Wednesday, December 10, 2008
तेरह किलो का आलू ....
उम्मीद : काश भारत भी कोई ऐसा प्रोजेक्ट चलाए जिससे खाद्यान्न के इस देश में भूख से मरने वालों की संख्या में कमी आ सके।
Monday, December 8, 2008
....और मोबाइल चोरी हो गया
नन्हा आतंकवादी - नन्हे आतंकवादी पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था लेकिन क्या क रूं उस पर गुस्सा निकाल नहीं पा रही थी। क्योंकि वो अभी भी उतनी ही उछलकूद कर रहा था और हंस रहा था। मोबाइल में दो सिम कार्ड और एक एक जीबी का मेमोरी कार्ड था। पतिदेव ने तुरंत पांडव नगर थाने जाकर रिपोर्ट दर्ज कराई और एफआईआर की कापी लेकर घर लौटे।
लापरवाह एमटीएनएल- उधर मैं एमटीएनएल के कस्टमर केयर को नंबर लगा रही थी लेकिन कोई नंबर उठा कर काट रहा था। ऐसे में एमटीएनएल पर बड़ा गुस्सा आया। सच में कितने लापरवाह है इस कंपनी के लोग। कल को इस नंबर को दुरुपयोग हुआ तो कंपनी इस चीज की जिम्मेदारी नहीं लेगी। आखिर कस्टमर केयर २४ घंटे खुलता है लेकिन अधिकारी क्या नींद लेने के लिए आते हैं। आज ईद की छुट्टी है तो जाहिर सी बात है कि आज एमटीएनएल का दफ्तर आज खुलेगा नहीं। कल तक पतिदेव को बिना मोबाइल के रहना होगा।
शक - मुझे स्टाल के मैनेजमेंट पर पूरा शक है। वहां कई लोग थे जो यहां वहां (काम न होने पर भी) घूम रहे थे और लोगों से टकरा रहे थे। एक लड़की ने बताया भी कि सुबह से तीन मोबाइल यहां गायब हो चुके हैं। लेकिन हम भी क्या करते, लोगों की तलाशी तो नहीं ले सकते थे। लग गया था पांच हजार का फटका। सच बुरा ही रविवार था। इस महीने का बजट बनाते समय हाथ कुछ टाइट रखना होगा।
Friday, December 5, 2008
आज हमारा अवतार दिवस
आफिस आए तो आश्चर्यजनक रूप से कई लोगों को हमारा अवतार दिवस याद था। सभी पार्टी की जिद कर रहे थे और जेब मना कर रही थी। सबको टाल दिया कि कुछ समय बाद देंगे। हां चाय पानी प्रायोजित किए जा सकते हैं। आज जबकि सारा हिंदुस्तान बाबरी को याद करता है, कुछ लोग इस बावरी को भी याद किया करते हैं। जयपुर से अभिन्न मित्र राजीव जैन के फोन का इंतजार है। वो हमारा बर्थडे याद रखते हैं और हमे उनका बर्थडे टीवी के न्यूज चैनल याद (११ अक्तूबर-अमिताभ बच्चन का जन्मदिन) दिला देते हैं।
आज जल्द ऑफिस से निकल जाएंगे और पतिदेव के साथ कुछ तफरी का प्रोग्राम है। अभी तक सब अच्छा चल रहा है और ईश्वर से प्रार्थना है कि सब अच्छा चले। ब्लॉग लेखक होने के नाते ब्लॉग जगत के साथियों से जुड़ी हुई हूं और इस नाते आप सभी के प्यार और आशीर्वाद की हकदार हूं।
Wednesday, December 3, 2008
नन्हे मोशे का भविष्य
Wednesday, November 26, 2008
मुंबई पर हमला लेकिन कहां गए राज ठाकरे
ये संकट का समय है। ऐसे में राजनीति छोड़कर आपसी सहयोग करना चाहिए। अभी टीवी देख रही थी कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी आज तक न्यूज चैनल पर बयान दे रहे थे। ज्योंहि संवाददाता ने इस संबंध में एक राजनीतिक सवाल पूछा, मोदी ने उसे लताड़ दिया। उन्होंने कहा कि यह साझा संकट है और इस समय राजनीतिक सवाल नहीं पूछने चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस तरह ९/११ के हमले के बाद अमेरिका ने आतंकवाद पर कड़ा रुख अपनाया है उसी तरह भारत को भी इस संबंध में कड़ी और ठोस नीति अपनानी चाहिए। मै भी मोदी की बात से सहमत हूं।
मां दा लाडला बिगड़ गया
बेटी गा रही है-तू साला काम से गया और बेटा गा रहा है-मां दा लाडला बिगड़ गया। सिनेमा दोनो को बिगाडऩे पर तुला है। ना ना ....हम यहां सिनेमाई आदर्श झाडऩे नहीं जा रहे, हम तो बात कर रहे हैं उन गानों की जो बिगाड़ रहे हैं लफ्जों की सुनहरी और प्यारी दुनिया के सुर और ताल। गोलमाल रिटर्न का-तू साला काम से गया। जाने तू-पप्पू कांट डांस साला। और भी जाने क्या इश्क कमीना, इश्क निकम्मा, कम्बख्त इश्क। अगर इतना ही बुरा है इश्क तो क्यों करते हो प्यारे। गानों में फूहड़ता और जल्दबाजी को डाल कर इंस्टेंट बनाया जा रहा है। ओए ओए, ओले ओले के बाद अब दुनिया की ठां ठां ठां हो रही है। दिल अब किसी के प्यार में करवटें नहीं बदलता, दर्दे डिस्को करता है।
Tuesday, November 25, 2008
फैशन का है ये जलवा
कुल मिलाकर फ़िल्म अच्छी थी. मधुर ने फ़िल्म और फैशन के साथ सही न्याय किया है. फ़िल्म नेट से डाउनलोड की थी. रात को डेढ़ बजे फ़िल्म देखकर सोये तो हमारा मन्नू भी जग रहा था. सुबह ऑफिस की भागमभाग रही पर अब नींद आ रही है. अभी दिल और आँखों में फैशन का ही खुमार है.
Monday, November 17, 2008
जरा बताइए.. नेट कनेक्शन कौन सा लें
अपने डेस्कटॉप पर अपने मन की फोटो भी लगा ली है और बफर साउंड वाले स्पीकर भी ले आए है. खूब मज़ा आ रहा है आजकल . नेट नही है तो गेम में जाकर सोलिटर (ताश के पत्तों को व्यवस्थित करना) ही खेल लेते है. जब नेट लग जायेगा तो सबको खूब पढ़ा करेंगे. फ़िर तो टिप्पणी भी निसंकोच दिया करेंगे. अभी तो ऑफिस में समय की कमी के चलते कभी कभी लिख पाते थे और कभी कभी ही पढ़ पाते थे. फिलहाल इतना ही...अब जल्द ही अपने कंप्यूटर पर लिखेंगे --------------
Monday, October 20, 2008
राज की टीआरपी और मराठी
Tuesday, October 14, 2008
क्या पति भी करवा चौथ का व्रत करे
सच में ये परस्पर प्यार और आस्था का त्यौहार है. में अगले जनम में उनका वरन करू और वो मुझे ही अगले जनम में अपने साथ पाये. यही प्रार्थना भगवान् सुनेंगे. भगवान सुनते है या नही ये तो नही जानती लेकिन इतना जानती हूँ कि त्यौहार की तेयारी और साथ साथ व्रत करने से दोनों में प्यार बढ़ता है. यही प्यार तो परिवार की नींव है और हम तो इस जनम के बारे में सोचने वालो में से हैं. ये जनम प्यार से गुजार लो, अगला जनम अपने आप तर जायेगा. वैसे भी कहा जाता है कि मानव योनि एक बार ही मिलती है और वो हम इस जनम में प्यार से भोग ले यही काफ़ी है.
नोट _ इस बार में करवा चौथ पर भगवान् से यही मांगूंगी कि अगले जनम कि प्लानिंग न करके इस जनम में भरपूर प्यार का कोटा दे दे. दोनों में आपसी समझ और प्यार ऐसे ही बना रहे, आपको भी यही दुआ करनी चाहिए.
