Thursday, September 4, 2008

और भी मुद्दे है इस मुद्दे के सिवा...

पिछले काफ़ी दिनों से ब्लॉग पर नारीवादियों और पुरूषवादियो के बीच एक अघोषित जंग देख रही हूँ । स्त्री देह विमर्श हो या महिलाओं द्बारा पुरुषों के सामूहिक मानसिक बलात्कार का बयान ब्लॉग को छिछला और स्तरहीन ( यह मेरी निजी राय है ) बना रहे है। कहीं नारियां मर्दों के ख़िलाफ़ लामबंद हो रही हैं तो कहीं पुरूष नारियों को ईश्वर की भूल करार देने पर तुले है। दोनों ओर से मानसिकताओं को छोटा बताने और बनाने का मिशन चल रहा है। पूरा ब्लॉग जगत वर्गों में बंट गया लगता है। ब्लॉग मर्द और औरत की जंग के लिए रणभूमि में तब्दील हो गया है। महिला का ब्लॉग होगा तो वहां पुरुषों के लिए जहर उगला होगा और पुरूष का ब्लॉग हुआ तो चोखेरबालियों पर तंज किया होगा। लांछनों और प्रति-लांछनों का दौर ख़तम होने का नाम ही नही ले रहा। इससे भला तो अंग्रेजी का ब्लॉग है जहाँ इस तरह की लड़ाई नही मिलती।
मन ये देख कर व्याकुल है। हम और अन्य ब्लॉगर जो इस जंग को गेर जरूरी समझते है, वो बेचारे इस जंग में बेवजह ही पिसे जाते है। माना कि आपमें लिखने का हुनर है और लेखन का शौक भी, तो इस कला तो केवल वर्ग विवाद में जाया मत कीजिये। यकीन नही होता कि इतने प्रतिभावान और समझदार ब्लॉगर किस चक्कर में पड़ गये है। क्या हम ब्लॉग को केवल ब्लॉगर के रूप में नही चला सकते। क्यों ब्लॉग जगत को महिला और पुरुषों मैं बाँट रहे हैं।
मैं ख़ुद एक महिला हूँ और मुझे पसंद नही कि यहाँ किसी भी वर्ग और उनकी शारीरिक असमानताओं या चरित्र विशेषताओं पर चर्चा की जाए। ब्लॉग जगत अपने विचारों को कहने सुनने का एक बहुत ही अच्छा जरिया है। यहाँ आप बिना ये सोचे कि महिला हैं या पुरूष अपने विचारों, अपनी कला और संवेदना को दूसरों के सामने रख सकते है। ब्लॉग मंच है अभिव्यक्ति का, वर्ग विशेष की त्रुटियां बताने का अड्डा नही है ये। इस राजनीति से इसे दूर ही रखा जाए अच्छा होगा। वैसे भी इस विवाद ( श्रेष्ठ कौन ) का हल तो स्वयं भगवान् भी नही बता पाए तो हम किस खेल की मूली हैं। दोनों वर्ग एक दूसरे की खामियां बताते रहेंगे और सच मानिए एक दूसरे के बिना इनका गुजारा भी नही। क्या चोखेरबलिया अपने घर के पुरुषों (पति, भाई, पिता ) को भी इसी तराजू में तोलती हैं और क्या कथित पुरुषवादी अपने घर की महिलाओं (माँ पत्नी, बहन ) को भी ईश्वर की भूल मानते हैं. सच तो ये है कि दोनों एक दूसरे के पूरक है और तभी दुनिया भी चलती है।
मेरी सलाह मानिए और इस वर्गीय और सनातन दुश्मनी को त्याग दीजिये। (मुझे यकीन है कि हर ब्लॉगर (जो इस लड़ाई में तन और मन से जुटा हुआ है।) यही कहेगा कि यहाँ कोई दुश्मनी नही, ये तो मुद्दों और विचारों की लड़ाई है। हम भी तो यही कह रहे है कि मुद्दे और भी हैं ज़माने में इस मुद्दे के सिवा... कुछ उन पर भी नज़र डालिए।

7 comments:

Anonymous said...

vineeta
aap kabhie prayatan karey ki blogger ko mahila aur purush blogger mae hindi blogging mae baanta kisney haen
kabhie un blogs par jahaan mahila blogger kae shareer par , kapdo par
tippani hotee haen jaa kar apne ahemati darj karaatee to lataa ki aap bhi saarthak blogign chahtee haen .
ignore karke aur chup reh kar naari kae apmaan ko daekhna sab nahin kar saktey

डा. अमर कुमार said...

