Saturday, September 6, 2008

आपकी राशिः और गणेश जी ....

अपनी राशि पर आई दुविधा को दूर करने के लिए ऐसे करे गणेश पूजा....
क्या आप जानते है की सभी ग्रह और नक्षत्रो और राशिओं के देव गणेश जी है. यानि सभी ग्रह और राशियाँ गणेश जी के ही अंश है. गणेश जी हर राशिः को अलग अलग तरह से प्रभावित करते है. आइये जानते है कि आपकी राशिः में क्या दुविधा है और गणेश जी उसे कैसे ठीक कर सकते है. इस्सके लिए गणेश जी कि कैसे पूजा अर्चना करनी होगी....

मेष:(चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
इस राशि के गणेशस्वरूप को मेषेश्वर कहा जाता है। मेष राशि के लग्न और राशियों के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें प्रमुख है, लाभ की कमी, अपने से अधीनस्थों से पीड़ा ,अत्यधिक क्रोध और तनाव।

उपचार-
स्फटिक से बनी गणेश प्रतिमा का पूजन करें। पूजन करते समय जिस सामग्री का उपयोग करना है उसमें गंध, पुष्प, धूप, दीप ओर पंचोपचार प्रमुख है। इसी के साथ इष्ट मंत्र से काले तिल में शहद को मिलाकर नीम की लकड़ी की समिधा पर हवन का आयोजन करें। हवन संपूर्ण होने के वाद हवन सामग्री को किसी शूद्र को दान में दें, इसी के साथ उन्हें भोजन कराएं।
अगर आप गणेश जी का विशेष अनुष्ठान करना चाहते है तो फाल्गुन शुल्क चतुर्थी से फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा तक व्रत रखें और इसी दौरान अनुष्ठान का आयोजन करें। व्रत के दौरान ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दें। रोज गणेश प्रतिमा (स्फटिक के बनी) का पंचोपचार पूजन करें। इसी के साथ इष्ट मंत्र से कम से कम ३१ बार माला का जाप करें। पीले वस्त्रों का दान करें।

वृषभ:(इ, उ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे)
इस राशि के गणेशस्वरूप को वृषभेश्वर गणेश कहा जाता है। वृष राशि के लग्न और राशि के व्यक्ति को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें भाग्य का साथ न देना, पिता एवं भाई बंधुओं से रिश्तों को लेकर तनाव, संतान के साथ तारतम्य न बैठ पाना प्रमुख है।

उपचार-
रुद्राक्ष के मनके पर भगवान गणेश के वासुदेव स्वरूप की प्रतिष्ठा करें और उनके पूजन करते समय गंध, पुष्प, धूप, दीप व पंचोपचार का प्रयोग करें। इसी के साथ अपने इष्ट का मंत्र जाप कर घी में काले तिल मिलाकर नीम की समिधा पर हवन करने से काफी फायदा होगा।
गणेश चतुर्थी को इष्ट मंत्र का जाप करते हुए ३१ बार माला का जाप करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं। शूद्रों को भोजन का दान करें। इसी के साथ नीले वस्त्रों का दान करना भी लाभकारी होता है।


मिथुन:(क, की, कु, घ, ड, छ, के, को, ह) इस राशि के गणेशस्वरूप को मिथुनेश्वर गणेश कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्ति को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें वैवाहिक जीवन में तनाव, सार्वजनिक जीवन में कष्ट , विवादों में संलिप्तता, धन का नाश प्रमुख है।

उपचार-
स्वर्ण से बनी गणेश प्रतिमा का पूजन करें। पूजन करते वक्त गंध, पुष्प, धूप, दीप और पंचोपचार का होना जरूरी है। इसी के साथ गणेश चतुर्थी को इष्ट मंत्र का जाप करते हुए ३१ बार माला का जाप करना शुभकारी है।
वैशाख माह में पडऩे वाली चतुर्थी को भगवान गणेश संकर्षण स्वरूप का पूजन विधिवत किया जाए तो समस्याओं से काफी हद तक निदान हो सकता है। ब्राह्मणों को भोजन कराना और शंख का दान करना भी काफी लाभकारी होगा।


कर्क:(ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
इस राशि के गणेशस्वरूप को कर्केश्वर कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें, आर्थिक क्षेत्र में कठनाई, दाम्पत्य जीवन में दु:ख, भाइयों से अनबन होना प्रमुख है।

