Saturday, September 27, 2008
चले खिलाडी हीरो बनने....
उधर कुछ क्रिकेटर टीवी पर हसीनाओं के साथ ठुमके लगाते हुए नजर आ रहे हैं उस टीवी शो में जज बनी एक बड़ी अदाकारा एक क्रिकेटर के ठुमकों से बेहद प्रभावित हुई हैं और कह रही है कि तुम्हे फिल्मों में तरी करना चाहिए. यानि यही एक काम रह गया था. क्रिकेट छोड़कर बाकी सब कुछ करना और खासकर बोलीवुड कस्स एंट्री करना आजकल के खिलाडियो का शगल बन गया है. अचंभो होता है क्रिकेट में इतना पैसा होने के बावजूद ये ठुमके लगा रहे हैं. नेट पर प्रेक्टीस नही कर सकते. कोई विज्ञापनो में लगा है तो कोई नाच गाने में. अभ्यास मैचों में ये जख्मी हो जाते है, और असल मैचों में फिसड्डी की तरह खेल कर बाहर हो जाते है.
क्या हो गया है खेल जगत को. क्यों सब सिनेमा की तरफ़ भागते नजर आ रहे है. क्यों हर कोई स्टार बनने को उतावला है. क्यों सबको टीवी पर कवरेज चाहिए. क्या वास्तव में खेल इतना पैसा नही दे रहा या खेल बोरिंग हो रहा है. इन दोनों से से कोई बात सही नही. दरअसल ग्लेमर की ये दुनिया इतनी चमकीली है जो उनको आसानी से निशाना बनाती है, जिनकी उसे जरूरत है. ये नए हीरो ग्लेमर जगत की जरूरत है. इनके दम पर ही ही तो पैसा बरसता है. फ़िर चाहे कोई खिलाडी फ़िल्म स्टार बने या कोई विश्व सुन्दरी.
Wednesday, September 17, 2008
हाय हम आम क्यों हुए...
हमसे बढ़िया तो गरीबी रेखा से नीचे रहने वाला (बीपीएल) वो आदमी भी है जिसे चावल ५ रुपये किलो मिल जाता है और झौपडी के बदले एक फ्लैट... अब इस मुए दिल का क्या करे जो बीपीएल होने को उतावला हुआ जा रहा है...
मतलब ये कि कुछ तो होते जो मौज मिल रही होती. मगर उस ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था. उसने हमें बना दिया मिडिल क्लास यानि आम आदमी. जो मौज नही कर सकता. सरकारी ऐश नही कर सकता. करोडो में नही खेल सकता. अगर कुछ कर सकता है तो वो है दाल रोटी के जुगाड़ की चिंता. हां भाई घूस का ज़माना है...ऊपर वाले को नही खिलाई तो उसने बना दिया आम आदमी जो आम नही खा सकता, हां प्याज के दाम बढ़ने पर आंसू जरूर बहा सकता है. जिन्होंने घूस दी वो बन गये, ख़ास आदमी जो ख़ास सुविधाएं भोग रहे हैं.तो हे ऊपर वाले मेरे दिल की गुहार सुन ले..मुझे इस आम आदमी के सिवा कुछ भी बना दे. ये आम आदमी जो संख्या में सबसे ज्यादा है ओर उतना ही बेशरम... इतनी आफत में भी हंसकर जिए जा रहा है.....
Tuesday, September 9, 2008
समीर भाई को खुली चिठ्ठी ...
प्रिय समीर भाई
आप के जाने की ख़बर आग की तरह फ़ैल गयी है. और उस आग में हम भी जले जा रहे है. हाय समीर भाई हमें छोड़कर मत जाओ. हम निरीह ब्लोगरों को आप की ही टिप्पणियों का सहारा है. अब कौन हमें सराहेगा और दुलारेगा. कुछ ग़लत लिखने पर कौन हमें समझायेगा. यहाँ तो तो गलतियों पर समझाने की बजाये खुन्खारने वाले ज्यादा है. इस आभासी दुनिया को अभी आपकी जरूरत है. उनको भी जो आपको कोस कर अपनी दूकान चलाते है. आप किसी की चिंता मत करो. केवल लिखते रहो. यही बात तो आप सभी से कहते रहे और अब आप ही इस बात से घबरा कर मैदान छोड़ रहे है.
