राम तेरी गंगा मैली हो गयी, तीर्थयात्रियों के कपड़े धोते धोते. सही ही तो है. आजकल लोग गंगा में पाप धोने नही कपड़े धोने और शरीर का मेल धोने जाते हैं. पिछले दिनों हरिद्वार जाने का मौका मिला तो मैं देख कर दंग रह गयी कि लोग सचमुच कितने गंदे हैं. अपने घरो को साफ़ करने के लिए दिन मे तीन चार बार सफाई करने वाले यहाँ बेधड़क गंद फैला रहे हैं गंगा जी के घाट पर.घाट पर (गंगा जी के मन्दिर के पास वाला घाट जहा शाम की आरती होते है ) पर गंदगी का ढेर. जमीन चीकट इतनी कि पैर फिसल जाए. भिखारियो के अड्डे, घाट के पार जाने वाली सीढियो पर अस्थाई घर बनाये बैठे अधनंगे और अपंग. वो सीढियों पर कब आपका पैर पकड़ ले और आप गिर जाए, कह नही सकते. प्रशासन इनकी रोकथाम करने पर धयान नही देता (शायद मिलीभगत हो).प्लास्टिक की चादरें (घाट पर बैठने के लिए.) बेचते बच्चे . देखने में बच्चे, पर अनजान को चूना लगाने में नम्बर एक. पाच पाँच रुपए की चादरें विदेशिओं को बीस बीस रुपये में बेच दी. इनसे हफ्ता वसूलते कुछ गुंडे टाइप के लड़के. बच्चो का मुंडन करने के लिए पीछे फिरते नाई. बहरूप धरकर लोगो से पैसे मांगते भांड. घाट पर प्रसाद बेचते दूकानदार, भिखारियो को खिलाने के लिए खाना भी बिक रहा है. दाल चावल, पूरी (अठन्नी के आकार की. ) और चने. पुन्य कमाने के लिए ये खाना खरीद कर वहा बैठे भिखारियो को दीजिये और कुछ देर बाद ये भिखारी यही खाना दुकारदार को वापिस करके कुछ पैसा बना लेंगे. और फिर दूकानदार ये खाना किसी और को बेच देगा (भिखारियो को खिलाने के लिए.) क्या कमाल का रोस्टर चल रहा है गंगा जी के घाट पर धरमशाला कहने के लिए तो धर्मार्थ के लिए बनाई गयी हैं लेकिन प्रति यात्री डेढ़ सौ रुपये वसूल रही हैं तीन दिन से ज्यादा ठहरे तो सौ रुपये एक्स्ट्रा. खाना पीना बाहर खाने की व्यवस्था जरूर कुछ सस्ती है. लेकिन जो कुछ भी है, साफ़ सफाई से कोसो दूर है. पीने के लिए साह पानी की कमी सब तरफ़ है. कमाल है, पीने का पानी नही है गंगा जी के घाट पर. मसले और कुचले फूलों की गंदगी और प्रसाद की चिकनाहट खूब गिरती है गंगा जी के घाट पर. शाम कि आरती जरूर मोहक होती है. एक साथ इतने सारे दीये और प्रज्वलित मुख्य आरती मनमोहक समां बाँध देती है. उस दौरान गंगा की लहरे भी तेज हो जाती हैं. लेकिन उन लहरों में अपने फूल और प्रसाद से भरे दोने बहाकर लोग मतिअमेत कर देते है. आरती से प्रसन्न हुए गंगा माता जरूर बुरा मान जाती होंगी कि इतने फ़ूल, धूप-deep, अगरबती और माचिस के तीलिया मुझे चढ़ा कर कौन सी मनोकामना पूरी कर रहे हो. रोज ये ही प्रताड़ना झेलती है गंगा माता अपने ही घाट पर.
नहाने वालो को पुण्य कमाना है तो गंगा जी में एक डुबकी काफ़ी नही, साबुन और उबटन लगा लगा कर नहाएँगे. अंडरवीयर भी गंगा जी में ही धोयेंगे. महिलाये अपने और अपने साथ आए सभी लोगो के कपड़े लत्ते भी यहाँ ही धो लेंगी (जाने घर जाकर पानी मिले या न मिले). बच्चों की पोटी मुत्ती सब गोपनीय रूप से संपन कर लिए जायेंगे गंगा जी के घाट पर. अब एक नज़ गंगा जी पर. अविरल बह रही हैं. हर कि पडी भले ही गन्दी हो गयी हो लेकिन हरिद्वार में और कई घाट हैं जहा अब भी साफ़ सफाई मिल जायेगी. पुन्य कमाने के चक्कर में सब हर कि पैडी पर ही भागते है. अन्य घाटों पर साफ़ सफाई भी है और भीड़ भी कम है. भिखारियो कि तादात भी कम होगी. कुछ आश्रमों ने भी गंगा जी को अपने अपने घाटों में बाँट लिया है. यहाँ सीढिया भी मिलेंगी और उनसे जुड़ी लोहे की चेन भी. पास ही पीपल का पेड़ और उसके नीच शिवलिंग की पूजा करती कई बूढी महिलायें. यहाँ आपको बाजारीकरण नही मिलेगा. शोर शराबा नही मिलेगा. मिलेगी तो केवल गंगा जी की साफ़ और अविरल धार. पुन्य कमाना है तो हर की पैडी पर जाइये. अगर आप भी गंगा जी जा रहे है तो मेरी एक ही अपील है कि नहाइए तो खूब लेकिन गंगा जी को गन्दा मत कीजिये. क्यूकि करोडो लोगो कि श्रद्धा का केन्द्र है गंगा जी के घाट पर.
Tuesday, June 24, 2008
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3 comments:
बहुत पते की बात करी आपने.बेहतरीन
आलोक सिंह "साहिल"
आपकी अपील में हम साथ हैं...
बिल्कुल सही अपील की है.हम आपके साथ हैं.
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