Monday, October 6, 2008
सुधर जाओ अमर सिंह
सुधर जाओ अमर सिंह
बाटला हॉउस मुठभेड़ पर अमर सिंह की तजा टिप्पणी उनकी वोट बेंक की राजनीती का हिस्सा भर हो सकता है लेकिन उनके बयान शहीद एम् सी शर्मा के परिवार और हिंदुस्तानिओं के दिलों पर कितना बुरा असर दाल रहे हैं ये वो नही जानते. सुर्खिओं में रहने के ये शिगूफे अमर सिंह बखूबी जानते है और यही कारण हैं कि लोग उन्हें राजनीति का दलाल कहते है. लोग सही कह रहे है. एक तरफ़ शहीद का अपमान और दूसरी तरफ़ आतंकिओं को होनहार स्टुडेंट (क्या छात्र आतंकवादी नहीं हो सकते) कहना छिछोरेपन की हद है. कभी सोनिया गांधी को लेला कहने वाला ये आदमी कुछ दिन पहले सोनिया के गुन गा रहा था . क्या दोगला इंसान है और कोई कैसे इसे झेलता होगा. हर विवाद में अपनी नाक घुसेड़ने वाला ये आदमी ओछेपन की मिसाल है. केवल एक समुदाय के सहानभूति वोट पाने के लिए ये आदमी किस किस का अपमान करेगा. शहीद का, धमाकों में मारे गये मासूमो का, उनके परिजनों का और उन जवानो का जो देश से आतकवाद को हटाने के लिए जा जान से जुटे है.
पैसे के बल पर सांसदों कि खरीद फरोख्त हो या, रिश्वत काण्ड. कोई भी मसला हो ये सबके विपरीत केवल अपनी पार्टी के स्वार्थ के लिए कुछ भी उल जलूल बोलता दिख जायेगा. हीरोइनों से फ़ोन पर गन्दी बातें करने की इसके बात खुली तो इसे दाव खेला कि मेरे फ़ोन टेप किए जा रहे है. तब कांग्रेस इसको अपनी जान की सबसे बड़ी दुश्मन नजर आ रही थी. आज कांग्रेस को ये सबसे अच्छी पार्टी मान रहे है. कांग्रेस को बचाने के लिए इन्होने ही वामपन्थिओं को धोखा देकर संसद में कांग्रेस का हाथ पकड़ा. राजनीति में इनके घटियापन की मिसाल दी जाती हैं दुर्भाग्य है कि आज देश आतकवाद के साथ साथ अपनी ही राजनीति से लड़ रहा है. वो राज्नीतो जो अमर सिंह जैसे चिछोरो के चलते स्तरहीन हो गयी है.
क्या केवल वोट के लिए और सत्ता में बने रहने के लिए ये आदमी शहीद का अपमान कर रहा है. घटिया बातें बोलकर कोई महान या लोकप्रिय नही बनता अमर सिंह जी. जनता के देश के हित में काम कीजिये. तो पूरा देश आपको सर आंखों पर बिठाएगा. अभी भी वक्त है कि सुधर जाओ वरना कोई देशभक्त किसी दिन आपको सही रास्ता जरूर दिखा देगा.
नोट - ऐसा लिखने के पीछे कोई ख़ास मंशा नही थी. बस आज अमर सिंह की टिपण्णी सुन कर बहुत गुस्सा आया. सम्भव हैं कि आपको भी आया होगा. मेरे लेखन से किसी की भावनाएं आहत हुई हो तो क्षमाप्रार्थी हूँ.
Saturday, September 27, 2008
चले खिलाडी हीरो बनने....
उधर कुछ क्रिकेटर टीवी पर हसीनाओं के साथ ठुमके लगाते हुए नजर आ रहे हैं उस टीवी शो में जज बनी एक बड़ी अदाकारा एक क्रिकेटर के ठुमकों से बेहद प्रभावित हुई हैं और कह रही है कि तुम्हे फिल्मों में तरी करना चाहिए. यानि यही एक काम रह गया था. क्रिकेट छोड़कर बाकी सब कुछ करना और खासकर बोलीवुड कस्स एंट्री करना आजकल के खिलाडियो का शगल बन गया है. अचंभो होता है क्रिकेट में इतना पैसा होने के बावजूद ये ठुमके लगा रहे हैं. नेट पर प्रेक्टीस नही कर सकते. कोई विज्ञापनो में लगा है तो कोई नाच गाने में. अभ्यास मैचों में ये जख्मी हो जाते है, और असल मैचों में फिसड्डी की तरह खेल कर बाहर हो जाते है.
क्या हो गया है खेल जगत को. क्यों सब सिनेमा की तरफ़ भागते नजर आ रहे है. क्यों हर कोई स्टार बनने को उतावला है. क्यों सबको टीवी पर कवरेज चाहिए. क्या वास्तव में खेल इतना पैसा नही दे रहा या खेल बोरिंग हो रहा है. इन दोनों से से कोई बात सही नही. दरअसल ग्लेमर की ये दुनिया इतनी चमकीली है जो उनको आसानी से निशाना बनाती है, जिनकी उसे जरूरत है. ये नए हीरो ग्लेमर जगत की जरूरत है. इनके दम पर ही ही तो पैसा बरसता है. फ़िर चाहे कोई खिलाडी फ़िल्म स्टार बने या कोई विश्व सुन्दरी.
Wednesday, September 17, 2008
हाय हम आम क्यों हुए...
हमसे बढ़िया तो गरीबी रेखा से नीचे रहने वाला (बीपीएल) वो आदमी भी है जिसे चावल ५ रुपये किलो मिल जाता है और झौपडी के बदले एक फ्लैट... अब इस मुए दिल का क्या करे जो बीपीएल होने को उतावला हुआ जा रहा है...
मतलब ये कि कुछ तो होते जो मौज मिल रही होती. मगर उस ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था. उसने हमें बना दिया मिडिल क्लास यानि आम आदमी. जो मौज नही कर सकता. सरकारी ऐश नही कर सकता. करोडो में नही खेल सकता. अगर कुछ कर सकता है तो वो है दाल रोटी के जुगाड़ की चिंता. हां भाई घूस का ज़माना है...ऊपर वाले को नही खिलाई तो उसने बना दिया आम आदमी जो आम नही खा सकता, हां प्याज के दाम बढ़ने पर आंसू जरूर बहा सकता है. जिन्होंने घूस दी वो बन गये, ख़ास आदमी जो ख़ास सुविधाएं भोग रहे हैं.तो हे ऊपर वाले मेरे दिल की गुहार सुन ले..मुझे इस आम आदमी के सिवा कुछ भी बना दे. ये आम आदमी जो संख्या में सबसे ज्यादा है ओर उतना ही बेशरम... इतनी आफत में भी हंसकर जिए जा रहा है.....
Tuesday, September 9, 2008
समीर भाई को खुली चिठ्ठी ...
प्रिय समीर भाई
आप के जाने की ख़बर आग की तरह फ़ैल गयी है. और उस आग में हम भी जले जा रहे है. हाय समीर भाई हमें छोड़कर मत जाओ. हम निरीह ब्लोगरों को आप की ही टिप्पणियों का सहारा है. अब कौन हमें सराहेगा और दुलारेगा. कुछ ग़लत लिखने पर कौन हमें समझायेगा. यहाँ तो तो गलतियों पर समझाने की बजाये खुन्खारने वाले ज्यादा है. इस आभासी दुनिया को अभी आपकी जरूरत है. उनको भी जो आपको कोस कर अपनी दूकान चलाते है. आप किसी की चिंता मत करो. केवल लिखते रहो. यही बात तो आप सभी से कहते रहे और अब आप ही इस बात से घबरा कर मैदान छोड़ रहे है.
एक स्पेशल बात जो आप से कबसे कहना चाह रही थी पर संकोच और आप के बुरा मान जाने के डर से नही कह पाती थी. यही कि आप फ़िल्म सत्या के कल्लू मामा जैसे लगते हो (प्लीस बुरा मत मानना, मन में था सो कह दिया. छोटी बहन का इतना तो हक़ बनता है. ) लेकिन सच में बहुत अच्छे. बहुत प्यारे और बहतरीन लेखक ...
Saturday, September 6, 2008
आपकी राशिः और गणेश जी ....
क्या आप जानते है की सभी ग्रह और नक्षत्रो और राशिओं के देव गणेश जी है. यानि सभी ग्रह और राशियाँ गणेश जी के ही अंश है. गणेश जी हर राशिः को अलग अलग तरह से प्रभावित करते है. आइये जानते है कि आपकी राशिः में क्या दुविधा है और गणेश जी उसे कैसे ठीक कर सकते है. इस्सके लिए गणेश जी कि कैसे पूजा अर्चना करनी होगी....