एक स्पेशल बात जो आप से कबसे कहना चाह रही थी पर संकोच और आप के बुरा मान जाने के डर से नही कह पाती थी. यही कि आप फ़िल्म सत्या के कल्लू मामा जैसे लगते हो (प्लीस बुरा मत मानना, मन में था सो कह दिया. छोटी बहन का इतना तो हक़ बनता है. ) लेकिन सच में बहुत अच्छे. बहुत प्यारे और बहतरीन लेखक ...
Saturday, September 6, 2008
आपकी राशिः और गणेश जी ....
क्या आप जानते है की सभी ग्रह और नक्षत्रो और राशिओं के देव गणेश जी है. यानि सभी ग्रह और राशियाँ गणेश जी के ही अंश है. गणेश जी हर राशिः को अलग अलग तरह से प्रभावित करते है. आइये जानते है कि आपकी राशिः में क्या दुविधा है और गणेश जी उसे कैसे ठीक कर सकते है. इस्सके लिए गणेश जी कि कैसे पूजा अर्चना करनी होगी....
मेष:(चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
इस राशि के गणेशस्वरूप को मेषेश्वर कहा जाता है। मेष राशि के लग्न और राशियों के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें प्रमुख है, लाभ की कमी, अपने से अधीनस्थों से पीड़ा ,अत्यधिक क्रोध और तनाव।
उपचार-
स्फटिक से बनी गणेश प्रतिमा का पूजन करें। पूजन करते समय जिस सामग्री का उपयोग करना है उसमें गंध, पुष्प, धूप, दीप ओर पंचोपचार प्रमुख है। इसी के साथ इष्ट मंत्र से काले तिल में शहद को मिलाकर नीम की लकड़ी की समिधा पर हवन का आयोजन करें। हवन संपूर्ण होने के वाद हवन सामग्री को किसी शूद्र को दान में दें, इसी के साथ उन्हें भोजन कराएं।
अगर आप गणेश जी का विशेष अनुष्ठान करना चाहते है तो फाल्गुन शुल्क चतुर्थी से फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा तक व्रत रखें और इसी दौरान अनुष्ठान का आयोजन करें। व्रत के दौरान ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दें। रोज गणेश प्रतिमा (स्फटिक के बनी) का पंचोपचार पूजन करें। इसी के साथ इष्ट मंत्र से कम से कम ३१ बार माला का जाप करें। पीले वस्त्रों का दान करें।
वृषभ:(इ, उ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे)
इस राशि के गणेशस्वरूप को वृषभेश्वर गणेश कहा जाता है। वृष राशि के लग्न और राशि के व्यक्ति को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें भाग्य का साथ न देना, पिता एवं भाई बंधुओं से रिश्तों को लेकर तनाव, संतान के साथ तारतम्य न बैठ पाना प्रमुख है।
उपचार-
रुद्राक्ष के मनके पर भगवान गणेश के वासुदेव स्वरूप की प्रतिष्ठा करें और उनके पूजन करते समय गंध, पुष्प, धूप, दीप व पंचोपचार का प्रयोग करें। इसी के साथ अपने इष्ट का मंत्र जाप कर घी में काले तिल मिलाकर नीम की समिधा पर हवन करने से काफी फायदा होगा।
गणेश चतुर्थी को इष्ट मंत्र का जाप करते हुए ३१ बार माला का जाप करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं। शूद्रों को भोजन का दान करें। इसी के साथ नीले वस्त्रों का दान करना भी लाभकारी होता है।
मिथुन:(क, की, कु, घ, ड, छ, के, को, ह) इस राशि के गणेशस्वरूप को मिथुनेश्वर गणेश कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्ति को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें वैवाहिक जीवन में तनाव, सार्वजनिक जीवन में कष्ट , विवादों में संलिप्तता, धन का नाश प्रमुख है।
उपचार-
स्वर्ण से बनी गणेश प्रतिमा का पूजन करें। पूजन करते वक्त गंध, पुष्प, धूप, दीप और पंचोपचार का होना जरूरी है। इसी के साथ गणेश चतुर्थी को इष्ट मंत्र का जाप करते हुए ३१ बार माला का जाप करना शुभकारी है।
वैशाख माह में पडऩे वाली चतुर्थी को भगवान गणेश संकर्षण स्वरूप का पूजन विधिवत किया जाए तो समस्याओं से काफी हद तक निदान हो सकता है। ब्राह्मणों को भोजन कराना और शंख का दान करना भी काफी लाभकारी होगा।
कर्क:(ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