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अरे, अब तक तुमको मैंने क्यों नहीं पढ़ पाया था, विनीता ?
भाई, बहुत खूब ! बहुत ही साहसिक तरीके से तुमने अपनी बात रखी है । साधुवाद !
यदि तुमको मेरे ब्लाग्स पर जाने का अवसर मिले तो पाओगी कि मैंने लिखना कितना
सीमित कर रखा है, मन ही नहीं करता.. लगता है.. ’ ये कहाँ आ गये हम.. ’
मैंने अंग्रेज़ी में ब्लागिंग शुरु की थी 2005 में ही..पर यहाँ तो माहौल ही कुछ अलग है ।
हिंदी ब्लागिंग का नाश मार रही है.. यह नासपीटी बहस !
ढेर सारे लोगों की भी यही राय होगी, जो तुम्हारी है, इसका स्वागत है ।
पर यहाँ भी एक खतरा मँडराता दिख रहा है, कि आगे चल कर तुम्हारे जैसी खुली सोच
रखने वालों का भी एक गुट बन जायेगा.. और एक अदद अगुआ ..
फिर... फिर क्या ? एक और मोर्चा खुल जायेगा और एक नयी बहस

vineeta said...

सही कह रहे है डॉक्टर साहब. लेकिन यहाँ आप और मुझ जैसे भी कई मिल जायेंगे जो इन मुद्दों पर किसी भी तरह की बहस नही चाहते. बस कुछ नया, अच्छा और सार्थक मिल जाए उसे पूरा पड़ डालो और दे दो अपनी टिपिया. विचारों को सराहो, दुलारों, प्रेरित करो, न की उघाडो, ऊधेडो और जलील करो. यहाँ समीर भाई, अनुराग भाई और हमारे पंगेबाज जैसे लोग भी हैं जो इस चक्करों में नही पड़ते. सही कर रहे है. इस तरह के ब्लॉग को पड़कर अपनी सहमति या असहमति देना भी अपने और अपनों की खिलाफत करना ही है. भाई हम तो तंग आए इन ब्लोगियों से जिनकी दुनिया और सोच सिर्फ़ दूसरे वर्ग के इर्द गिर्द गूमती है.

डॉ .अनुराग said...

हमारी इक बेहद अजीज दोस्त है ब्लॉग पढ़ती है पर कभी कमेन्ट नही करती......अपने ग्रहस्त जीवन में व्यस्त है ओर समाज के लिए ढेरो काम करती है .....कभी कभी कलम उठाती है ...ओर अपनी diary में लिखती है वो कहती है......
.."जहाँ चुप रहना था अक्सर वहीं बोल आये ..
जा ज़िन्दगी कुछ नही तुझमें , तेरी _गुल्लक भी हम टटोल आये .."

ओर इक २३ साल का लड़का रजनीश देखिये कितनी बड़ी बात कहता है

बड़ी पेचीद गी है ज़िंदगी मे..यूँ ना समझे थे,
जहाँ समझा किए मुश्किल वहीं आसां निकलती है...

तो समझा कीजिये आप भी........

RADHIKA said...

BAhut sahi likha hain Aapne badhai

Udan Tashtari said...

अच्छा अच्छा लिखो!!
अच्छा अच्छा पढ़ो!!

सबको लिखने पढ़ने दो-
जिसके जो जी मे आये
वो करने दो..

तुम बस!!

अच्छा अच्छा लिखो!!
अच्छा अच्छा पढ़ो!!
जो दिल को भाये
वो करो!!

राज भाटिय़ा said...

विनिता जी, आप ने बिलकुल सही लिखा हे, लेकिन इन बातो का असर हमारे आने वाली पीढी पर गलत पढता हे, जो बच्चे १६, १७ साल के या फ़िर इस से बडी उम्र के हमारे लेख पढते हे उन पर इन बातो का असर गलत पडता हे, ओर मुझे लगता हे ऎसी बाते करने वाले या फ़िर करने वालिया या तो शादी शुदा नही होती या फ़िर तलाक ले कर दुसरो को भी बरवाद करना चाहते हे, जिन्हे पता ही नही परिवार क्या हे, पति ओर पत्नि क्या हे, बच्चे क्या हे
धन्यवाद एक अति सुन्दर ओर सटीक लेख लिखने के लिये, ओर इस लेख के लिये मे आभारी हु
धन्यवाद