Wednesday, July 9, 2008

पापा आए मम्मी के रोल में...



जब मैंने मन ( मेरा बेटा) को जन्म दिया तो तरुण (पति) के व्यह्वार में सकारात्मक बदलाव देखा. छोटे बच्चो को गोद में उठाने से कतराने वाले तरुण मन का काफ़ी ख्याल रखते हैं. उसे नहलाना, सुलाना और रात में रोने पर उसे बहलाना सब तरुण ही करते हैं. और ये करते हुए उन्हें किसी तरह की शर्म या संकोच नही होता बल्कि वो सहजता महसूस करते हैं. मैंने जब पूछा तो बोले कि अपने बच्चे से इस तरह जुड़ने में उन्हें सकून और आत्मीयता महसूस होती है. आस पास के भी कई लोग कुछ ऐसा ही करते दिख रहे है लेकिन किसी शर्म के साथ नही बल्कि पूरे मन और खुशी के साथ. आज पापा सिर्फ़ रोटी की जुगाड़ ही नही कर रहे बल्कि बच्चों की परवरिश में भी पूरा योगदान दे रहे है. ये सब देखकर अच्छा लग रहा है. आज से चार पाँच पीढी पहले तक के मर्द बच्चो की देखभाल तो दूर उन्हें गोद में उठाना भी मर्दानगी के ख़िलाफ़ समझते थे. उनके लिए बाप होने का मतलब घर को एक वारिस देने भर से था. घर का काम, बच्चों की देखभाल माँ कि जिम्मेदारी थी. लेकिन अब ज़माना बदल रहा है. ममता और वात्सल्य जैसे शब्द माँ के अलावा पिता के खाते में भी जुड़ते जा रहे हैं. आज के पापा, खाना बनने के साथ साथ बच्चे की देखभाल भी हँसी खुशी करता है. उसकी मर्दानगी काम और जिम्मेदारिओं में विभाजित नही हो रही. आज के पापा ऑफिस की फाइल के साथ साथ बच्चे कि नेपी और सेरेलक तैयार कर रहे है. बड़ी बात ये है कि ये काम वो मजबूरी में नही बल्कि आनंद के लिए कर रहा है. इसमे उसे खुशी मिलती है, अपने परिवार से जुड़ने की खुशी. जबसे परिवार छोटे हुए हैं तो पति पत्नी के बीच काम कि विभाजन रेखा धुंधली हो गयी है. अब दोनों कमाते है और दोनों ही घर के ही ख्याल रखते हैं. बच्चे के लिए रसोई में दूध गरम करना, उसके कपड़े बदलना, उसे नहलाना, रात में लोरी गाना और उसके साथ कुश्ती लड़ना, ये सारे काम पापा को भा रहे हैं. यहाँ तक कि शादी और पार्टी में भी पापा अपने बच्चे को सँभालने में मस्त देखे जा सकते है ताकि मम्मी चैन से खाना खा सके और पार्टी का मज़ा ले सके. दिन भर ऑफिस से तक कर जब पापा घर आए तो बच्चा उन्हें देखकर खुशी से झूम जाता है, मम्मी कि गोद की बजाये उसे पापा की गोद भाती है तो पापा के प्यार चार गुना बढ जाता है. ऐसे में कौन पापा होंगे जो अपने बच्चे के लिए ये छोटे छोटे लेकिन खुशी देने वाले काम करने से परहेज करेंगे.

2 comments:

ghughutibasuti said...

आप ठीक कह रही हैं, यह एक सकारात्मक बदलाव है और समय की माँग भी।
घुघूती बासूती

रंजू भाटिया said...

यही बदले हुए समय कि मांग है अच्छा लगता है पापा को मम्मी के रोल में देखना :) एक सकरात्मक बदलाव के शुभ संकेत हैं यह