मेष:(चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
इस राशि के गणेशस्वरूप को मेषेश्वर कहा जाता है। मेष राशि के लग्न और राशियों के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें प्रमुख है, लाभ की कमी, अपने से अधीनस्थों से पीड़ा ,अत्यधिक क्रोध और तनाव।
उपचार-
स्फटिक से बनी गणेश प्रतिमा का पूजन करें। पूजन करते समय जिस सामग्री का उपयोग करना है उसमें गंध, पुष्प, धूप, दीप ओर पंचोपचार प्रमुख है। इसी के साथ इष्ट मंत्र से काले तिल में शहद को मिलाकर नीम की लकड़ी की समिधा पर हवन का आयोजन करें। हवन संपूर्ण होने के वाद हवन सामग्री को किसी शूद्र को दान में दें, इसी के साथ उन्हें भोजन कराएं।
अगर आप गणेश जी का विशेष अनुष्ठान करना चाहते है तो फाल्गुन शुल्क चतुर्थी से फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा तक व्रत रखें और इसी दौरान अनुष्ठान का आयोजन करें। व्रत के दौरान ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दें। रोज गणेश प्रतिमा (स्फटिक के बनी) का पंचोपचार पूजन करें। इसी के साथ इष्ट मंत्र से कम से कम ३१ बार माला का जाप करें। पीले वस्त्रों का दान करें।
वृषभ:(इ, उ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे)
इस राशि के गणेशस्वरूप को वृषभेश्वर गणेश कहा जाता है। वृष राशि के लग्न और राशि के व्यक्ति को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें भाग्य का साथ न देना, पिता एवं भाई बंधुओं से रिश्तों को लेकर तनाव, संतान के साथ तारतम्य न बैठ पाना प्रमुख है।
उपचार-
रुद्राक्ष के मनके पर भगवान गणेश के वासुदेव स्वरूप की प्रतिष्ठा करें और उनके पूजन करते समय गंध, पुष्प, धूप, दीप व पंचोपचार का प्रयोग करें। इसी के साथ अपने इष्ट का मंत्र जाप कर घी में काले तिल मिलाकर नीम की समिधा पर हवन करने से काफी फायदा होगा।
गणेश चतुर्थी को इष्ट मंत्र का जाप करते हुए ३१ बार माला का जाप करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं। शूद्रों को भोजन का दान करें। इसी के साथ नीले वस्त्रों का दान करना भी लाभकारी होता है।
मिथुन:(क, की, कु, घ, ड, छ, के, को, ह) इस राशि के गणेशस्वरूप को मिथुनेश्वर गणेश कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्ति को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें वैवाहिक जीवन में तनाव, सार्वजनिक जीवन में कष्ट , विवादों में संलिप्तता, धन का नाश प्रमुख है।
उपचार-
स्वर्ण से बनी गणेश प्रतिमा का पूजन करें। पूजन करते वक्त गंध, पुष्प, धूप, दीप और पंचोपचार का होना जरूरी है। इसी के साथ गणेश चतुर्थी को इष्ट मंत्र का जाप करते हुए ३१ बार माला का जाप करना शुभकारी है।
वैशाख माह में पडऩे वाली चतुर्थी को भगवान गणेश संकर्षण स्वरूप का पूजन विधिवत किया जाए तो समस्याओं से काफी हद तक निदान हो सकता है। ब्राह्मणों को भोजन कराना और शंख का दान करना भी काफी लाभकारी होगा।
कर्क:(ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
इस राशि के गणेशस्वरूप को कर्केश्वर कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें, आर्थिक क्षेत्र में कठनाई, दाम्पत्य जीवन में दु:ख, भाइयों से अनबन होना प्रमुख है।
उपचार-
सफेद आंकड़ों से बने गणेश की पूजा करें। पूजा में गंध, पुष्प, धूप, दीप ओर पंचोपचार का होना लाभकारी होगा। प्रत्येक माह की संकष्टी चतुर्थी को व्रत रखकर भी भगवान गणेश को प्रसन्न किया जा सकता है ।
इसी के साथ ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष चतुर्थी को षोडशापचार पूजन कर गणेश की आरती करें तो काफी लाभकारी होता है। ब्राह्मणों को भोजन कराना, श्वेत वस्त्र का दान करना, फल और कन्द का दान करना भी लाभकारी होता है।
सिंह:(मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टे)
इस राशि के गणेशस्वरूप को सिंहेश्वर गणेश कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें जीवन में तनाव का होना, कुटुम्बियों से झगड़ा, दाम्पत्य जीवन में दु:ख होना प्रमुख है।
उपचार-
प्रवाल से बने गणपति का पूजन करें। पूजन सामग्री में गंध, धूप, पुष्प, दीप और पंचोपचार का होना शुभ माना जाता है। इसी के साथ माघ शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी को उपवास रख गणेश के अनिरूद्ध स्वरूप षोडशोपचार की पूजा करनी चाहिए।
सन्यासियों को तंूबी पात्र का दान करना लाभकारी होता है। गुड़ मिले हुए काले तिलों से कनेर एवं देवदारू की समिधा पर हवन करना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन कराना भी शुभ होता है।
कन्या:(टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
इस राशि के गणेशस्वरूप को कन्येश्वर कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन मूल समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें धन की उत्पत्ति से संबंधित समस्याएं, निर्णय क्षमता की कमी का होना, दाम्पत्य जीवन में सामन्जस्य की कमी प्रमुख है।
उपचार-
हल्दी व स्वर्ण से गणेश प्रतिमा का निर्माण कर पूजन करना चाहिए। पूजन सामग्री में गंध, पुष्प, धूप , दीप व पंचोपचार का होना अच्छा माना जाता है।
चतुर्थी को बाटी के लड्डु गुड़ में तैयार कर केल की समिधा पर हवन करना अति लाभकारी है। कृष्णपक्षीय व्रत रखना भी शुभकारी है। ब्राह्मणों को भोजन कराए भोजन में लड्डू होना चाहिए, जो लड्डू भोजन में दिया हो उसका स्वंय भी भोग करें। दूध देने वाली गाय का दान लाभकारी है।
तुला:(र, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
इस राशि के गणेश को तुलेश्वर गणेश कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें अजीविका के साधनों में कमी, आर्थिक लाभ में कमी, सरकारी मशीनरी से कष्ट प्रमुख है।
उपचार-
रक्त चंदन से बने गणेश का पूजन करना चाहिए। पूजन में गंध, पुष्प, धूप, दीप व पंचोपचार का उपयोग हो। माह की चतुर्थी को उपवास रख गणेश जी कि आराधना करें। इसी के साथ अष्विन शुक्ल चतुर्थी को भगवान कपर्दिश गणेश का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। दान में लाल कम्बल और औषधि दें। अश्विन शुक्ल चतुर्थी को भगवान कपर्दिश गणेश का षोडशोपचर पूजन करें। पुरूषों को अर्जुन की समिधा पर हवन करना चाहिए।
वृश्चिक:(तो, ता, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
इस राशि के गणेशस्वरूप को वृश्चिकेश्वर गणेश कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें परिवार में आर्थिक संकटों का होना, बचपन में असुविधा, भाग्यमंदता और सांसारिक कष्ट प्रमुख है।
उपचार-
गजदंत से बनी गणेश प्रतिमा का पूजन करें। पूजन में गंध, पुष्प, धूप, दीप और पंचोपचार का होना शुभकारी है। इसी के साथ कार्तिक शुक्ल की चतुर्थी को भगवान भालचन्द्र गणेश का षोडशोपचार पूजन बहुत ही लाभकारी है। गणेश चतुर्थी का व्रत करें, व्रत के दौरान एक समय बाटी और एक समय लड्डू का प्रसाद लगा कर उसे ग्रहण करें।
स्त्रियों को सुहाग की वस्तुएं दान देना इस राशि के जातकों के लिए शुभ माना गया है। मरूआ अथवा आम की समिधा पर चावल व घी से हवन करें। ब्राह्मणों को भोजन कराए।
धनु:(ये, यो, भा, भी, का, फा, ढा, भे)
इस राशि के गणेशस्वरूप को धनेश्वर गणेश कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन कष्टों का सामना करना पड़ता है उनमें सार्वजनिक जीवन में बाधा, वैवाहिक जीवन में तनाव, गुप्त शत्रुओं से पीड़ा और माता के जीवन से कष्ट प्रमुख है।
उपचार-
मूंगे से निर्मित गणपति का पूजन करें। पूजन में गंध, पुष्प, धूप, दीप और पंचोपचार का होना शुभकारी है। इसके अलावा भगवान गणेश के सुरागृज स्वरूप का पूजन करना चाहिए। चतुर्थी का उपवास विशेष लाभकारी है।
