Tuesday, July 15, 2008

उल्लू बनाया आपने...


काफ़ी कम लोग जानते है कि दिल्ली के प्रगति मैदान (जहां हर साल ट्रेड फेयर लगता है) में शाकुंतलम थियेटर हैं जहां हर भाषा की, नई और पुरानी लेकिन बेहतरीन फिल्म दिखाई जाती है. अन्य सिनेमा हॉल कि तरह यहाँ फस्ट सेकंड या थर्ड क्लास की सीटें नही होती. सभी के लिए एक जैसी सीट होती है और फ़िल्म भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर की लगती है. टिकट भी औरों की तुलना में काफ़ी कम होते है. यहाँ हमने कई फ़िल्म देखी, पुरानी फिल्मों में अंगूर, नई फिल्मों में दिल है कि मानता नही. राजा हिन्दुस्तानी, बेटा और कई सारी....

उन दिनों हम भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता में डिप्लोमा कर रहे थे. अखबार में देखा तो शाकुंतलम पर टाइटेनिक लगी थी. हम अपने आप को रोक नही पाये और अपने दो साथियों के साथ चल पड़े टाइटेनिक देखने. ये भी पक्का नही था कि टिकट मिलेगा या नही. फिर भी उत्साह था. सो पहुच गये गेट पर. तब अप्पू घर भी हुआ करता था. पहला झटका तब लगा जब पता चला कि टिकट समाप्त. अब क्या करे. फ़िल्म आज ही देखनी थी. साथियों ने कहा कल देख लेना. मन नही माना और वही चक्कर लगाने लगे. ..तभी गेट के अन्दर से लड़के लड़कियों का एक ग्रुप आता दिखाई दिया. वो हँसते और शोर सा मचाते आ रहे थे. बाहर आकर उनमे से एक लड़के ने हमें बैचेनी से चक्कर काटते देखा और पूछा 'क्या हुआ, टिकट नही मिला' हमने ना में सर हिला दिया. उसने कहा, कोई बात नही, हम कुछ लोग यही फ़िल्म देखने आए थे लेकिन अब मूड नही है सो वापस जा रहे है. आपको चाहिए तो हम आपको तीन टिकट दे सकते हैं. इतना कहते ही उन्होंने मेरे हाथ में तीन टिकट थमा दिए. अपनी तो निकल पड़ी ... वाह क्या दिन है, आज तो मज़ा आ गया. ऊपर वाले ने आपको भेज दिया और फ़िल्म का जुगाड़ कर दिया. हमने झट से पर्स से पैसे निकले और उन्हें पकडाने लगे, लेकिन ये क्या! उन्होंने यह कहते हुए पैसे लेने से मना कर दिया कि आप तो हमारी दोस्त की तरह हो और दोस्तों से पैसे क्या लेना. हम क्या बहुत कहे, क्या सच में ऐसे लोग भी हैं.... फ़िर भी हमने कहा.. पैसे तो आपको लेने ही होंगे पर वो देवदूतों कि तरह ना न की रट लगाते रहे. आख़िर में बोले कि चलिए... हमें एक कोल्ड ड्रिंक पिला दीजिये और समझये हो गया हिसाब. हमने पूरे उत्साह से उनको 50 रुपये की कोकोकोला पिलाई और अंदर की ओर चल दिए. उधर वो मण्डली भी अपनी कार की तरफ़ बढ रही थी. हम उनकी मदद से कृतार्थ होकर लगातार खुश होकर उन्हें हाथ हिलाकर बाई बाई कर रहे थे. जैसे ही गेट पर पहुंचकर गार्ड को टिकट दिए वो हंसकर बोला 'अप्पूघर जाओगी क्या मैडम'.