इस राशि के गणेशस्वरूप को कर्केश्वर कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें, आर्थिक क्षेत्र में कठनाई, दाम्पत्य जीवन में दु:ख, भाइयों से अनबन होना प्रमुख है।
उपचार-
सफेद आंकड़ों से बने गणेश की पूजा करें। पूजा में गंध, पुष्प, धूप, दीप ओर पंचोपचार का होना लाभकारी होगा। प्रत्येक माह की संकष्टी चतुर्थी को व्रत रखकर भी भगवान गणेश को प्रसन्न किया जा सकता है ।
इसी के साथ ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष चतुर्थी को षोडशापचार पूजन कर गणेश की आरती करें तो काफी लाभकारी होता है। ब्राह्मणों को भोजन कराना, श्वेत वस्त्र का दान करना, फल और कन्द का दान करना भी लाभकारी होता है।
सिंह:(मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टे)
इस राशि के गणेशस्वरूप को सिंहेश्वर गणेश कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें जीवन में तनाव का होना, कुटुम्बियों से झगड़ा, दाम्पत्य जीवन में दु:ख होना प्रमुख है।
उपचार-
प्रवाल से बने गणपति का पूजन करें। पूजन सामग्री में गंध, धूप, पुष्प, दीप और पंचोपचार का होना शुभ माना जाता है। इसी के साथ माघ शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी को उपवास रख गणेश के अनिरूद्ध स्वरूप षोडशोपचार की पूजा करनी चाहिए।
सन्यासियों को तंूबी पात्र का दान करना लाभकारी होता है। गुड़ मिले हुए काले तिलों से कनेर एवं देवदारू की समिधा पर हवन करना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन कराना भी शुभ होता है।
कन्या:(टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
इस राशि के गणेशस्वरूप को कन्येश्वर कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन मूल समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें धन की उत्पत्ति से संबंधित समस्याएं, निर्णय क्षमता की कमी का होना, दाम्पत्य जीवन में सामन्जस्य की कमी प्रमुख है।
उपचार-
हल्दी व स्वर्ण से गणेश प्रतिमा का निर्माण कर पूजन करना चाहिए। पूजन सामग्री में गंध, पुष्प, धूप , दीप व पंचोपचार का होना अच्छा माना जाता है।
चतुर्थी को बाटी के लड्डु गुड़ में तैयार कर केल की समिधा पर हवन करना अति लाभकारी है। कृष्णपक्षीय व्रत रखना भी शुभकारी है। ब्राह्मणों को भोजन कराए भोजन में लड्डू होना चाहिए, जो लड्डू भोजन में दिया हो उसका स्वंय भी भोग करें। दूध देने वाली गाय का दान लाभकारी है।
तुला:(र, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
इस राशि के गणेश को तुलेश्वर गणेश कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें अजीविका के साधनों में कमी, आर्थिक लाभ में कमी, सरकारी मशीनरी से कष्ट प्रमुख है।
उपचार-
रक्त चंदन से बने गणेश का पूजन करना चाहिए। पूजन में गंध, पुष्प, धूप, दीप व पंचोपचार का उपयोग हो। माह की चतुर्थी को उपवास रख गणेश जी कि आराधना करें। इसी के साथ अष्विन शुक्ल चतुर्थी को भगवान कपर्दिश गणेश का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। दान में लाल कम्बल और औषधि दें। अश्विन शुक्ल चतुर्थी को भगवान कपर्दिश गणेश का षोडशोपचर पूजन करें। पुरूषों को अर्जुन की समिधा पर हवन करना चाहिए।
वृश्चिक:(तो, ता, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
इस राशि के गणेशस्वरूप को वृश्चिकेश्वर गणेश कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें परिवार में आर्थिक संकटों का होना, बचपन में असुविधा, भाग्यमंदता और सांसारिक कष्ट प्रमुख है।
उपचार-
गजदंत से बनी गणेश प्रतिमा का पूजन करें। पूजन में गंध, पुष्प, धूप, दीप और पंचोपचार का होना शुभकारी है। इसी के साथ कार्तिक शुक्ल की चतुर्थी को भगवान भालचन्द्र गणेश का षोडशोपचार पूजन बहुत ही लाभकारी है। गणेश चतुर्थी का व्रत करें, व्रत के दौरान एक समय बाटी और एक समय लड्डू का प्रसाद लगा कर उसे ग्रहण करें।