प्रात:काल उठकर इष्ट मंत्र से आक की समिधा पर हवन करें। गंधारी अथवा केतकी की समिधा पर मूंग के बने मोदक का हवन करना चाहिए। मूंग के पदार्थों का निर्माण कर ब्राह्मण को दान में दें। इसी के साथ अंग-वस्त्र का दान करना लाभकरी होता है।
मकर:(भो, जा, जी, जू, खू, खे, खो, ग, गी)
इस राशि के गणेश को मकरेश्वर कहा जाता है । इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें आर्थिक कष्ट, लाभ की प्राप्ति में रुकावट, भाइयों से पीड़ा प्रमुख है।
उपचार-
चंदन से निर्मित गणेश की पूजा करें। पूजन में गंध, पुष्प, धूप, दीप, व पंचोपचार का होना शुभकारी है। भगवान गणेश के लम्बोदर स्वरूप की पूजा करना भी इस राशि के जातकों के लिए शुभ माना गया है। विशिष्ट अनुष्ठान के दौरान बरे की समिधा पर तिल्ली एवं मोदक से हवन करना चाहिए। महीने की संकष्टी चतुर्थी को उपवास करें और उपवास के दिन रात्रि में चंद्रमा के उदय हो जाने के बाद भोजन को ग्रहण करना चाहिए।
चतुर्थी को अनुष्ठानपूर्वक लम्बोदर गणेश का षोडशोपचार पूजन करें इसी के साथ ब्राह्मणों को भोजन कराकर कांस्य पात्र का दान करना चाहिए।
कुंभ:(गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, द)
इस राशि के गणेशस्वरूप को कुंभेश्वर गणेश कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें जीवन में बार-बार संत्रास, परिवार में असंतोष, वैवाहिक जीवन कष्टकारी और भाग्यमंदता प्रमुख है।
उपचार-
श्वेतार्क गणपति का पूजन करें। पूजन के समय गंध, पुष्प,धूप, दीप और पंचोपचार का प्रयोग शुभकारी माना जाता है। इस राशि के व्यक्तियों के लिए चतुर्थी का उपवास करना अच्छा माना जाता है। पौष शुक्ल चतुर्थी को भगवान गणेश के विघ्रेश्वर स्वरूप का पूजन करना चाहिए। विशेष अनुष्ठान के लिए अगस्त की समिधा पर चावल, शकर एवं घृत से हवन करना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन कराकर चांदी के पात्र दान करना चाहिए।
मीन:(दी, दू, थ, झ, त्र, द, दो, चा, ची)
इस राशि के गणेशस्वरूप को मीनेश्वर गणेश कहा जाता है। इस राशि और लग्न के व्यक्तियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें मनपसंद जीवनसाथी का न मिलना, पत्नी से अनबन, आर्थिक मार, परिवार के किसी व्यक्ति को असाध्य रोगों की पीड़ा प्रमुख है।
उपचार-
प्रवाल के गणपति का पूजन करें। पूजन में गंध ,पुष्प, धूप, दीप और पंचोपचार का उपयोग करना चाहिए। चतुर्थी का व्रत रखना लाभकारी होता है। भगवान गणेश के ढुण्ढीराज स्वरूप का पूजन करना अति लाभकारी होता है। इसके अलावा माघ माह की चतुर्थी को मृत्तिका की मूर्ति पर षोडशोपचार पूजन करें।
विशिष्ट अनुष्ठान में आक की समिधा बनाकर शमी-पत्र से हवन करें साथ ही गुड़ के मोदक का भी प्रयोग किया जा सकता है। ब्राह्मणों को भोजन कराकर तांबे के पात्र और और छाते का दान करना शुभ है।
Friday, September 5, 2008
गणेश चतुर्थी पर चंद्र दर्शन निषेध क्यों...
एक बार जरासंध के भय से भगवान कृष्ण समुद्र के बीच नगरी बनाकर वहां रहने लगे। यही नगरी आज द्वारिका नगरी के नाम से जानी जाती है। उस समय द्वारिका पुरी में रहने वाले सत्रजीत यादव नामक व्यक्ति ने सूर्यनारायण भगवान की आराधना की और आराधना से प्रसन्न होकर सूर्य भगवान ने उसे स्यमन्तक नामक मणि वाली माला अपने गले से उतारकर दे दी। यह मणि नित्य आठ सेर सोना प्रदान किया करती थी। मणि पाकर सत्रजीत यादव समृद्ध हो गया। श्री कृष्ण को यह बात पता चली तो उन्होंने सत्रजीत से वह मणि पाने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन सत्रजीत ने मणि श्री कृष्ण को न देकर अपने भाई प्रसेनजीत को दे दी। एक दिन प्रसेनजीत शिकार पर गया जहां एक शेर ने प्रसेनजीत को मारकर मणि ले ली। यही रीछों के राजा और रामायण काल के जामवंत ने शेर को मारकर मणि पर कब्जा कर लिया।
कई दिनों तक प्रसेनजीत शिकार से घर न लौटा तो सत्रजीत को चिंता हुई और उसने सोचा कि श्रीकृष्ण ने ही मणि पाने के लिए प्रसेनजीत की हत्या कर दी। इस प्रकार सत्रजीत ने पुख्ता सबूत जुटाए बिना ही मिथ्या प्रचार कर दिया कि श्री कृष्ण ने प्रसेनजीत की हत्या कर दी है। इस लोकनिन्दा से आहत होकर और इसके निवारण के लिए श्रीकृष्ण कई दिनों तक वन वन भटक कर प्रसेनजीत को खोजते रहे और वहां उन्हें शेर द्वारा प्रसेनजीत को मार डालने और रीछ द्वारा मणि ले जाने के चिह्न मिल गए। इन्हीं चिह्नों के आधार पर श्री कृष्ण जामवंत की गुफा में जा पहुंचे जहां जामवंत की पुत्री मणि से खेल रही थी। उधर जामवंत श्री कृष्ण से युद्ध के लिए तैयार हो गया। सात दिन तक जब श्री कृष्ण गुफा से बाहर नहीं आए तो उनके संगी साथी उन्हें मरा हुआ जानकार विलाप करते हुए द्वारिका लौट गए। २१ दिनों तक गुफा में युद्ध चलता रहा और कोई भी झुकने को तैयार न था। तब जामवंत को भान हुआ कि कहीं ये वह अवतार तो नहीं जिनके दर्शन के लिए मुझे श्री रामचंद्र जी से वरदाम मिला था। तब जामवंत ने अपनी पुत्री का विवाह श्री कृष्ण के साथ कर दिया और मणि दहेज में श्री कृष्ण को दे दी। उधर कृष्ण जब मणि लेकर लौटे तो उन्होंने सत्रजीत को मणि वापस कर दी। सत्रजीत अपने किए पर लज्जित हुआ और अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्री कृ ष्ण के साथ कर दिया।
लेकिन इसके कुछ ही समय बाद अक्रूर के कहने पर ऋतु वर्मा ने सत्रजीत को मारकर मणि छीन ली। श्री कृष्ण अपने बड़े भाई बलराम के साथ उनसे युद्ध करने पहुंचे। युद्ध में जीत हासिल होने वाली थी कि ऋतु वर्मा ने मणि अक्रूर को दे दी और भाग निकला। श्री कृष्ण ने युद्ध तो जीत लिया लेकिन मणि हासिल नहीं कर सके। जब बलराम ने उनसे मणि के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि मणि उनके पास नहीं। ऐसे में बलराम खिन्न होकर द्वारिका जाने की बजाय इंद्रप्रस्थ लौट गए। उधर द्वारिका में फिर चर्चा फैल गई कि श्री कृष्ण ने मणि के मोह में भाई का भी तिरस्कार कर दिया। मणि के चलते झूठे लांछनों से दुखी होकर श्री कृष्ण सोचने लगे कि ऐसा क्यों हो रहा है। तब नारद जी आए और उन्होंने कहा कि हे कृष्ण तुमने भाद्रपद में शुक्ल चतुर्थी की रात को चंद्रमा के दर्शन किए और इसी कारण तुम्हें मिथ्या कलंक झेलना पड़ रहा है।
तब पूछने पर नारदजी ने श्रीकृष्ण को कलंक वाली यह कथा बताई थी। कहते हैं कि एक बार जगतपूज्य भगवान श्रीगणेश ब्रह्मलोक से होते हुए लौट रहे थे कि चंद्रमा को गणेशजी का तुंदिल शरीर और गजमुख देखकर हंसी आ गई। गणेश जी को यह अपमान सहन नहीं हुआ। उन्होंने चंद्रमा को शाप देते हुए कहा, 'पापी तूने मेरा मजाक उड़ाया है। आज मैं तुझे शाप देता हूं कि जो भी तेरा मुख देखेगा, वह कलंकित होगा।
यह शाप सुनकर चंद्रमा बहुत दुखी हुए। सभी देवताओं को चिंता हुई क्योंकि चंद्रमा ही पृथ्वी का आभूषण है और इसे देखे बिना पृथ्वी पर कोई काम पूरा नहीं हो सकता। चंद्रमा के साथ सभी देवता ब्रह्मा के पास गए। उनकी बातें सुनकर ब्रह्मा बोले, 'चंद्रमा, तुमने जन-जन के अराध्य देव शिवपुत्र गणेश का अपमान किया है। यदि तुम अपने शाप से मुक्त होना चाहते हो तो श्रीगणेशजी का व्रत रखो। वे दयालु हैं, तुम्हें माफ कर देंगे। ’ चंद्रमा ने ऐसा ही किया। भगवान गणेश चंद्रमा की कठोर तपस्या से प्रसन्न हुए और कहा, 'वर्षभर में केवल एक दिन भाद्रपद में शुक्ल चतुर्थी की रात को जो तुम्हें देखेगा, उसे ही कोई कलंक लगेगा। बाकी दिन कुछ नहीं होगा। ’ केवल एक ही दिन कलंक लगने की बात सुनकर चंद्रमा समेत सभी देवताओं ने राहत की सांस ली। तब से भाद्रपद में शुक्ल चतुर्थी की रात को चंद्रमा के दर्शन का निषेध है।
Thursday, September 4, 2008
और भी मुद्दे है इस मुद्दे के सिवा...
