क्षेत्रवाद के मामले मैं आज अपने देश की हालत देखकर बुरा लगता है. क्या हो गया है हमे. कोई मुम्बई का नारा बुलंद कर रहा है तो कई बिहार का. कोई उत्तराखंडी है तो कोई दिल्ली वाला बनकर इत्र रहा है. असम मैं तो हिन्दी वालो को जान से मारा जा रहा है. आजादी के बाद जब अंग्रेजो ने पाकिस्तान को कात तो इतना दुःख हमारे नेताओ को नही हुआ होगा जितना आज का जनता को हो रहा है. कोई राज ठाकरे उत्तर भारतियो को भागना चाहता हो तो कोई बिहारियो को अपने यह से दूर करना चाहता है. आख़िर अपने ही देश मैं कोई हिन्दुस्तानी बेगाना हुआ जा रहा है और नेता देख रहे है, क्षेत्रवाद राजनीति की मलाई खाने का नया तरीका है. इस मुद्दे पर सभी फायदा लेना चाह रहे है. कल को क्षेत्रवादके नाम कर राजनीति करने वाले यही नेता जब राष्ट्रीय राजनीति मैं पहुच जायेंगे तो अपने ही क्षेत्र को भूल जायेंगे.
Saturday, June 14, 2008
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