स्त्रियों को सुहाग की वस्तुएं दान देना इस राशि के जातकों के लिए शुभ माना गया है। मरूआ अथवा आम की समिधा पर चावल व घी से हवन करें। ब्राह्मणों को भोजन कराए।
धनु:(ये, यो, भा, भी, का, फा, ढा, भे)
इस राशि के गणेशस्वरूप को धनेश्वर गणेश कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन कष्टों का सामना करना पड़ता है उनमें सार्वजनिक जीवन में बाधा, वैवाहिक जीवन में तनाव, गुप्त शत्रुओं से पीड़ा और माता के जीवन से कष्ट प्रमुख है।
उपचार-
मूंगे से निर्मित गणपति का पूजन करें। पूजन में गंध, पुष्प, धूप, दीप और पंचोपचार का होना शुभकारी है। इसके अलावा भगवान गणेश के सुरागृज स्वरूप का पूजन करना चाहिए। चतुर्थी का उपवास विशेष लाभकारी है।
प्रात:काल उठकर इष्ट मंत्र से आक की समिधा पर हवन करें। गंधारी अथवा केतकी की समिधा पर मूंग के बने मोदक का हवन करना चाहिए। मूंग के पदार्थों का निर्माण कर ब्राह्मण को दान में दें। इसी के साथ अंग-वस्त्र का दान करना लाभकरी होता है।
मकर:(भो, जा, जी, जू, खू, खे, खो, ग, गी)
इस राशि के गणेश को मकरेश्वर कहा जाता है । इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें आर्थिक कष्ट, लाभ की प्राप्ति में रुकावट, भाइयों से पीड़ा प्रमुख है।
उपचार-
चंदन से निर्मित गणेश की पूजा करें। पूजन में गंध, पुष्प, धूप, दीप, व पंचोपचार का होना शुभकारी है। भगवान गणेश के लम्बोदर स्वरूप की पूजा करना भी इस राशि के जातकों के लिए शुभ माना गया है। विशिष्ट अनुष्ठान के दौरान बरे की समिधा पर तिल्ली एवं मोदक से हवन करना चाहिए। महीने की संकष्टी चतुर्थी को उपवास करें और उपवास के दिन रात्रि में चंद्रमा के उदय हो जाने के बाद भोजन को ग्रहण करना चाहिए।
चतुर्थी को अनुष्ठानपूर्वक लम्बोदर गणेश का षोडशोपचार पूजन करें इसी के साथ ब्राह्मणों को भोजन कराकर कांस्य पात्र का दान करना चाहिए।
कुंभ:(गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, द)
इस राशि के गणेशस्वरूप को कुंभेश्वर गणेश कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें जीवन में बार-बार संत्रास, परिवार में असंतोष, वैवाहिक जीवन कष्टकारी और भाग्यमंदता प्रमुख है।
उपचार-
श्वेतार्क गणपति का पूजन करें। पूजन के समय गंध, पुष्प,धूप, दीप और पंचोपचार का प्रयोग शुभकारी माना जाता है। इस राशि के व्यक्तियों के लिए चतुर्थी का उपवास करना अच्छा माना जाता है। पौष शुक्ल चतुर्थी को भगवान गणेश के विघ्रेश्वर स्वरूप का पूजन करना चाहिए। विशेष अनुष्ठान के लिए अगस्त की समिधा पर चावल, शकर एवं घृत से हवन करना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन कराकर चांदी के पात्र दान करना चाहिए।
मीन:(दी, दू, थ, झ, त्र, द, दो, चा, ची)
इस राशि के गणेशस्वरूप को मीनेश्वर गणेश कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें मनपसंद जीवनसाथी का न मिलना, पत्नी से अनबन, आर्थिक मार, परिवार के किसी व्यक्ति को असाध्य रोगों की पीड़ा प्रमुख है।
उपचार-
प्रवाल के गणपति का पूजन करें। पूजन में गंध ,पुष्प, धूप, दीप और पंचोपचार का उपयोग करना चाहिए। चतुर्थी का व्रत रखना लाभकारी होता है। भगवान गणेश के ढुण्ढीराज स्वरूप का पूजन करना अति लाभकारी होता है। इसके अलावा माघ माह की चतुर्थी को मृत्तिका की मूर्ति पर षोडशोपचार पूजन करें।
विशिष्ट अनुष्ठान में आक की समिधा बनाकर शमी-पत्र से हवन करें साथ ही गुड़ के मोदक का भी प्रयोग किया जा सकता है। ब्राह्मणों को भोजन कराकर तांबे के पात्र और और छाते का दान करना शुभ है।
Friday, September 5, 2008
गणेश चतुर्थी पर चंद्र दर्शन निषेध क्यों...