मन ये देख कर व्याकुल है। हम और अन्य ब्लॉगर जो इस जंग को गेर जरूरी समझते है, वो बेचारे इस जंग में बेवजह ही पिसे जाते है। माना कि आपमें लिखने का हुनर है और लेखन का शौक भी, तो इस कला तो केवल वर्ग विवाद में जाया मत कीजिये। यकीन नही होता कि इतने प्रतिभावान और समझदार ब्लॉगर किस चक्कर में पड़ गये है। क्या हम ब्लॉग को केवल ब्लॉगर के रूप में नही चला सकते। क्यों ब्लॉग जगत को महिला और पुरुषों मैं बाँट रहे हैं।
मैं ख़ुद एक महिला हूँ और मुझे पसंद नही कि यहाँ किसी भी वर्ग और उनकी शारीरिक असमानताओं या चरित्र विशेषताओं पर चर्चा की जाए। ब्लॉग जगत अपने विचारों को कहने सुनने का एक बहुत ही अच्छा जरिया है। यहाँ आप बिना ये सोचे कि महिला हैं या पुरूष अपने विचारों, अपनी कला और संवेदना को दूसरों के सामने रख सकते है। ब्लॉग मंच है अभिव्यक्ति का, वर्ग विशेष की त्रुटियां बताने का अड्डा नही है ये। इस राजनीति से इसे दूर ही रखा जाए अच्छा होगा। वैसे भी इस विवाद ( श्रेष्ठ कौन ) का हल तो स्वयं भगवान् भी नही बता पाए तो हम किस खेल की मूली हैं। दोनों वर्ग एक दूसरे की खामियां बताते रहेंगे और सच मानिए एक दूसरे के बिना इनका गुजारा भी नही। क्या चोखेरबलिया अपने घर के पुरुषों (पति, भाई, पिता ) को भी इसी तराजू में तोलती हैं और क्या कथित पुरुषवादी अपने घर की महिलाओं (माँ पत्नी, बहन ) को भी ईश्वर की भूल मानते हैं. सच तो ये है कि दोनों एक दूसरे के पूरक है और तभी दुनिया भी चलती है।
मेरी सलाह मानिए और इस वर्गीय और सनातन दुश्मनी को त्याग दीजिये। (मुझे यकीन है कि हर ब्लॉगर (जो इस लड़ाई में तन और मन से जुटा हुआ है।) यही कहेगा कि यहाँ कोई दुश्मनी नही, ये तो मुद्दों और विचारों की लड़ाई है। हम भी तो यही कह रहे है कि मुद्दे और भी हैं ज़माने में इस मुद्दे के सिवा... कुछ उन पर भी नज़र डालिए।
Tuesday, September 2, 2008
कोई पूछता नही....
हमसे हमारी बात कोई पूछता नही
कुछ और सवालात कोई पूछता नही.
जिसकी दर ओ दीवार और छत्त ही नही
कैसी ये हवालात कोई पूछता नही.
जिसमे हिलें न होंठ हों आंखों पे पट्टियाँ
कैसी वो मुलाक़ात कोई पूछता नही
पहले उजाड़ घर को घरोंदों की पेशकश
किनकी है करामात कोई पूछता नही।
कुछ लोग लाल ताल हैं बांधे हैं मुट्ठियाँ
होगी क्या वारदात कोई पूछता नही
है आसमान सख्त जमी के शिरे तने
कब टूटे कायनात कोई पूछता नही
यहाँ सब्र किसे दूसरों का हाल जो पूछे
अपने दिले जज्बात कोई पूछता नही।
विनीता वशिष्ठ
वनिशा, ईशा और पिया...
तस्वीर का एक पहलू ये है जहा भारतीय पिताओं के साथ साथ उनकी बेटियों की भी दुनिया भर में धूम मची है और तस्वीर के दूसरा पहलू वो है जहाँ मजबूर और गरीब भारतीय बाप धन के अभाव में बेटी की शादी उससे दुगनी उम्र के आदमी के साथ कर रहा है. कहीं पेट भरने के लिए बेटियाँ दूसरे घरो में कामकर रही हैं और कुछ शरीर बेच रही है. कुछ दहेज़ के लिए जलाई जा रही है और कुछ खुद ही दहेज़ एकत्र करने के मिशन में मशीन बन कर काम किए जा रही है. एक ही वर्ग में इतनी असमानता भारत में ही देखने को मिल सकती है. कुछ बेटियों का भविष्य सूरज की तरह उजला है और कुछ का रात की तरह काला जहाँ सवेरा कब होगा पता नही.
एक तरफ़ वनिशा, ईशा और पिया और दूसरी तरफ़ ये बेटियाँ, समझ नही आता भारत की असली तस्वीर कहाँ है. ....
Monday, September 1, 2008
अपनी भूल सुधारे कौन....
काँटों के सौदागर सारे घर और द्वार बुहारे कौन.
नसीहतों से भरे टोकरे लिए खड़े हैं लोग तमाम,
मुल्लाओं की महफ़िल में अपनी भूल सुधारे कौन.
तालीमों की किसे जरूरत किसको इंसानों से काम,
दरवाजे पर दस्तक देकर मेरा नाम पुकारे कौन.
खुशहाली में सभी पूछने आते थे मेरे हालात,
लेकिन तन्हाई के लम्हे मेरे साथ गुजारे कौन.
हालात से समझौतों में खामोशी बन गया जमीर,
सन्नाटे में चौराहे पर दिल की बात गुहारे कौन..
Wednesday, August 13, 2008
याहू ...........तीन दिन की मौजा ही मौजा
ये रिवाज़ एनसीआर की छोटी बड़ी सभी कंपनिओं में हो गया हैं. ज्यादातर कर्मचारी बाहर से आए होते है जो त्योहारों पर खूंटे से छूटे बैल की तरह अपने गावं की ओर भागते हैं. ओर काम करने के लिए बेचारे दिल्ली वाले यानि लोकल रह जाते है. हालाँकि बाहर प्रदेशों से आए लोग रिटेल में छुट्टी नही करते...वो एक या डेढ़ हफ्ते की थोक भावः की छुट्टी करते है. और लोकल लोग रिटेल में छुट्टी करते है. आज मामा के यहाँ जाना है. आज बिजली का बिल जमा करना था. कोई सगा बीमार था, उसे देखने अस्पताल चला गया...घर की मरम्मत करानी है....आउट साइडर अपनी या बहन की शादी, होली दीवाली या छठ पर ही घर जाते है और बाकी दिनों वो कंपनी के प्रति पूरी वफादारी दिखाते है. ...
