Wednesday, July 2, 2008

क्या कश्मीर हमारा नही


कश्मीर में अमरनाथ यात्रा बोर्ड को दी गयी जमीन का विरोध देखकर लगता है कि कश्मीर हिन्दुस्तान का नही पकिस्तान का हिस्सा है और हिंदू वहा शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं. राज्य सरकार का रवैया भी हैरान कर देने वाला था. अमरनाथ यात्रा हिंदुओं की आस्था का प्रतीक ही नही बल्कि हिंदू मुस्लिम एकता की एक मिसाल है. हिंदुओं को यात्रा स्थल तक पहुँचने का काम मुस्लिम करते हैं. वो भी पूरी लगन के साथ. दशकों से ये मिसाल चली आ रही थी कि इसे विराम देने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है. यात्रिओं के लिए दी गयी जमीन का विरोध राजनीति रंग ले चुका है. क्या कश्मीर केवल मुस्लिमों का है. क्या हिंदुओं का यहाँ कुछ नही. ये हिन्दुस्तान का हिस्सा है. और यहाँ की जर-जमीन पर हिंदुओं का भी उतना ही हक है जितना मुस्लिमो का. कुछ लोगो के विरोध को देखकर राज्य सरकार ने जमीन देने का फ़ैसला रद्द कर दिया जिससे ये साबित हो गया कि सरकार राज्य का नही बल्कि अपने वोट बैंक का ज्यादा ध्यान देती है. आख़िर वन क्षेत्र की थोडी सी जमीन देने से क्या हरियाली ख़तम हो जाती. क्या डल झील पर शिकारे बनाने से प्रकृति दूषित नही होती. और अमरनाथ यात्रिओं के लिए इस जमीन पर बनाये गये निर्माण तो अस्थाई होते. फ़िर इतना बवाल क्यों. इसके पीछे अलगाववादी नेताओं के वो धारणा काम कर रही है कि कश्मीर उनका है और हिंदुओं या हिन्दुस्तानिओंका नही. ऐसे में जब बोर्ड के लिए जमीन दी गयी तो उनको लगा कि उनकी जमीन पर कब्जा किया जा रहा है. सरकार एक बात तो मान ले कि उनसे ढुलमुल रवैये के कारण कश्मीर हमारे हाथ से निकलता जा रहा है. क्या कश्मीर की सुरक्षा का जिम्मा केवल सुरक्षा बलों का है. सरकार को जमीन नही लोगो के दिलों को सुरक्षित करना चाहिए जो अलगाववादिओं के शिकंजे में आ गये है. ऐसा ही चलता रहा हो कश्मीर की आवाम अपने मुल्क की बजाये दूसरे मुल्क का साथ देगी और हम देखते रह जायेंगे. अलगाव वादिओं के प्रति सख्त रवैया अपना कर सरकार अवाम में फ़ैल रहे जहर को रोक सकती है. अलगाव वादिओं से बातचीत के बजाये उन पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए ताकि जनता के दिलों में फ़ैल रही नफरत रुक सके. सुरक्षा बलों पर हो रहे हमले और उनका विरोध देश के प्रति बढ रही उपेक्षा का प्रतीक है. जो दिन पर दिन बढता जायेगा और एक दिन चरम पर आ जाएगा.इससे बचना होगा.लोगो के दिलों मे देश के लिए खोया प्यार फ़िर से लाना होगा.

4 comments:

संजय बेंगाणी said...

पाकिस्तान जिन्दाबाद कहने वालो के हिसाब से तो कश्मीर हमारा नहीं है, और न ही उनके आगे घुटने टेकने वाली सरकार के हिसाब से.

भुवन भास्कर said...

विनीता जी, मुझे लगता है कि बोर्ड को जमीन दिए जाने के मुद्दे पर घाटी में हुए विरोध को सही परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है। इस विरोध को कश्मीरी राष्ट्रवाद का विरोध मानकर हम पाकिस्तानी षडयंत्र को ही पुष्ट कर रहे हैं। यह केवल एक स्थानीय विरोध है, जिसके पीछे अपनी रोजी-रोटी और रोजगार छिनने का डर है। क्योंकि कश्मीरियों में यह अफवाह फैलाई गई थी कि वह जमीन बोर्ड को स्थाई निर्माण कर बाहर से लोगों को बसाने के लिए दी गई है। इस पूरे षडयंत्र को बड़े कैनवास पर देखने की जरूरत है।

गुस्ताखी माफ said...

एकदम खरी खरी सही सोच है विनीता जी आपकी, लेकिन वोटों के भूखों और बेवकूफों को समझाने की कोशिश बेकार है।

संजय बेंगाणी said...

भास्कर साहब कोई भी मूर्ख समझ सकता है कि इतनी सी जमीन पर कितनो को बसाया जा सकता है?

जनसंख्या का अनुपात भी ऐसे खुलमखुल्ला नहीं बिगाड़ा जा सकता, या तो खदेड़ा जाता है या गुपचुप बसाया जाता है जैसे असम में हो रहा है.