चंदा जैसी रोटी को खाने की जिद पाले है.
इंसां लार टपकती कितनी लंबी लीभ निकाले है.
बिजली के नंगे तारों का खौफ दिलो में बैठा है.
इस कीमत पर ही आंखों ने देखे आज उजाले हैं.
नर्म रोटिया सिर्फ़ अमीरों के हिस्से में आयी हैं.
गुरबत के चूल्हों पर तो बस पत्थर गये उछाले हैं.
इमां की कश्ती पर बैठे कुछ ही मांझी ऐसे हैं.
दौलत के बहते दरिया में जो पतवार संभाले हैं.
पैदा होते हम कागज़ के पैर लिए तो अच्छा था.
इस दुनिया में सब कागज पर सड़क बनाने वाले हैं.
इंसां की काली करतूतों से गाफिल यूँ लगता है.
आने वाले दिन मावस की रातों से भी काले हैं.
विशाल गाफिल से साभार.
13 comments:
बिजली के नंगे तारों का खौफ दिलो में बैठा है.
इस कीमत पर ही आंखों ने देखे आज उजाले हैं.
नर्म रोटिया सिर्फ़ अमीरों के हिस्से में आयी हैं.
गुरबत के चूल्हों पर तो बस पत्थर गये उछाले हैं.
इमां की कश्ती पर बैठे कुछ ही मांझी ऐसे हैं.
दौलत के बहते दरिया में जो पतवार संभाले हैं.
पैदा होते हम कागज़ के पैर लिए तो अच्छा था.
इस दुनिया में सब कागज पर सड़क बनाने वाले हैं.
इंसां की काली करतूतों से गाफिल यूँ लगता है.
आने वाले दिन मावस की रातों से भी काले हैं.
बहुत प्यारे शेर हैं, दिल का छू जाने वाले। बधाई।
गुरबत के चूल्हों पर तो बस पत्थर गये उछाले हैं.
इमां की कश्ती पर बैठे कुछ ही मांझी ऐसे हैं.
दौलत के बहते दरिया में जो पतवार संभाले हैं.
पैदा होते हम कागज़ के पैर लिए तो अच्छा था.
इस दुनिया में सब कागज पर सड़क बनाने वाले
वाह क्या बात है।
नर्म रोटिया सिर्फ़ अमीरों के हिस्से में आयी हैं.
गुरबत के चूल्हों पर तो बस पत्थर गये उछाले हैं.
bahut achche sher.....
बिजली के नंगे तारों का खौफ दिलो में बैठा है.
इस कीमत पर ही आंखों ने देखे आज उजाले हैं
bahut khoob.......
aapki kavita ki kalpana shakti bahut acchi hai,ise jaari rakho ,tum me kuch alag hai.
बहुत बढिया रचना है।
इंसां लार टपकती कितनी लंबी लीभ निकाले है.
बिजली के नंगे तारों का खौफ दिलो में बैठा है.
अति सुन्दर। आज पहली बार आना हुआ।
aap mere blog par aaye, shukriya. aage bhi aap ke amulya shabdon ka intizaar rahega....
...Ravi
aaj pehli baar padha aapko ,bahut hi sundar lekhan......
यहाँ प्रस्तुत करने का आभार. आनन्द आ गया.
तबीयत कैसी है अब?
तबियत तो ठीक है उड़ान भाई... पर शनि महाराज का प्रकोप चल रहा है जरा आजकल. आपके पहले ब्लॉग पड़ने के लिए समय निकाल रही हू फिलहाल...
jawaab nahin
achchaa likhaa hai.
इमां की कश्ती पर बैठे कुछ ही मांझी ऐसे हैं.
दौलत के बहते दरिया में जो पतवार संभाले हैं.
भाई आप के यहां पहली बार आया तो आप के शेर पढते ही मुह से वाह वाह निकली,आप ने एक सच्चाई अपनी कलम से लिख दी हे धन्यवाद
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