात है एक दिन आज़ादी का और दूसरा दिन बंधन का. सावन की खुमारी भी सिर चढ़कर बोल रही है. क्या करें मौसम भी तो मजेदार हो गया है.
सड़कों पर बिकती राखियाँ और आसमान में उडती पतंगे एक अजीब सा रोमांच पैदा कर रही है. चाहे पतंग उडानी ना आती हो लेकिन कभी भी जब सामने कोई कटी पतंग उडती हुई नज़र आती है तो हाथ अपने आप ही एकबारगी उसे लपकने के लिए उठ जाते है. बच्चे लम्बी लम्बी झाडियाँ लिए पतंग लूटने को भागे फ़िर रहे है. हाथ में झाडी और पीठ पर लूटी हुई पतंगों का ढेर ....सच किसी जंग में जा रहे योद्धा की तरह महसूस करते होंगे. पिंकू, सोनू मोनू, बबलू को कल के लिए तैयारी भी तो करनी है...पतंगों के पेंच बांधे जा रहे होंगे. चर्खिया तैयार है और चर्खिया लेकर खड़ी होने के लिए छोटी बहन को भी राज़ी कर लिया है. कल छत पर ही खाना पीना होगा जोरदार हंगामा होगा. खूब गाने बजेंगे और सारे दिन पतंग उडाएंगे.. किसी की पतंग काटी तो आवाज़ आएगी .. आई बोट्टे- वो काटा- फ़िर पतंग पर आधारित कोई फिल्मी गाना बजेगा और सीटी का शोर..... उधर पापा सोच रहे है, सारा दिन आराम करेंगे. खाने पीने में भी कुछ स्पेशल बनवा लेंगे. एक आध पतंग भी उडा लेंगे. बच्चे भी खुश हो जायेंगे और बीवी भी. उधर बीवी जी तो अगले दिन की तैयारी में जुटी है. कौन सी राखी लूँ भाई के लिए. ये सुनहरी, ये मेटल की या ये चंदन की...भइया ठीक रेट लगाओ...पाँच लेनी है..... मिठाई क्या लूँ... साड़ी तो आ गयी ब्लाउस कब आएगा. ओह मेंहदी भी लगवानी है.
ये क्या...सबके प्लान बन रहे हैं और हम हैं कि अभी तक सोचा ही नही क्या करना है. चलिए अब हम भी कुछ पालन बनते है....आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामना और हेप्पी राखी....
ये रिवाज़ एनसीआर की छोटी बड़ी सभी कंपनिओं में हो गया हैं. ज्यादातर कर्मचारी बाहर से आए होते है जो त्योहारों पर खूंटे से छूटे बैल की तरह अपने गावं की ओर भागते हैं. ओर काम करने के लिए बेचारे दिल्ली वाले यानि लोकल रह जाते है. हालाँकि बाहर प्रदेशों से आए लोग रिटेल में छुट्टी नही करते...वो एक या डेढ़ हफ्ते की थोक भावः की छुट्टी करते है. और लोकल लोग रिटेल में छुट्टी करते है. आज मामा के यहाँ जाना है. आज बिजली का बिल जमा करना था. कोई सगा बीमार था, उसे देखने अस्पताल चला गया...घर की मरम्मत करानी है....आउट साइडर अपनी या बहन की शादी, होली दीवाली या छठ पर ही घर जाते है और बाकी दिनों वो कंपनी के प्रति पूरी वफादारी दिखाते है. ...
ये तो हुई छुट्टी की बात... अब बात करते हैं माहौल की....छुट्टी की रोमानियत मन में ऐसी हैं कि माहौल भी रंगा हुआ नज़र आ रहा है. बाज़ार राखिओं और पतंगों से पटे पड़े है. औरतें राखियों और मर्द-बच्चे पतंगों पर टूटे पड़े हैं. जहा देखो आज़ादी के गीत और रक्षा बंधन के गाने लाउड स्पीकरों पर जोर जोर से बजाये जा रहे है. कमाल की बात है एक दिन आज़ादी का और दूसरा दिन बंधन का. सावन की खुमारी भी सिर चढ़कर बोल रही है. क्या करें मौसम भी तो मजेदार हो गया है.
सड़कों पर बिकती राखियाँ और आसमान में उडती पतंगे एक अजीब सा रोमांच पैदा कर रही है. चाहे पतंग उडानी ना आती हो लेकिन कभी भी जब सामने कोई कटी पतंग उडती हुई नज़र आती है तो हाथ अपने आप ही एकबारगी उसे लपकने के लिए उठ जाते है. बच्चे लम्बी लम्बी झाडियाँ लिए पतंग लूटने को भागे फ़िर रहे है. हाथ में झाडी और पीठ पर लूटी हुई पतंगों का ढेर ....सच किसी जंग में जा रहे योद्धा की तरह महसूस करते होंगे. पिंकू, सोनू मोनू, बबलू को कल के लिए तैयारी भी तो करनी है...पतंगों के पेंच बांधे जा रहे होंगे. चर्खिया तैयार है और चर्खिया लेकर खड़ी होने के लिए छोटी बहन को भी राज़ी कर लिया है. कल छत पर ही खाना पीना होगा जोरदार हंगामा होगा. खूब गाने बजेंगे और सारे दिन पतंग उडाएंगे.. किसी की पतंग काटी तो आवाज़ आएगी .. आई बोट्टे- वो काटा- फ़िर पतंग पर आधारित कोई फिल्मी गाना बजेगा और सीटी का शोर..... उधर पापा सोच रहे है, सारा दिन आराम करेंगे. खाने पीने में भी कुछ स्पेशल बनवा लेंगे. एक आध पतंग भी उडा लेंगे. बच्चे भी खुश हो जायेंगे और बीवी भी. उधर बीवी जी तो अगले दिन की तैयारी में जुटी है. कौन सी राखी लूँ भाई के लिए. ये सुनहरी, ये मेटल की या ये चंदन की...भइया ठीक रेट लगाओ...पाँच लेनी है..... मिठाई क्या लूँ... साड़ी तो आ गयी ब्लाउस कब आएगा. ओह मेंहदी भी लगवानी है.
ये क्या...सबके प्लान बन रहे हैं और हम हैं कि अभी तक सोचा ही नही क्या करना है. चलिए अब हम भी कुछ पालन बनते है....आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामना और हेप्पी राखी....