Saturday, August 2, 2008

चंदा की रोटी...

चंदा जैसी रोटी को खाने की जिद पाले है.

इंसां लार टपकती कितनी लंबी लीभ निकाले है.

बिजली के नंगे तारों का खौफ दिलो में बैठा है.

इस कीमत पर ही आंखों ने देखे आज उजाले हैं.

नर्म रोटिया सिर्फ़ अमीरों के हिस्से में आयी हैं.

गुरबत के चूल्हों पर तो बस पत्थर गये उछाले हैं.

इमां की कश्ती पर बैठे कुछ ही मांझी ऐसे हैं.

दौलत के बहते दरिया में जो पतवार संभाले हैं.

पैदा होते हम कागज़ के पैर लिए तो अच्छा था.

इस दुनिया में सब कागज पर सड़क बनाने वाले हैं.

इंसां की काली करतूतों से गाफिल यूँ लगता है.

आने वाले दिन मावस की रातों से भी काले हैं.

विशाल गाफिल से साभार.

13 comments:

admin said...

बिजली के नंगे तारों का खौफ दिलो में बैठा है.
इस कीमत पर ही आंखों ने देखे आज उजाले हैं.

नर्म रोटिया सिर्फ़ अमीरों के हिस्से में आयी हैं.
गुरबत के चूल्हों पर तो बस पत्थर गये उछाले हैं.

इमां की कश्ती पर बैठे कुछ ही मांझी ऐसे हैं.
दौलत के बहते दरिया में जो पतवार संभाले हैं.

पैदा होते हम कागज़ के पैर लिए तो अच्छा था.
इस दुनिया में सब कागज पर सड़क बनाने वाले हैं.

इंसां की काली करतूतों से गाफिल यूँ लगता है.
आने वाले दिन मावस की रातों से भी काले हैं.

बहुत प्यारे शेर हैं, दिल का छू जाने वाले। बधाई।

शोभा said...

गुरबत के चूल्हों पर तो बस पत्थर गये उछाले हैं.

इमां की कश्ती पर बैठे कुछ ही मांझी ऐसे हैं.

दौलत के बहते दरिया में जो पतवार संभाले हैं.

पैदा होते हम कागज़ के पैर लिए तो अच्छा था.

इस दुनिया में सब कागज पर सड़क बनाने वाले
वाह क्या बात है।

vipinkizindagi said...

नर्म रोटिया सिर्फ़ अमीरों के हिस्से में आयी हैं.
गुरबत के चूल्हों पर तो बस पत्थर गये उछाले हैं.

bahut achche sher.....

डॉ .अनुराग said...

बिजली के नंगे तारों का खौफ दिलो में बैठा है.

इस कीमत पर ही आंखों ने देखे आज उजाले हैं
bahut khoob.......

Anonymous said...

aapki kavita ki kalpana shakti bahut acchi hai,ise jaari rakho ,tum me kuch alag hai.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया रचना है।

सुशील छौक्कर said...

इंसां लार टपकती कितनी लंबी लीभ निकाले है.
बिजली के नंगे तारों का खौफ दिलो में बैठा है.
अति सुन्दर। आज पहली बार आना हुआ।

Dr. Ravi Srivastava said...

aap mere blog par aaye, shukriya. aage bhi aap ke amulya shabdon ka intizaar rahega....

...Ravi

art said...

aaj pehli baar padha aapko ,bahut hi sundar lekhan......

Udan Tashtari said...

यहाँ प्रस्तुत करने का आभार. आनन्द आ गया.

तबीयत कैसी है अब?

vineeta said...

तबियत तो ठीक है उड़ान भाई... पर शनि महाराज का प्रकोप चल रहा है जरा आजकल. आपके पहले ब्लॉग पड़ने के लिए समय निकाल रही हू फिलहाल...

Anonymous said...

jawaab nahin

achchaa likhaa hai.

राज भाटिय़ा said...

इमां की कश्ती पर बैठे कुछ ही मांझी ऐसे हैं.
दौलत के बहते दरिया में जो पतवार संभाले हैं.

भाई आप के यहां पहली बार आया तो आप के शेर पढते ही मुह से वाह वाह निकली,आप ने एक सच्चाई अपनी कलम से लिख दी हे धन्यवाद