हम चकित और भौचक..... देखा तो तीनो टिकट अप्पू घर के थे. हमारे होश फाख्ता, दिमाग सुन्न, आंखों के आगे अँधेरा सा छा गया. आंखों से आंसू निकल पड़े. ये तो हमें सरे आम बेवकूफ बना गये..उधर हमारी साथी भी रूआसी हो गयी. अब क्या करे. उधर वो मण्डली अभी गाड़ी में बैठ रही थी. पता नही दिमाग ने क्या बत्ती जलाई, हम झट से चिल्लाये पकडो उनको, मेरा पर्स मार लिया. गार्ड झट से चिल्ला कर दौडे...गाड़ी में सवार लोग सकपकाए. गार्ड ने गाड़ी के आगे जाकर गाड़ी रुकवाई और ड्राइवर को कॉलर पकड़ कर बाहर निकाला. तब तक हम भी वहा पहुच चुके थे. गाड़ी में सवार लोग बोल पड़े....हमने पर्स नही चुराया, चाहे तो देख लीजिये. हम तब तक उस मजाक और अपमान का बदला लेने के लिए तत्पर हो चुके थे. हमारे आंसू बह रहे थे और गार्ड हमारे आंसुओं से ज्यादा प्रभावित होकर उन्हें डांट रहे थे. शायद बेवकूफ बनाये जाने का गम था या अपमान का गुस्सा .. हम चीख कर बोले.... पुलिस को फ़ोन लगाओ, पुलिस का नाम आते हो मण्डली को पसीने आ गये. उन में से एक ने कान पकड़ कर कहा प्लीज़ गलती हो गयी, अब ऐसा मजाक किसी के साथ नही करेंगे. लेकिन पुलिस को मत बुलाओ. उन्होंने कोल्ड ड्रिंक के पैसे लौटाए और माफ़ी मांगने लगे. लेकिन हमारे मन में तो अपमान की जो ज्वाला भड़क गयी थी. हमने सरे राह उनसे (लड़कियां नही) उठक बैठक लगवाई और फिर उन्हें जाने दिया.

मन में तो हम अभी तक भौचक थे. दिल धाड़ धाड़ कर रहा था. कोई खुलेआम हमें उल्लू बना गया. बाद में बिना फ़िल्म देखे हम तीनो इस समझौते के साथ घर लौट चले कि इस प्रकरण के बारे में कोई किसी तीसरे को नही बताएगा. आज भी टाइटेनिक फ़िल्म देखकर एक बार वो ही बाद याद आ जाती है. जब भी सिनेमा हाल जाते हैं तो वो घटना मन में तैरने लगती है और बिना इच्छा के मन गाने लगता है उल्लू बनाया आपने.
नोट - सभी पाठकों से निवेदन है कि इस घटना के बारे में किसी को ना बताएं.वरना आगे आपको ऐसी सामग्री पड़ने को नही मिलेगी. वैसे कई किस्से है जब हम बेवकूफ बने.

6 comments:

अमरेश सौरभ said...

तब ज्यादा मज़ा आता, जब कार में सवार लड़के पकड़ मे आने से पहले रफ्फूचक्कर हो जाते. लड़कों ने करनी से कुछ ज्यादा ही भुगत लिया.

मिथिलेश श्रीवास्तव said...

विनीता जी! किसी को नहीं बताना है तो इसे ब्लॉग जैसी सार्वजनिक जगह पर क्यों लिख रही हैं, अपनी डायरी में ही लिख कर छोड़ दीजिए..हा हा हा...!खैर, जब आपने लिख ही दिया है, तब तो मैं सबको बताऊंगा कि विनीता जी का ब्लॉग जरुर पढ़ना...आने वाले दिनों में और भी मजेदार वाकए मिलेंगे...हा हा हा हा....!

Anonymous said...

good joke.Ha....ha.....ha.....

डॉ .अनुराग said...

aapne filmo ya natko me apna carirer kyu opt nahi kiya ?itni badhiya acting karne ke bavjood ?

PD said...

kya kahoon.. bas maja aa gaya..
eka baat aur.. ham kisi ko nahi batayenge..:P

Udan Tashtari said...

Bechare-cold drink badi mahngi padi. :)