उपचार-
सफेद आंकड़ों से बने गणेश की पूजा करें। पूजा में गंध, पुष्प, धूप, दीप ओर पंचोपचार का होना लाभकारी होगा। प्रत्येक माह की संकष्टी चतुर्थी को व्रत रखकर भी भगवान गणेश को प्रसन्न किया जा सकता है ।
इसी के साथ ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष चतुर्थी को षोडशापचार पूजन कर गणेश की आरती करें तो काफी लाभकारी होता है। ब्राह्मणों को भोजन कराना, श्वेत वस्त्र का दान करना, फल और कन्द का दान करना भी लाभकारी होता है।


सिंह:(मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टे)
इस राशि के गणेशस्वरूप को सिंहेश्वर गणेश कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें जीवन में तनाव का होना, कुटुम्बियों से झगड़ा, दाम्पत्य जीवन में दु:ख होना प्रमुख है।

उपचार-
प्रवाल से बने गणपति का पूजन करें। पूजन सामग्री में गंध, धूप, पुष्प, दीप और पंचोपचार का होना शुभ माना जाता है। इसी के साथ माघ शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी को उपवास रख गणेश के अनिरूद्ध स्वरूप षोडशोपचार की पूजा करनी चाहिए।
सन्यासियों को तंूबी पात्र का दान करना लाभकारी होता है। गुड़ मिले हुए काले तिलों से कनेर एवं देवदारू की समिधा पर हवन करना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन कराना भी शुभ होता है।


कन्या:(टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
इस राशि के गणेशस्वरूप को कन्येश्वर कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन मूल समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें धन की उत्पत्ति से संबंधित समस्याएं, निर्णय क्षमता की कमी का होना, दाम्पत्य जीवन में सामन्जस्य की कमी प्रमुख है।

उपचार-
हल्दी व स्वर्ण से गणेश प्रतिमा का निर्माण कर पूजन करना चाहिए। पूजन सामग्री में गंध, पुष्प, धूप , दीप व पंचोपचार का होना अच्छा माना जाता है।
चतुर्थी को बाटी के लड्डु गुड़ में तैयार कर केल की समिधा पर हवन करना अति लाभकारी है। कृष्णपक्षीय व्रत रखना भी शुभकारी है। ब्राह्मणों को भोजन कराए भोजन में लड्डू होना चाहिए, जो लड्डू भोजन में दिया हो उसका स्वंय भी भोग करें। दूध देने वाली गाय का दान लाभकारी है।


तुला:(र, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
इस राशि के गणेश को तुलेश्वर गणेश कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें अजीविका के साधनों में कमी, आर्थिक लाभ में कमी, सरकारी मशीनरी से कष्ट प्रमुख है।

उपचार-
रक्त चंदन से बने गणेश का पूजन करना चाहिए। पूजन में गंध, पुष्प, धूप, दीप व पंचोपचार का उपयोग हो। माह की चतुर्थी को उपवास रख गणेश जी कि आराधना करें। इसी के साथ अष्विन शुक्ल चतुर्थी को भगवान कपर्दिश गणेश का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। दान में लाल कम्बल और औषधि दें। अश्विन शुक्ल चतुर्थी को भगवान कपर्दिश गणेश का षोडशोपचर पूजन करें। पुरूषों को अर्जुन की समिधा पर हवन करना चाहिए।


वृश्चिक:(तो, ता, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
इस राशि के गणेशस्वरूप को वृश्चिकेश्वर गणेश कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें परिवार में आर्थिक संकटों का होना, बचपन में असुविधा, भाग्यमंदता और सांसारिक कष्ट प्रमुख है।

उपचार-
गजदंत से बनी गणेश प्रतिमा का पूजन करें। पूजन में गंध, पुष्प, धूप, दीप और पंचोपचार का होना शुभकारी है। इसी के साथ कार्तिक शुक्ल की चतुर्थी को भगवान भालचन्द्र गणेश का षोडशोपचार पूजन बहुत ही लाभकारी है। गणेश चतुर्थी का व्रत करें, व्रत के दौरान एक समय बाटी और एक समय लड्डू का प्रसाद लगा कर उसे ग्रहण करें।

स्त्रियों को सुहाग की वस्तुएं दान देना इस राशि के जातकों के लिए शुभ माना गया है। मरूआ अथवा आम की समिधा पर चावल व घी से हवन करें। ब्राह्मणों को भोजन कराए।


धनु:(ये, यो, भा, भी, का, फा, ढा, भे)
इस राशि के गणेशस्वरूप को धनेश्वर गणेश कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन कष्टों का सामना करना पड़ता है उनमें सार्वजनिक जीवन में बाधा, वैवाहिक जीवन में तनाव, गुप्त शत्रुओं से पीड़ा और माता के जीवन से कष्ट प्रमुख है।