ये तो हुई छुट्टी की बात... अब बात करते हैं माहौल की....छुट्टी की रोमानियत मन में ऐसी हैं कि माहौल भी रंगा हुआ नज़र आ रहा है. बाज़ार राखिओं और पतंगों से पटे पड़े है. औरतें राखियों और मर्द-बच्चे पतंगों पर टूटे पड़े हैं. जहा देखो आज़ादी के गीत और रक्षा बंधन के गाने लाउड स्पीकरों पर जोर जोर से बजाये जा रहे है. कमाल की बात है एक दिन आज़ादी का और दूसरा दिन बंधन का. सावन की खुमारी भी सिर चढ़कर बोल रही है. क्या करें मौसम भी तो मजेदार हो गया है.
सड़कों पर बिकती राखियाँ और आसमान में उडती पतंगे एक अजीब सा रोमांच पैदा कर रही है. चाहे पतंग उडानी ना आती हो लेकिन कभी भी जब सामने कोई कटी पतंग उडती हुई नज़र आती है तो हाथ अपने आप ही एकबारगी उसे लपकने के लिए उठ जाते है. बच्चे लम्बी लम्बी झाडियाँ लिए पतंग लूटने को भागे फ़िर रहे है. हाथ में झाडी और पीठ पर लूटी हुई पतंगों का ढेर ....सच किसी जंग में जा रहे योद्धा की तरह महसूस करते होंगे. पिंकू, सोनू मोनू, बबलू को कल के लिए तैयारी भी तो करनी है...पतंगों के पेंच बांधे जा रहे होंगे. चर्खिया तैयार है और चर्खिया लेकर खड़ी होने के लिए छोटी बहन को भी राज़ी कर लिया है. कल छत पर ही खाना पीना होगा जोरदार हंगामा होगा. खूब गाने बजेंगे और सारे दिन पतंग उडाएंगे.. किसी की पतंग काटी तो आवाज़ आएगी .. आई बोट्टे- वो काटा- फ़िर पतंग पर आधारित कोई फिल्मी गाना बजेगा और सीटी का शोर..... उधर पापा सोच रहे है, सारा दिन आराम करेंगे. खाने पीने में भी कुछ स्पेशल बनवा लेंगे. एक आध पतंग भी उडा लेंगे. बच्चे भी खुश हो जायेंगे और बीवी भी. उधर बीवी जी तो अगले दिन की तैयारी में जुटी है. कौन सी राखी लूँ भाई के लिए. ये सुनहरी, ये मेटल की या ये चंदन की...भइया ठीक रेट लगाओ...पाँच लेनी है..... मिठाई क्या लूँ... साड़ी तो आ गयी ब्लाउस कब आएगा. ओह मेंहदी भी लगवानी है.
ये क्या...सबके प्लान बन रहे हैं और हम हैं कि अभी तक सोचा ही नही क्या करना है. चलिए अब हम भी कुछ पालन बनते है....आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामना और हेप्पी राखी....
रूपा नाम है उसका...
उसे सजने और टीवी देखने का शौक है....में अपने पुराने सूट उसे दे देती हूँ और अपनी कभी कभी उसे साप्ताहिक बाजार से टोप्स कड़े, और क्लिप भी खरीद देती हूँ.उसे बड़ा अच्छा लगता है. जब भी वो मेरे घर में काम करती है तो असल में काम तो मैं करती हूँ और मेरी मदद वो करती है. जैसे रूपा कपडे सुखा दे, डस्टिंग कर दे, दूध उबाल दे या मन्नू के साथ खेल ले.. उस दौरान टीवी चलता रहता है. पता नही क्यों उससे काम कराने को दिल नही मानता. उस दिन वो बड़ी खुश रहती है और सन्डे मनाती है. घर जाते समय में उसके हाथ में बीस का नोट रखती हूँ जो उसकी माँ भी उससे नही मागती (एक दिन तो बिटिया मौज कर ले)
जब मैंने पूछा की पढ़ाई के लिए पैसे क्यों नही हैं... उसने बताया कि पापा उसकी शादी के लिए पैसे जमा कर रहे है न तो पैसे नही बचते... पर मैं हिन्दी पढ़ लेती हू...
उसका सपना है कि किसी दिन सिनेमा हाल मैं जाकर फ़िल्म देखे, जींस और टॉप पहने और किसी बड़े से होटल में खाना खाए. वो चाउमीन और बर्गर खाना चाहती है, नए तरीके से बाल कटवाना चाहती है. वो नए कपड़े पहन कर हमउम्र लड़किओं के साथ खेलना चाहती है. उनकी तरह स्कूल ड्रेस में पढने जाना चाहती है. वो चाहती है कि उसके जन्मदिन पर भी केक काटा जाए...लेकिन वो जानती है कि इन सपनो को पूरा करने के लिए जो समय और पैसा चाहिए वो उसके घरवालों के पास नही है. कल जब उसकी शादी हो जायेगी तब भी वो कही और घरों में काम करेगी और आज कि छोटी रूपा तब कामवाली बाई बन जायेगी.
क्या ऐसी बच्चियां जन्म के साथ ही बड़ी हो जाती हैं. क्या इनका जन्म ही काम और शादी के लिए हुआ है. क्या इनके सपने कभी पूरे नही हो सकते. क्या उसका भविष्य भी दूसरी कामवालियों की तरह हो जायेगा. गुलाब की तरह खिलती एक लड़की कैसे एक कामवाली में तब्दील हो सकती है.
क्या आपके पास कोई जवाब है. इन सवालों का..... हो तो जरा मुझे भी बता दीजिये. मैं बहुत परेशान हू......
Monday, August 11, 2008
ट्रेफिक पुलिस के ये सिपाही
चलिए सुनते है उनके बीच की कुछ बातचीत.....
एक - आज क्या हुआ, तेरा मुंह क्यों उतरा हुआ है...
दो - कुछ नही यार.. लगता है आज साले किसी को जल्दी नही है. कोई लाइट पार नही कर रहा, बोहनी तक नही हुई.
एक - तो मेरे इलाके में आ जा, यहाँ तो बड़ी भीड़ होती है, कोई न कोई तो फंस ही जायेगा.
दो - नही यार ये रोज रोज कि उधारी ठीक नही...सोच रहा हूँ, रेड लाइट का टाइम बढ़ा दूँ.
एक - हां मेरे यहाँ भी ग्रीन तो दस सेकेंड की है और रेड दो मिनट की कर दी है. अब रोज कमाई होती है.
दो - हां यार में भी सोच रहा हूँ कि पीली लाइट में भी एक दो को फांस लिया करूँ.
एक - वैसे आजकल साले सब होशयार हो गये है, हेलमेट पहन के चलते है, फैशन की किसी को परवाह नही. और तो और कागज़ भी पूरे मिल जाते है और पोलुशन भी करा लेते है.
दो - अब ऐसे में तू ही बता, हम गरीबो का घर कहाँ से चले. कल ही दो बाइक वालों की हलकी सी टक्कर हो गयी, में तो पहुँच गया हिसाब लेने. वो तो कमबख्त आपस में सुलह करके भाग निकलना चाह रहे थे. पर मुझे तो अपना हिसाब लेना ही था. कर दिया फ़ोन १०० नबर पे. गाडियाँ थाने पहुंचाई और उन्हें भी लेकर चला. थाने में. पाँच सौ एक से लिए और पाँच सौ दूसरे से. तब कही जाकर गाडिया उनको दिलाई. उनसे पाँच सौ थाने के स्टाफ को भी दिलाये.
एक - अरे इन लोगों को जरा भी लिहाज़ नही है. हम भी इनका ही तो भला करते है. चालान काटा तो पूरे पैसे देने होंगे और नही काटा तो कम में ही बात बन जायेगी. गणित नही आता सच इन लोगो को. दुनियादारी तो सच में सरकारी आदमी को ही आती है.
दो - चल मेरा पीक टाइम हो रहा है...आज जाम भी तगड़ा है....कुछ जुगाड़ कर लू जरा...
एक - ओके बाय बाय.
Friday, August 8, 2008
बरसात के दिन आए...
ऐसे में रैन कोट और बरसाती कुछ काम नही आती. सिर सूखा बच गया तो पैर भीग जायेंगे और पैर बच गये तो सिर भीग जाएगा. बस से आने जाने वालो का तो और बुरा हाल है. बस स्टाप पर बाइक और स्कूटर वालो का जमघट रहता है ऐसे में खुले में बस का इन्तजार करना पड़े तो पता चले. छाते ऐसे में आपदा प्रबंधन तो करते हैं लेकिन पूरा नही बचा पते. कमर से नीचे का हिस्सा तर हो जाएगा. बस से उतरने के बाद भी भीगना पड़ता है.
