Thursday, July 31, 2008

वो गरीब पुलिसवाला...


जिस मकान में हम लोग रह रहे है, वहां सामने के बहुमंजिला मकान में तीसरे माले पर एक परिवार है. निम्न मध्यम वर्गीय परिवार, दो बेरोजगार बेटे, एक आलसी सी अधेड़ माँ और एक ५० साल का पुलिसवाला. चौंक गये न. जी हां पुलिसवाला. दो बेरोजगार बेटो का बाप और पुलिस वाला. आलसी सी अधेड़ बीवी का पति और वो भी दिल्ली की पुलिस में. फ्लेट्स में तीसरी मंजिल लेने वाला कोई निम्न मध्यम वर्गीय नौकरी पेशा आदमी हो सकता है, पुलिस वाला नही. और पुलिस वाला निम्न मध्यम वर्गीय तो हो ही नही सकता. पुलिस वाला चाहे किसी भी पोस्ट पर हो उच्च वर्गीय ही होगा. ये दिल्ली और भारत के अधिकतर इलाको का अलिखित इतिहास और क़ानून है. यहाँ पुलिसवाले गरीब नही मिलेंगे और जो मिलेंगे हमारे सामने वाले की तरह किसी ब्लॉग में जगह पा लेंगे. बहरहाल मैं कहानी सुना रही हु उस पुलिसवाले की जो हमारे सामने रहता है. सुबह पता नही कब हाथ में डंडा हिलाता हुआ बस स्टाप की तरफ़ निकल जाता है. उसके दोनों बेरोजगार बेटे उसके जाते ही छत पर पतंग उडाने चले जाते है और आलसी सी अधेड़ बीवी ( हमारे पति महाशये ने उनका यही नामकरण किया है) कपड़े सीने के बहाने बालकनी में बैठकर हमारे घर की और ताकती रहेगी. पति को शायद उसकी यह ताकने की कला नही भाती और उससे बहुत चिड़ते हैं.उस घर में दो कमरे हैं. छोटी सी रसोई और एक अदद बालकनी हैं. (अगर ये बालकोनी न होती तो शायद पुलिसवाले की गरीबी से हम और आप अनभिज्ञ रहते. ) घर में बेहद सिंपल फर्नीचर, खाट भी है. कूलर नही है और पंखे की हवा सही तरह से लेने के लिए सब जमीन को ठंडा करके जमीन पर ही सोते है. क्या उसके पास इतने पैसे नही कि जमीन लेकर मकान बना सके. फ्लेट में तो मजबूर लोग रहते है. आखिर कितना गरीब है ये पुलिस वाला. पता नही क्यों ऐसे रहते है. मन में हलचल होती है लेकिन पूछने की हिम्मत नही होती. शाम को जब पुलिसवाला डंडा हिलाता हुआ घर आता है तो भी उसके हाथ आश्चर्यजनक रूप से खाली होते है जो आम तौर पर दूसरे पुलिस वालों के नही होते. उसके बेटे किसी मलाईदार कंपनी में नौकरी क्यों नही करते, बीवी स्मार्ट सी बनकर क्यों नही रहती, घर में शानदार फर्नीचर क्यों नही है. वो अब भी खाट पर बैठकर क्यों खाता है, और वो मोटा तो कतई नही है. बिल्कुल स्लिम ट्रिम. उसके घर पर भी कोई नही आता. ना जी कोई नही, वर्ना पुलिसवालों के घर तो उनकी अबसेन्ट में भी फरियादी आते रहते है. कोई नल ठीक करवा रहा है तो कोई गमले रखवा रहा है, लेकिन यहाँ ऐसा कुछ नही, कल तो पुलिसवाले की बीवी एक पौधा लेने के लिए विक्रेता से लड़ रही थी. आप लोगो की तरह मेरे मन में भी सवाल उठता है कि आख़िर वो पुलिसवाला है तो पुलिसवाले की तरह दिखता क्यों नही है. क्यों रिश्वत से उसका घर भरा नही है. उसके बेटे उसके पुलिसवाला होने के वावजूद बेरोजगार क्यों है. क्या वो अपने पड़ का सदुपयोग करके अपने बेटो को सेट नही करवा सकता. ऐसा है तो क्यों है. क्या उसे सही तरह से घूस नही मिलती या वो घूस नही लेता. क्या वो शरीफ है या देखने का नाटक करता है. क्या उसके बेनामी खाते होंगे. हालाँकि इसी गली मे एक भूतपूर्व थानेदार का भी मकान (आलिशान बंगला और एक बहुमंजिला फ्लेट) है लिकिन उसकी शान बघारने लिए पेज कम पड़ जाएगा, वो फिर कभी. समझ में नही आता की इस पुलिसवाले को क्या परेशानी है. ये अमीर क्यों नही है, ये मोटी तोंदवाला क्यों नही है. इसे रिश्वत खानी नही आती क्या. क्या कोई इसकी मदद करेगा. इसे घूस खानी सिखा दे कोई, तो हम भी शर्म से नही गर्व से कह पाएंगे. की हम पुलिसवाले के घर के सामने रहते है.

6 comments:

admin said...

काश ऐसे पुलिसवाले यत्र सत्र सर्वत्र होते।

vipinkizindagi said...

achchi post hai

डॉ .अनुराग said...

jis din aise police vale sarvatr ho jayenge.bhatat sarkar apne aap unki tankhavaah bada dengi.....

Anonymous said...

कभी हिम्मत करके उसी से या उसकी बीवी-बच्चों से ख़ुद ही पूछिए, हो सकता है माजरा कुछ और ही निकले.

राज भाटिय़ा said...

मुझे मान हे ऎसे पुलिस वालो पर, जो अपना ईमान नही बेचते, ओर भारत टिका हे ऎसे ही पुलिस वालो के कंधो पर...
धन्यवाद

Smart Indian said...

बेईमानों की इफरात होते हुए भी जगत का काम-काज चल रहा है. कभी कभी सोचता हूँ दुनिया किसके कन्धों पर टिकी है.