दिल्ली में आज सुबह से ही बरसात हो रही है. दिल्ली ही नही इससे जुड़े आस पास के इलाकों में भी बादल मेहरबान है. यूँ तो सभी को ये मौसम अच्छा लगता है, भीगा भीगा समां (भले ही बीमारी हो जाए), चारों और हरियाली (कूडे को मत देखिये), टिप टिप बहता पानी (सड़क पर भरे समंदर को नज़रअंदाज कर दें ) , घर में बनते गरमागरम पकोडे और चाय (बशर्ते मैडम का मूड ठीक हो ), से सारी बातें बरसात को सार्थक करती है और इसीलिए बरसात लोगो को अच्छी लगती है. लेकिन यही बरसात ऑफिस जाने वालो को खलनायिका लगती है. कमबख्त छुट्टी करवा देती है या बीमार कर डालती है. कई की माशुकाएं तो इतनी रोमांटिक हो जाती है कि आशिक को भी मजबूरन बहाना बना कर ऑफिस से बंक मारनी पड़ती है. रात भर से हो रही बरसात के चलते ऑफिस जाने वाले इस कदर डर जाते है कि मुह अंधेरे तैयार हो जाते है, इस जुगाड़ में कि जैसे ही रुकेगी तो निकल पड़ेंगे. कुछ लोग तो इस चक्कर में रैन कोट पहने घूमते है. कि कहीं पहनने में समय ख़राब न हो. लेकिन बादल मरे इतने बेईमान कि यहाँ थम गये, आप निकले और अगले मोड़ पर कमबख्त बरस पड़े आप पर. कहा तक बचोगे भाई.
ऐसे में रैन कोट और बरसाती कुछ काम नही आती. सिर सूखा बच गया तो पैर भीग जायेंगे और पैर बच गये तो सिर भीग जाएगा. बस से आने जाने वालो का तो और बुरा हाल है. बस स्टाप पर बाइक और स्कूटर वालो का जमघट रहता है ऐसे में खुले में बस का इन्तजार करना पड़े तो पता चले. छाते ऐसे में आपदा प्रबंधन तो करते हैं लेकिन पूरा नही बचा पते. कमर से नीचे का हिस्सा तर हो जाएगा. बस से उतरने के बाद भी भीगना पड़ता है.
बाइक वालो के साथ कई तरह की दिक्कते होती हैं. आस पास से निकलने वाले जानबूझकर पानी की बौछार आप पर मार कर जाएंगे और आप कुछ नही कर पायेंगे. किसी दिन लगा कि बरसात होने वाली है, आप रैन कोट पहन कर निकल लिए और बरसात दगा दे गयी अब सारे रास्ते मूर्खों कि तरह रैन कोट पहने चलो.
किस्सा रवि का. ..
रेवाडी से आने वाले हमारे सहकर्मी रवि प्रकाश रोज नौ बजे (पाँच बजे घर से निकलने पर ) ऑफिस पहुँचते हैं. रोज तो अपने दोस्त के साथ उनके वाहन से आते है तो २ घंटे का समय बच जाता है. लेकिन जिस दिन दोस्त नही आ पता, रवि प्रकाश को ऑफिस आने के लिए नेट ४ घंटे लगते है. रेवाडी से धौला कुँआ फिर महारानी बागः और फिर नॉएडा. बेचारे घर से पाँच बजे निकलते है और नौ बजे ऑफिस पहुचते है. आज हमने सोचा की रवि मिश्रा तो ऑफिस नही आ पाएंगे लेकिन आश्चर्य जनक रूप से रवि मिश्रा आठ बजे ही ऑफिस आ गये. हमने पूछा तो उन्होंने बताया आज सडको पर बारिश के चलते भीड़ कम थी तो जल्दी पहुँच गये. उन्होंने बताया कि वो रेन कोट पहन कर बस में आए तो हमारी हँसी छूट गयी. बोले कि ट्रिक काम कर गयी. बारिश के दिनों में बसों में खिड़की के पास की सीट पर कोई नही बैठता क्युकि वह पानी आता है. लेकिन में रेन कोट पहन कर उसी गीली सीट शान से बैठा. रोज तो लटकते हुए आते है, ये बरसात की मेहरबानी थी कि आज कई महीनो बाद सीट मिली. कहने लगे कि लोग मुझे हैरान होकर देख तो रहे थे लेकिन आज मैंने पूरा मज़ा लिया. बारिश में खूब चला और टाइम से ऑफिस भी पहुँचा. मतलब की बारिश से हमारे रवि भाई को फायदा हो गया. चलो कुछ तो अच्छा हुआ.
नोट--आज का लेख जल्दबाजी में बरसात का मौका देख कर लिखा गया लेख है. बस अपने अनुभव आपको बताने थे. और रवि भाई का प्रकरण डालना था. त्रुटि हो गयी हो तो माफ़ करे. यही अपील बरसात से भी है
Friday, August 8, 2008
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9 comments:
हाँ आज दिल्ली की बारिश खूब है भीग कर ही आ रहे हैं अभी ...:)और रवि जी का आइडिया कमाल का लगा ..:)
विनिता जी आप विजेता हे मेरी पहेली की, क्या आप बताएगी की जबाब आप को पहले से मालुम था या फ़िर मेरे हिन्ट से अंदाज लगाया ?
आप ने दिल्ली की बरसात का लिख कर हमे पुरानी यादो मे ला दिया, वो बारिस मे भीगना, लोगो के घरो से फ़ल तोडना, खुब शरारते करना,वेसे अब भी हमे गर्मियो मे कपडो समेत बरसात मे भीगना अच्छा लगता हे.
आप के सुन्दर लेख के लिये धन्यवाद
बरसात की बात ही कुछ और होती है.
पहले तो हमेशा ही इंतज़ार रहता था कि कब बारिश आए और स्कुल जाने से छुट्टी मिले. एक बार स्कुल जाने का समय बीता नहीं कि बारिश में जाकर खेलना शुरू.
बहुत मज़ा आता था.
आपने पुराणी यादें ताज़ा कर दी.
बहुत सुन्दर लिखा है। इसीलिए बारिश में हर दिल दीवाना हो जाता है। आनन्द लीजिए बारिश का।
बारिश की बात ही निराली होती है। शायद ही कोई होगा, जिसकी कुछ न कुछ यादें बारिश से न जुडी हुई हों। और जाहिर सी बात है कि इस पोस्ट को पढ कर वे जख्म तो हरे हो ही जाएंगे।
ये सही तरीका बताया रवि जी ने सीट कबाड़ने का-बहुत बढ़िया लगा अनुभव सुनना.
सच है बारिश का अपना मजा है
पर अपने जयपुर में तो कई दिन से बारिश ही नहीं आई। रवि को जुबान दी उसका आइडिया लोगों तक पहुंचाया इसके लिए शुक्रिया।
SAHI IDEA HAI RAVI JI....KAHTE HAI NA AAVSHYAKTA AVISHKAAR KI JANNI HAI.
Excellent description. I miss Delhi and I miss the rainy season of Delhi. Rain still brings smile on my face.
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