हमसे हमारी बात कोई पूछता नही
कुछ और सवालात कोई पूछता नही.
जिसकी दर ओ दीवार और छत्त ही नही
कैसी ये हवालात कोई पूछता नही.
जिसमे हिलें न होंठ हों आंखों पे पट्टियाँ
कैसी वो मुलाक़ात कोई पूछता नही
पहले उजाड़ घर को घरोंदों की पेशकश
किनकी है करामात कोई पूछता नही।
कुछ लोग लाल ताल हैं बांधे हैं मुट्ठियाँ
होगी क्या वारदात कोई पूछता नही
है आसमान सख्त जमी के शिरे तने
कब टूटे कायनात कोई पूछता नही
यहाँ सब्र किसे दूसरों का हाल जो पूछे
अपने दिले जज्बात कोई पूछता नही।
विनीता वशिष्ठ
4 comments:
जिसकी दर ओ दीवार और छत्त ही नही
कैसी ये हवालात कोई पूछता नही.
जिसमे हिलें न होंठ हों आंखों पे पट्टियाँ
कैसी वो मुलाक़ात कोई पूछता नहीं
वल्लाह क्या बात है....बेहद कमाल की ग़ज़ल है ये आप की...दिली दाद कबूल फरमाएं...
नीरज
यहाँ सब्र किसे दूसरों का हाल जो पूछे
अपने दिले जज्बात कोई पूछता नही।
- सुंदर गजल
पहले उजाड़ घर को घरोंदों की पेशकश
किनकी है करामात कोई पूछता नही।
vaah bahut hi acchi gazal hai aapki. man ko hila gyi. badhaai
यहाँ सब्र किसे दूसरों का हाल जो पूछे
अपने दिले जज्बात कोई पूछता नही।
बहुत उम्दा,बधाई.
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