एक बार जरासंध के भय से भगवान कृष्ण समुद्र के बीच नगरी बनाकर वहां रहने लगे। यही नगरी आज द्वारिका नगरी के नाम से जानी जाती है। उस समय द्वारिका पुरी में रहने वाले सत्रजीत यादव नामक व्यक्ति ने सूर्यनारायण भगवान की आराधना की और आराधना से प्रसन्न होकर सूर्य भगवान ने उसे स्यमन्तक नामक मणि वाली माला अपने गले से उतारकर दे दी। यह मणि नित्य आठ सेर सोना प्रदान किया करती थी। मणि पाकर सत्रजीत यादव समृद्ध हो गया। श्री कृष्ण को यह बात पता चली तो उन्होंने सत्रजीत से वह मणि पाने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन सत्रजीत ने मणि श्री कृष्ण को न देकर अपने भाई प्रसेनजीत को दे दी। एक दिन प्रसेनजीत शिकार पर गया जहां एक शेर ने प्रसेनजीत को मारकर मणि ले ली। यही रीछों के राजा और रामायण काल के जामवंत ने शेर को मारकर मणि पर कब्जा कर लिया।
कई दिनों तक प्रसेनजीत शिकार से घर न लौटा तो सत्रजीत को चिंता हुई और उसने सोचा कि श्रीकृष्ण ने ही मणि पाने के लिए प्रसेनजीत की हत्या कर दी। इस प्रकार सत्रजीत ने पुख्ता सबूत जुटाए बिना ही मिथ्या प्रचार कर दिया कि श्री कृष्ण ने प्रसेनजीत की हत्या कर दी है। इस लोकनिन्दा से आहत होकर और इसके निवारण के लिए श्रीकृष्ण कई दिनों तक वन वन भटक कर प्रसेनजीत को खोजते रहे और वहां उन्हें शेर द्वारा प्रसेनजीत को मार डालने और रीछ द्वारा मणि ले जाने के चिह्न मिल गए। इन्हीं चिह्नों के आधार पर श्री कृष्ण जामवंत की गुफा में जा पहुंचे जहां जामवंत की पुत्री मणि से खेल रही थी। उधर जामवंत श्री कृष्ण से युद्ध के लिए तैयार हो गया। सात दिन तक जब श्री कृष्ण गुफा से बाहर नहीं आए तो उनके संगी साथी उन्हें मरा हुआ जानकार विलाप करते हुए द्वारिका लौट गए। २१ दिनों तक गुफा में युद्ध चलता रहा और कोई भी झुकने को तैयार न था। तब जामवंत को भान हुआ कि कहीं ये वह अवतार तो नहीं जिनके दर्शन के लिए मुझे श्री रामचंद्र जी से वरदाम मिला था। तब जामवंत ने अपनी पुत्री का विवाह श्री कृष्ण के साथ कर दिया और मणि दहेज में श्री कृष्ण को दे दी। उधर कृष्ण जब मणि लेकर लौटे तो उन्होंने सत्रजीत को मणि वापस कर दी। सत्रजीत अपने किए पर लज्जित हुआ और अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्री कृ ष्ण के साथ कर दिया।