बाइक वालो के साथ कई तरह की दिक्कते होती हैं. आस पास से निकलने वाले जानबूझकर पानी की बौछार आप पर मार कर जाएंगे और आप कुछ नही कर पायेंगे. किसी दिन लगा कि बरसात होने वाली है, आप रैन कोट पहन कर निकल लिए और बरसात दगा दे गयी अब सारे रास्ते मूर्खों कि तरह रैन कोट पहने चलो.
किस्सा रवि का. ..
रेवाडी से आने वाले हमारे सहकर्मी रवि प्रकाश रोज नौ बजे (पाँच बजे घर से निकलने पर ) ऑफिस पहुँचते हैं. रोज तो अपने दोस्त के साथ उनके वाहन से आते है तो २ घंटे का समय बच जाता है. लेकिन जिस दिन दोस्त नही आ पता, रवि प्रकाश को ऑफिस आने के लिए नेट ४ घंटे लगते है. रेवाडी से धौला कुँआ फिर महारानी बागः और फिर नॉएडा. बेचारे घर से पाँच बजे निकलते है और नौ बजे ऑफिस पहुचते है. आज हमने सोचा की रवि मिश्रा तो ऑफिस नही आ पाएंगे लेकिन आश्चर्य जनक रूप से रवि मिश्रा आठ बजे ही ऑफिस आ गये. हमने पूछा तो उन्होंने बताया आज सडको पर बारिश के चलते भीड़ कम थी तो जल्दी पहुँच गये. उन्होंने बताया कि वो रेन कोट पहन कर बस में आए तो हमारी हँसी छूट गयी. बोले कि ट्रिक काम कर गयी. बारिश के दिनों में बसों में खिड़की के पास की सीट पर कोई नही बैठता क्युकि वह पानी आता है. लेकिन में रेन कोट पहन कर उसी गीली सीट शान से बैठा. रोज तो लटकते हुए आते है, ये बरसात की मेहरबानी थी कि आज कई महीनो बाद सीट मिली. कहने लगे कि लोग मुझे हैरान होकर देख तो रहे थे लेकिन आज मैंने पूरा मज़ा लिया. बारिश में खूब चला और टाइम से ऑफिस भी पहुँचा. मतलब की बारिश से हमारे रवि भाई को फायदा हो गया. चलो कुछ तो अच्छा हुआ.
नोट--आज का लेख जल्दबाजी में बरसात का मौका देख कर लिखा गया लेख है. बस अपने अनुभव आपको बताने थे. और रवि भाई का प्रकरण डालना था. त्रुटि हो गयी हो तो माफ़ करे. यही अपील बरसात से भी है
Saturday, August 2, 2008
चंदा की रोटी...
चंदा जैसी रोटी को खाने की जिद पाले है.
इंसां लार टपकती कितनी लंबी लीभ निकाले है.
बिजली के नंगे तारों का खौफ दिलो में बैठा है.
इस कीमत पर ही आंखों ने देखे आज उजाले हैं.
नर्म रोटिया सिर्फ़ अमीरों के हिस्से में आयी हैं.
गुरबत के चूल्हों पर तो बस पत्थर गये उछाले हैं.
इमां की कश्ती पर बैठे कुछ ही मांझी ऐसे हैं.
दौलत के बहते दरिया में जो पतवार संभाले हैं.
पैदा होते हम कागज़ के पैर लिए तो अच्छा था.
इस दुनिया में सब कागज पर सड़क बनाने वाले हैं.
इंसां की काली करतूतों से गाफिल यूँ लगता है.
आने वाले दिन मावस की रातों से भी काले हैं.
विशाल गाफिल से साभार.
Thursday, July 31, 2008
वो गरीब पुलिसवाला...
Wednesday, July 30, 2008
अरे ये क्या हुआ....
खेर ये आराम की हिदायत बहुत महँगी और तकलीफदेय रही. घर पर मेहमान आते, हल चाल पूछते, चाय शाई पीते और मुफ्त की सलाह देकर चले जाते. हां जाते हुए मन भाई साहा को पैसे जरूर देकर जाते. टांग हमारी टूटी और मन भाई साहब का बैंक बैलेंस बढ़ रहा था. सास ससुर , जेठ जेठानी, मित्रजन, पड़ोसी माभी आए और गये. हम उन्हें अपने गिरने का सिलसिलेवार और रता रटाया किस्सा सुनाते, पति महाशय चाय बनाते और पिलाते rahate. मेहमान किस्सा सुनते हुए चाय पीते और सलाह देते. अब आराम करो, ज्यादा चलोफिरो नही, फला फला दवाई खाओ, जडी बूटी खाओ हमने भी खाई थी. जल्द ठीक हो गये. तुम भी खाओ. पैर कि मालिश करो, ऐसे बेठो, वैसे बेठो. पति तो नसीहत मिलती, इसे आराम कराओ, बेचारी से काम मत कराना. फिर मन को प्यार करते और उसे पैसे देकर चले जाते. मन को पैसो का मोल तो पता नही लेकिन माँ के सारे दिन पास रहने (कामकाजी हैं न, बच्चा आठ घंटे नानी के पास रहता है. ) पर बहुत खुश नजर आता. कभी टांग पर चढ़ जाता और कभी पेट पर. खेर राम राम करते ८ दिन बीते और हमारा प्लास्टर काटा गया. फिर कच्चा प्लास्टर बाँध कर घर भेज दिया. अब ऑफिस आए तो मानो सहकर्मियों को कोई मजेदार उड़न तश्तरी दिख गयी. सब हंसकर पूछते, अरे ये क्या हुआ, कहाँ से छलांग लगा दी. सीधा सरल बोलना तो शायद पत्रकारों को आता ही नही. सभी को अपने गिरने के किस्सा सुना सुना कर एकता कपुर के धारावाहिक की तरह बोर हो चले थे. ना आने ये प्रोग्राम कब तक चलेगा. कब तक हम सहानभूति बटोरते रहेंगे और कब तक टूटा पैर हमारी लाचारी पर हँसता रहेगा.
अब हम वापिस आ गये है तो लिखने की भी कोशिश करेंगे. (आख़िर पैर टूटा है, हाथ नही). पर फिर भी दर्द करता है (दिमाग नही पैर. ) आप सभी को हमारी नमस्ते.
Thursday, July 17, 2008
बम बम भोले.
Tuesday, July 15, 2008
उल्लू बनाया आपने...
नोट - सभी पाठकों से निवेदन है कि इस घटना के बारे में किसी को ना बताएं.वरना आगे आपको ऐसी सामग्री पड़ने को नही मिलेगी. वैसे कई किस्से है जब हम बेवकूफ बने.
