दो दिन बाद करवा चौथ का व्रत है. मैं तो इस व्रत को कर रही हूँ लेकिन मेरे पति भी इस व्रत को साथ में रखने की जिद पाले हैं. मैं उन्हें समझा समझा कर थक गयी कि ये व्रत महिलाओं के लिए है लेकिन वो नही मानते. उनका तर्क है कि जब तुम अगले जनम में मुझे पाने के लिए पूजा कर सकती हो तो मैं भी अगले जनम में तुम्हे पाने के लिए पूजा क्यों नही कर सकता. मैं दुविधा में हूँ. एक तरफ़ तो खुशी है कि चलो वो मेरा साथ दे रहे हैं और मेरी भावनाओं का सम्मान कर रहे हैं. दूसरी तरफ डर हैं कि कही सासू माँ को पता चल गया तो कहेंगी मेरे बेटे को जोरू का गुलाम बना लिया. आजकल के पति भी यही चाहते है कि केवल पत्नी ही क्यों दिन भर भूकी प्यासी रहे क्या केवल पत्नी को ही वो पति रूप में चाहिए. क्या वो अगले जनम में उसे ही पत्नी के रूप में नही पाना चाहते. यदि ऐसा नही है तो किसी के भी व्रत का कोई औचत्य नही है.
सच में ये परस्पर प्यार और आस्था का त्यौहार है. में अगले जनम में उनका वरन करू और वो मुझे ही अगले जनम में अपने साथ पाये. यही प्रार्थना भगवान् सुनेंगे. भगवान सुनते है या नही ये तो नही जानती लेकिन इतना जानती हूँ कि त्यौहार की तेयारी और साथ साथ व्रत करने से दोनों में प्यार बढ़ता है. यही प्यार तो परिवार की नींव है और हम तो इस जनम के बारे में सोचने वालो में से हैं. ये जनम प्यार से गुजार लो, अगला जनम अपने आप तर जायेगा. वैसे भी कहा जाता है कि मानव योनि एक बार ही मिलती है और वो हम इस जनम में प्यार से भोग ले यही काफ़ी है.
नोट _ इस बार में करवा चौथ पर भगवान् से यही मांगूंगी कि अगले जनम कि प्लानिंग न करके इस जनम में भरपूर प्यार का कोटा दे दे. दोनों में आपसी समझ और प्यार ऐसे ही बना रहे, आपको भी यही दुआ करनी चाहिए.
Tuesday, October 14, 2008
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15 comments:
madam jiski patni nai ho wah kar sakta hai karva chauth.kyonki use kuchh jyada hi manna padta hai .
bahut badhiy likha hai. jeetee raho..
अमीन !!:) अच्छा लगा व्रत का साथ साथ रखना
शायद आजकल काफी आदमी रखने लगे हैं व्रत। कई बार तो हम भी रख लेते हैं पर सब सिफ्ट पर निर्भर करता है। दूसरा आपने जो इच्छा मांगी है वो खुदा करे कि पूरी हो।
वैसे आपका सवाल जायज है।
आपकी इच्छा तो जायज है।
पुरुष प्रतीक है कर्म का, नारी-धर्म महान .
इन दोनों के बीच में, बना है अर्थ प्रधान.
बन गया अर्थ प्रधान,धर्म बिसरा कुछ ऐसा.
पुरुष के जिम्मे कङवा-चौथी व्रत के जैसा.
कह साधक कवि,फिर से लौटे राज धर्म का.
नारी धर्म महान, पुरुष प्रतीक कर्म का.
आजकल के पति वो टिपिकल पति नही रहे है ,वे वाशिंग मशीन में कपड़े भी धो लेते है....अपने बेटे को खाना भी खिला देते है ओर कभी कभी एक बढ़िया सी चाय बनाकर पिला भी देते है फ़िर सूट - टाई डालकर जगजीत सिंह की गजल सुनते हुए गाड़ी चलाकर अपने ऑफिस भी पहुँच जाते है......ओर इसी में जिंदगी का मजा है....
agar pyar bdhata hai ye tyohar to pati patni dono ko ye vrat rakhna chahiye....
क्या बात है, बहुत अच्छा लगा, मैने तो कभी भी वर्त नही रखा, बीबी को भी मना करता हूं वो अपनी खुशी से रखती है, लेकिन उस दिन पुरा घर उस के लिये चांद जल्दी निकले इस लिये तडपत है,कभी इन्टर्नेट पर, तो कभी टीवी पर देखते है ओर मे १० १२ किलोमीटर दुर पहाडी पर बर्फ़ मै उसे चांद दिखाने ले जाता हूं, फ़िर वहा अर्क बगेरा दे कर सब मिल कर खाना खाते है, ओर हम ने सात जन्मो का तो ठेका ले लिया है, उस कि बाद फ़िर देखा जायेगा,
मुझे तो अब तक यही पता था कि करवाचौथ का व्रत स्त्रियाँ पति कि लम्बी उम्र की कामना के साथ करती है. अब अगले जनम में भी साथ रहना भी इसी व्रत का बाई प्रोडक्ट है, ऐसा हम दोनों अनाड़ी पति-पत्नी को पता नही है. नहीं तो मुझे पक्का पता है, इस व्रत को रखने पर मेरी पत्नी बिल्कुल तैयार न होती. वह तो अभी भी मुझे धमकाती रहती है..कि ज्यादा तीन-पाँच की तो अबकी बार मैं करवा-चौथ का व्रत तोड़ बैठूंगी. और मैं मन मसोस कर रह जाता हूँ की भगवान ने हम मरदों के साथ यह नाइंसाफी क्यों की है. हमारी उम्र तय करने का वीटो औरतों को दिया तो हमें भी कुछ ऐसा ही अधिकार देता. :)
आपके विचार बहुत ही अच्छे लगे।
भगवान् आपकी जोड़ी सदा सलामत रखे।
vichar bahut achche han
anhi shadi nahi ho payi hai
varna mai to sath he rakhunga vart
bahut achha laga hai
bahut achha laga
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