लेकिन इसके कुछ ही समय बाद अक्रूर के कहने पर ऋतु वर्मा ने सत्रजीत को मारकर मणि छीन ली। श्री कृष्ण अपने बड़े भाई बलराम के साथ उनसे युद्ध करने पहुंचे। युद्ध में जीत हासिल होने वाली थी कि ऋतु वर्मा ने मणि अक्रूर को दे दी और भाग निकला। श्री कृष्ण ने युद्ध तो जीत लिया लेकिन मणि हासिल नहीं कर सके। जब बलराम ने उनसे मणि के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि मणि उनके पास नहीं। ऐसे में बलराम खिन्न होकर द्वारिका जाने की बजाय इंद्रप्रस्थ लौट गए। उधर द्वारिका में फिर चर्चा फैल गई कि श्री कृष्ण ने मणि के मोह में भाई का भी तिरस्कार कर दिया। मणि के चलते झूठे लांछनों से दुखी होकर श्री कृष्ण सोचने लगे कि ऐसा क्यों हो रहा है। तब नारद जी आए और उन्होंने कहा कि हे कृष्ण तुमने भाद्रपद में शुक्ल चतुर्थी की रात को चंद्रमा के दर्शन किए और इसी कारण तुम्हें मिथ्या कलंक झेलना पड़ रहा है।
तब पूछने पर नारदजी ने श्रीकृष्ण को कलंक वाली यह कथा बताई थी। कहते हैं कि एक बार जगतपूज्य भगवान श्रीगणेश ब्रह्मलोक से होते हुए लौट रहे थे कि चंद्रमा को गणेशजी का तुंदिल शरीर और गजमुख देखकर हंसी आ गई। गणेश जी को यह अपमान सहन नहीं हुआ। उन्होंने चंद्रमा को शाप देते हुए कहा, 'पापी तूने मेरा मजाक उड़ाया है। आज मैं तुझे शाप देता हूं कि जो भी तेरा मुख देखेगा, वह कलंकित होगा।
यह शाप सुनकर चंद्रमा बहुत दुखी हुए। सभी देवताओं को चिंता हुई क्योंकि चंद्रमा ही पृथ्वी का आभूषण है और इसे देखे बिना पृथ्वी पर कोई काम पूरा नहीं हो सकता। चंद्रमा के साथ सभी देवता ब्रह्मा के पास गए। उनकी बातें सुनकर ब्रह्मा बोले, 'चंद्रमा, तुमने जन-जन के अराध्य देव शिवपुत्र गणेश का अपमान किया है। यदि तुम अपने शाप से मुक्त होना चाहते हो तो श्रीगणेशजी का व्रत रखो। वे दयालु हैं, तुम्हें माफ कर देंगे। ’ चंद्रमा ने ऐसा ही किया। भगवान गणेश चंद्रमा की कठोर तपस्या से प्रसन्न हुए और कहा, 'वर्षभर में केवल एक दिन भाद्रपद में शुक्ल चतुर्थी की रात को जो तुम्हें देखेगा, उसे ही कोई कलंक लगेगा। बाकी दिन कुछ नहीं होगा। ’ केवल एक ही दिन कलंक लगने की बात सुनकर चंद्रमा समेत सभी देवताओं ने राहत की सांस ली। तब से भाद्रपद में शुक्ल चतुर्थी की रात को चंद्रमा के दर्शन का निषेध है।
Thursday, September 4, 2008
और भी मुद्दे है इस मुद्दे के सिवा...
