ओलंपिक में चांदी तांबा लेकर आने वाले अपने विजेंदर और सुशील के जलवे आजकल देखने लायक हैं. कभी ये दोनों फिल्मी कलाकारों से सम्मान लेते दिख रहे हैं तो कभी फैशन परेड में रोहित बल के परिधानों में चमक रहे हैं. विजेंदर तो विज्ञापनो में भी नजर आ रहा है. आख़िर देश का नाम रौशन किया है तो ये सब तो होना ही था. लेकिन इतनी जल्दी होगा, ये सोचा नही था. इन मुक्केबाजों और पहलवानों को जल्द ही किसी फ़िल्म का ऑफर मिल जाए तो ताज्जुब मत करियेगा. ये किसी अखाडे या किसी मुक्केबाजी ट्रेनिंग सेंटर में जाकर नए खिलाडिओं को गुर नही सिखा रहे, ख़ुद सीख रहे है, बोलीवुड के गुर. याद कीजिये हर मिस यूनीवर्स और मिस वर्ल्ड शुरुआत में कहती है कि जीतने के बाद समाज सेवा करूंगी, लेकिन खिताब जीतते ही वो बोलीवुड की तरफ़ भागती है. कुछ समय बाद वो समाज नही बल्कि बोलीवुड की सेवा करती नजर आती है, यही हाल खिलाडियो का हो रहा है. कोई फैशन परेड कर रहा है तो कोई फिल्मी कलाकारों के सात फोटो के लिए पोस दे रहा है. जरा इनसे पूछिए ओलंपिक से लौटने के बाद ये कितना खेले और किसके लिए.
उधर कुछ क्रिकेटर टीवी पर हसीनाओं के साथ ठुमके लगाते हुए नजर आ रहे हैं उस टीवी शो में जज बनी एक बड़ी अदाकारा एक क्रिकेटर के ठुमकों से बेहद प्रभावित हुई हैं और कह रही है कि तुम्हे फिल्मों में तरी करना चाहिए. यानि यही एक काम रह गया था. क्रिकेट छोड़कर बाकी सब कुछ करना और खासकर बोलीवुड कस्स एंट्री करना आजकल के खिलाडियो का शगल बन गया है. अचंभो होता है क्रिकेट में इतना पैसा होने के बावजूद ये ठुमके लगा रहे हैं. नेट पर प्रेक्टीस नही कर सकते. कोई विज्ञापनो में लगा है तो कोई नाच गाने में. अभ्यास मैचों में ये जख्मी हो जाते है, और असल मैचों में फिसड्डी की तरह खेल कर बाहर हो जाते है.
क्या हो गया है खेल जगत को. क्यों सब सिनेमा की तरफ़ भागते नजर आ रहे है. क्यों हर कोई स्टार बनने को उतावला है. क्यों सबको टीवी पर कवरेज चाहिए. क्या वास्तव में खेल इतना पैसा नही दे रहा या खेल बोरिंग हो रहा है. इन दोनों से से कोई बात सही नही. दरअसल ग्लेमर की ये दुनिया इतनी चमकीली है जो उनको आसानी से निशाना बनाती है, जिनकी उसे जरूरत है. ये नए हीरो ग्लेमर जगत की जरूरत है. इनके दम पर ही ही तो पैसा बरसता है. फ़िर चाहे कोई खिलाडी फ़िल्म स्टार बने या कोई विश्व सुन्दरी.
Saturday, September 27, 2008
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3 comments:
achahca or ekdam sachcha likha hai...kabhi hamara blog bhi gumo
सही कहा आपने, बाप बडा न भइया, सबसे बडा रूपइया।
अमिताभजी ने अपने ब्लॉग में डे-१५८ पर आख़िर में एक sms का जिक्र किया है, वह आपके इस लेख का पूरक है
Received a sad but pertinent sms on my mobile today, which became thought provoking, I share it with you -
“An ace shooter wins Gold and Government gives him 1+ crore.
Another ace shooter dies fighting terrorists and Government pays him 5 lakhs.
Guess the real winner !!”
‘To be human, be humane’
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