Saturday, July 5, 2008

मेरा मन

इक छोटा सा बच्चा सा है मेरा मन,
मां कहती है बड़ा अच्छा सा है मेरा मन
जिन्दगी की चिलचिलाती धूप में,
रसभरे अंगूरों का गुच्छा सा है मेरा मन

5 comments:

L.Goswami said...

sundar abhivyakti.likhte rahen..

सतीश पंचम said...
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सतीश पंचम said...

अच्छा मुक्तक लिखा, जारी रखें।

36solutions said...

चार पंक्तियों में ही मन को परिपूर्णता के साथ प्रस्तुत किया आपने । धन्यवाद ।

डॉ .अनुराग said...

is man ko yunhi banaye rakhiye....