मन ये देख कर व्याकुल है। हम और अन्य ब्लॉगर जो इस जंग को गेर जरूरी समझते है, वो बेचारे इस जंग में बेवजह ही पिसे जाते है। माना कि आपमें लिखने का हुनर है और लेखन का शौक भी, तो इस कला तो केवल वर्ग विवाद में जाया मत कीजिये। यकीन नही होता कि इतने प्रतिभावान और समझदार ब्लॉगर किस चक्कर में पड़ गये है। क्या हम ब्लॉग को केवल ब्लॉगर के रूप में नही चला सकते। क्यों ब्लॉग जगत को महिला और पुरुषों मैं बाँट रहे हैं।
मैं ख़ुद एक महिला हूँ और मुझे पसंद नही कि यहाँ किसी भी वर्ग और उनकी शारीरिक असमानताओं या चरित्र विशेषताओं पर चर्चा की जाए। ब्लॉग जगत अपने विचारों को कहने सुनने का एक बहुत ही अच्छा जरिया है। यहाँ आप बिना ये सोचे कि महिला हैं या पुरूष अपने विचारों, अपनी कला और संवेदना को दूसरों के सामने रख सकते है। ब्लॉग मंच है अभिव्यक्ति का, वर्ग विशेष की त्रुटियां बताने का अड्डा नही है ये। इस राजनीति से इसे दूर ही रखा जाए अच्छा होगा। वैसे भी इस विवाद ( श्रेष्ठ कौन ) का हल तो स्वयं भगवान् भी नही बता पाए तो हम किस खेल की मूली हैं। दोनों वर्ग एक दूसरे की खामियां बताते रहेंगे और सच मानिए एक दूसरे के बिना इनका गुजारा भी नही। क्या चोखेरबलिया अपने घर के पुरुषों (पति, भाई, पिता ) को भी इसी तराजू में तोलती हैं और क्या कथित पुरुषवादी अपने घर की महिलाओं (माँ पत्नी, बहन ) को भी ईश्वर की भूल मानते हैं. सच तो ये है कि दोनों एक दूसरे के पूरक है और तभी दुनिया भी चलती है।
मेरी सलाह मानिए और इस वर्गीय और सनातन दुश्मनी को त्याग दीजिये। (मुझे यकीन है कि हर ब्लॉगर (जो इस लड़ाई में तन और मन से जुटा हुआ है।) यही कहेगा कि यहाँ कोई दुश्मनी नही, ये तो मुद्दों और विचारों की लड़ाई है। हम भी तो यही कह रहे है कि मुद्दे और भी हैं ज़माने में इस मुद्दे के सिवा... कुछ उन पर भी नज़र डालिए।
Tuesday, September 2, 2008
कोई पूछता नही....
हमसे हमारी बात कोई पूछता नही
कुछ और सवालात कोई पूछता नही.
जिसकी दर ओ दीवार और छत्त ही नही
कैसी ये हवालात कोई पूछता नही.
जिसमे हिलें न होंठ हों आंखों पे पट्टियाँ
कैसी वो मुलाक़ात कोई पूछता नही
पहले उजाड़ घर को घरोंदों की पेशकश
किनकी है करामात कोई पूछता नही।
कुछ लोग लाल ताल हैं बांधे हैं मुट्ठियाँ
होगी क्या वारदात कोई पूछता नही
है आसमान सख्त जमी के शिरे तने
कब टूटे कायनात कोई पूछता नही
यहाँ सब्र किसे दूसरों का हाल जो पूछे
अपने दिले जज्बात कोई पूछता नही।
विनीता वशिष्ठ
वनिशा, ईशा और पिया...
तस्वीर का एक पहलू ये है जहा भारतीय पिताओं के साथ साथ उनकी बेटियों की भी दुनिया भर में धूम मची है और तस्वीर के दूसरा पहलू वो है जहाँ मजबूर और गरीब भारतीय बाप धन के अभाव में बेटी की शादी उससे दुगनी उम्र के आदमी के साथ कर रहा है. कहीं पेट भरने के लिए बेटियाँ दूसरे घरो में कामकर रही हैं और कुछ शरीर बेच रही है. कुछ दहेज़ के लिए जलाई जा रही है और कुछ खुद ही दहेज़ एकत्र करने के मिशन में मशीन बन कर काम किए जा रही है. एक ही वर्ग में इतनी असमानता भारत में ही देखने को मिल सकती है. कुछ बेटियों का भविष्य सूरज की तरह उजला है और कुछ का रात की तरह काला जहाँ सवेरा कब होगा पता नही.
एक तरफ़ वनिशा, ईशा और पिया और दूसरी तरफ़ ये बेटियाँ, समझ नही आता भारत की असली तस्वीर कहाँ है. ....
Monday, September 1, 2008
अपनी भूल सुधारे कौन....
काँटों के सौदागर सारे घर और द्वार बुहारे कौन.
नसीहतों से भरे टोकरे लिए खड़े हैं लोग तमाम,
मुल्लाओं की महफ़िल में अपनी भूल सुधारे कौन.
तालीमों की किसे जरूरत किसको इंसानों से काम,
दरवाजे पर दस्तक देकर मेरा नाम पुकारे कौन.
खुशहाली में सभी पूछने आते थे मेरे हालात,
लेकिन तन्हाई के लम्हे मेरे साथ गुजारे कौन.
हालात से समझौतों में खामोशी बन गया जमीर,
सन्नाटे में चौराहे पर दिल की बात गुहारे कौन..