उपचार-
मूंगे से निर्मित गणपति का पूजन करें। पूजन में गंध, पुष्प, धूप, दीप और पंचोपचार का होना शुभकारी है। इसके अलावा भगवान गणेश के सुरागृज स्वरूप का पूजन करना चाहिए। चतुर्थी का उपवास विशेष लाभकारी है।
प्रात:काल उठकर इष्ट मंत्र से आक की समिधा पर हवन करें। गंधारी अथवा केतकी की समिधा पर मूंग के बने मोदक का हवन करना चाहिए। मूंग के पदार्थों का निर्माण कर ब्राह्मण को दान में दें। इसी के साथ अंग-वस्त्र का दान करना लाभकरी होता है।


मकर:(भो, जा, जी, जू, खू, खे, खो, ग, गी)
इस राशि के गणेश को मकरेश्वर कहा जाता है । इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें आर्थिक कष्ट, लाभ की प्राप्ति में रुकावट, भाइयों से पीड़ा प्रमुख है।

उपचार-
चंदन से निर्मित गणेश की पूजा करें। पूजन में गंध, पुष्प, धूप, दीप, व पंचोपचार का होना शुभकारी है। भगवान गणेश के लम्बोदर स्वरूप की पूजा करना भी इस राशि के जातकों के लिए शुभ माना गया है। विशिष्ट अनुष्ठान के दौरान बरे की समिधा पर तिल्ली एवं मोदक से हवन करना चाहिए। महीने की संकष्टी चतुर्थी को उपवास करें और उपवास के दिन रात्रि में चंद्रमा के उदय हो जाने के बाद भोजन को ग्रहण करना चाहिए।
चतुर्थी को अनुष्ठानपूर्वक लम्बोदर गणेश का षोडशोपचार पूजन करें इसी के साथ ब्राह्मणों को भोजन कराकर कांस्य पात्र का दान करना चाहिए।


कुंभ:(गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, द)
इस राशि के गणेशस्वरूप को कुंभेश्वर गणेश कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें जीवन में बार-बार संत्रास, परिवार में असंतोष, वैवाहिक जीवन कष्टकारी और भाग्यमंदता प्रमुख है।

उपचार-
श्वेतार्क गणपति का पूजन करें। पूजन के समय गंध, पुष्प,धूप, दीप और पंचोपचार का प्रयोग शुभकारी माना जाता है। इस राशि के व्यक्तियों के लिए चतुर्थी का उपवास करना अच्छा माना जाता है। पौष शुक्ल चतुर्थी को भगवान गणेश के विघ्रेश्वर स्वरूप का पूजन करना चाहिए। विशेष अनुष्ठान के लिए अगस्त की समिधा पर चावल, शकर एवं घृत से हवन करना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन कराकर चांदी के पात्र दान करना चाहिए।


मीन:(दी, दू, थ, झ, त्र, द, दो, चा, ची)
इस राशि के गणेशस्वरूप को मीनेश्वर गणेश कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें मनपसंद जीवनसाथी का न मिलना, पत्नी से अनबन, आर्थिक मार, परिवार के किसी व्यक्ति को असाध्य रोगों की पीड़ा प्रमुख है।

उपचार-
प्रवाल के गणपति का पूजन करें। पूजन में गंध ,पुष्प, धूप, दीप और पंचोपचार का उपयोग करना चाहिए। चतुर्थी का व्रत रखना लाभकारी होता है। भगवान गणेश के ढुण्ढीराज स्वरूप का पूजन करना अति लाभकारी होता है। इसके अलावा माघ माह की चतुर्थी को मृत्तिका की मूर्ति पर षोडशोपचार पूजन करें।
विशिष्ट अनुष्ठान में आक की समिधा बनाकर शमी-पत्र से हवन करें साथ ही गुड़ के मोदक का भी प्रयोग किया जा सकता है। ब्राह्मणों को भोजन कराकर तांबे के पात्र और और छाते का दान करना शुभ है।

8 comments:

डॉ .अनुराग said...

ham maante nahi hai vinita ji fir bhi shukriya....

vineeta said...

dekhne ke lie shukriya anuraag ji lekin ye unke lie hai jo maante hai. jo nahi maante, ve sirf pad le yahi kaafi hai.

कामोद Kaamod said...

बढ़िया जानकारी...

Anonymous said...

जो सोने से बनी गणेश प्रतिमा न खरीद सकता हो क्या भगवान उससे प्रसन्न नहीं होते।

राज भाटिय़ा said...

वितिता जी, मे तो भगवान ने जो कहा हे की अच्छे कर्म करो , तो मे उस भगवान का कहना मानता हु, बस ... धन्यवाद

Udan Tashtari said...

जय हो गणपति महाराज की!!!

आभार इस जानकारी के लिए.

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vipinkizindagi said...

achchi post

Anonymous said...

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