'हम आपके हैं कौन'
बात उन दिनों की है जब हम कॉलेज से बंक मार कर फ़िल्म देखने जाया करते थे. 'हम आपके हैं कौन' फ़िल्म मैंने फस्ट इयर में ऐसे ही 9 बार देख ली थी. उसमे माधुरी और सलमान का प्यार और फ़िल्म में शादी ब्याह का माहौल मुझे रोमांचित कर जाता था. वैसे भी शादी की थीम की फिल्म पहले कम ही आई थी. तो हम सारी लड़कियां मिल कर दूसरे पीरिअड में ही निकल जाया करते थे. घर में बस के किराये के लिए जो पैसे मिलते थे उनसे ही फ़िल्म देखी जाती थी. रोज के 20 रुपए मिलते थे और हम कोशिश करते थी कि हे भगवान् आज यू स्पेशल बस आ जाए तो किराया बच जाए. ऐसे ही किराया बचा बचा कर मैंने 9 बार फ़िल्म देख डाली. हमारा कॉलेज (विवेकानंद कॉलेज) दिल्ही के एक कोने में था और लगभग सभी सिनेमा हाल कनाट प्लेस में थे. सो हमारा गैंग स्टाफ बस में स्टाफ चलाकर (अकेले हिम्मत नही होती थी) कनाट प्लेस पहुँचता और फिर पैदल पैदल सभी हॉल चेक किए जाते. जहा टिकेट मिल जाता वही पर जम जाते. करीब नौ या दस लड़किया होती थी. बाहर किसी को भी एक दूसरे का नाम लेकर पुकारने की मनाही थी. सो हम एक दूसरे को अनु मनु तनु, पिया जिया, टिया जैसे नामों से पुकारते थे. उस दिन भी हम चले ये फ़िल्म १० वी बार देखने. चल तो पड़े मगर पता नही क्यों आज दिल धड़क रहा था लग रहा रहा कि आज ना कर दूँ.. लेकिन सब ने जोर दिया तो चल पड़े. रीगल पर टिकेट मिल गया. पूरा ग्रुप हो हल्ला करते हुए घुस गया. फ़िल्म शुरू हो चुकी थी. सलमान का चेहरा फ़िर मन लुभा रहा था. उसका बड़ा घर, चुलबुला अंदाज़ कह रहा था बस ऐसा ही जीवनसाथी मिल जाए मुझे भी, तो मज़ा आ जाए. माधुरी आई तो उसके स्टाइल, और कपड़ो ने मोहित कर लिया. सोचा हेरोइनो के तो मजे होते है. बस रोज ही मेकयेप और मंहगे कपड़े, शानदार गाडिया. ये सब सोचते सोचते इंटरवल हो गया. जैसे ही लाइट जली तो आगे की सीटो पर नज़र गयी और होश उड़ गये . वहां पापा बैठे थे, अपने सरदार दोस्त के साथ. दोनों का मुंह आगे कि ओर tha. मेंरे तो पसीने छूट गये. अब क्या करू. साथ में बैठी सीमा को बताया तो उसने कहा, फ़िल्म का नाच गाना देख और जब हिरोइन की बहन मरे तो उठकर चल देंगे. उसके बाद तो रोना पीटना मचता है न. और वैसे भी तू रोने लगती है, ऐसे सीन पर. सारे गैंग को कोड वर्ड में समझा दिया गया की आज फ़िल्म बहन के मरने के साथ ही ख़तम कर देनी है. पापा का डर इस कदर बैठा कि मैं इंटरवल के दौरान टॉयलेट भी नही जा पाई. दम साधे सामने देखती रही. जब हॉल का सुरक्ष्कर्मी कही लाइट लाइट मारता तो मैं मुंह नीचे कर लेती. क्या पता पापा कब पीछे देख लें. खैर हीरोंइन की बहन मरी और हम धीरे धीरे निकलने लगे. कुछ शरारती टाइप के लडके चिल्ला पड़े, अरे कहां जा रही है ये टोली, माधुरी की शादी तो देखती जाओ. बाहर पहुंचे तो सिर भारी हो रहा था. लगा जैसे पापा कही पीछे से आ गये तो. घर पहंची तो माँ ने कहा तबियत खराब है क्या. हमने कहा, आज बड़ीi देर तक पड़ती रही ना, सिर में दर्द है. झटपट खाना खाया और बिस्तर में घुस गये. पापा २ घंटे बाद आए. खुश थे ओर उसी फ़िल्म का गाना गा रहे थे. माँ से कहा आज लौटते हुए रीगल से 'हम आपके हैं कौन ' के चार टिकेट ले आया हूँ. कल सब चलेंगे. फ़िल्म देखने.
Monday, July 14, 2008
हमारे नए ब्लोगिये...
जरूर देखियेगा....
Thursday, July 10, 2008
सत्ता में छुपन छुपाई
कांग्रेस ने गुहार लगाई,
सपा ने खाई खूब मलाई,
भाजपा ने खुरचन भी न पाई,
उसने फिर हुंकार लगाई,
हाय मार गयी महंगाई.
Wednesday, July 9, 2008
पापा आए मम्मी के रोल में...
समीर भाई का बचपन...
Saturday, July 5, 2008
मेरा मन
मां कहती है बड़ा अच्छा सा है मेरा मन
जिन्दगी की चिलचिलाती धूप में,
रसभरे अंगूरों का गुच्छा सा है मेरा मन
Friday, July 4, 2008
मेरा मन
मां कहती है बड़ा अच्छा सा है मेरा मन
जिन्दगी की चिलचिलाती धूप में,
रसभरे अंगूरों का गुच्छा सा है मेरा मन
एक आग है
गर आग ये लग जाए तो रहबर को सज़ा हो जाए......
हम आग मोहब्बत की दामन में लपेटे हैं. उनके दिल में जो भड़के तो मज़ा हो जाए.
Thursday, July 3, 2008
एक्सेस डिनाइड
उस हाईटेक बला का नाम है थम्ब डिटेक्टर यानि वो इलेक्ट्रोनिक सुरक्षा प्रणाली जो अंगूठे की छाप लेकर ही दरवाजा खोलती है. इसे थम्ब स्केनर भी कहते है. हमारे मालिको को ये पसंद थी लिहाजा आनन् फानन में सभी के अंगूठों के निशान लिए गये. ये निशान देते हुए दिमाग ने सोचा कि हम पड़े लिखे पत्रकार बिरादरी के लोग अंगूठा लगा रहे हैं या अपने निरक्षर होने का सबूत दे रहे है. खैर अंगूठा लगाया और 'भिगोया, धोया और हो गया' वाली स्टाइल में वेरीफाई हो गया. असल परेशानी तो मशीने लगने के साथ शुरू हुई. ये कमबख्त अंगूठा पराया हो गया. ऑफिस में घुसने से पहले गेट पर लगी मशीन द्रोणाचार्य की तरह अंगूठा मांगती और हम अंगूठा दे दे कर परेशान हो जाते लेल्किन मरी मशीन है कि बार बार कहती एक्सेस डिनाइड. अब बिना अंगूठा जांचे मशीन गेट नही खोलेगी और हम ऑफिस में नही घुस पाएंगे. अब करो किसी और भलेमानुस का इन्तजार जो अपने अंगूठे के दान से हमें अंदर धकेल सके. कभी कभी तो स्थिति बड़ी दयनीय हो जाती जब दूसरे महानुभाव का भी अंगूठा नकार दिया जाता और मशीन किसी मधुबाला कि तरह मनवांछित का अंगूठा लेने से पहले गेट नही खोलेंगी वाली मुद्रा में रूठी रहती, हम भौचक से गेट पर खड़े रहते और सोचते कि यहाँ आदमी से ज्यादा औकात उसके अंगूठे को दे दी गयी है. कभी कभी बाथरूम गये तो वापिस लौटने में डर लगता. मशीन रूठ गयी तो फ़िर कांच बजा बजा कर अन्दर के लोगो से गेट खोलने की गुहार करनी पड़ेगी. राहत की बात ये थी ही कांच की आर पार दिखाई देता है.
ज्यादा परेशानी ये कि मशीन ऑफिस के हर दरवाजे (बाथरूम और कैंटीन को छोड़कर) पर सीना चौडा किए खड़ी थी. किसी भी काम से कही भी जाईये और इस मशीन से लड़िये. कही ये आपका अंगूठा स्वीकार कर लेगी और कही पर बेशर्मी से कह देगी एक्सेस डिनाइड. ये एक्सेस डिनाइड हम पर हावी होता जा रहा था. लगता था जिन्दगी एक्सेस डिनाइड होती जा रही है. रोज नई नई तरकीब से अंगूठा लगते और हार जाते.
दिल को तसल्ली देने वाली बात यही थी कि हमारे मालिक और बड़े अफसर भी इस मशीन से उतने ही, बल्कि हमसे कुछ ज्यादा ही त्रस्त दिखे. मशीन उस वामपंथी मजदूर की तरह थी जो मालिको का हाथ हो या अंगूठा स्वीकार करने में अपनी तौहीन समझती थी. सच बड़ा अजीब, या कहे कि सकून सा लगता था जब बड़े अफसर या मालिक मशीन को अंगूठा दीखते और मशीन उन्हें कहती एक्सेस डिनाइड. मालिक छिड़कर फिर अंगूठा दबाते और इस बार जरा जोर से. लेकिन मशीन मालिक और मजदूर सब बराबर कि मुद्रा में बेखबर रहती. तब मालिको को भी किसी छोटानुभाव की मदद लेनी पड़ती. मदद लेने वाला तो खेर आदत के मुताबिक भूल जाता लेकिन मदद देने वाला कई दिनों तक इस मदद की चर्चा करके लोगो की वाहवाही लूटता. सच अपने ही ऑफिस में बेगाने हो गये है, कोरपोरेट कि दुनिया में अनजाने हो गये हैं. कभी कभी जब मशीन रूठ जाती है तो अंगूठा आड़ा तिरछा और उल्टा लगा कर देखते हैं, खुंदक में आकर कई बार तो पैर का अंगूठा लगाने का विचार भी किया लेकिन शिस्टाचार के चलते ऐसे ना कर सके. कभी कभी जिस दिन मशीन उदार मन से परमिशन ग्रांटेड कहती है तो लगता है कि ऑफिस में घुसने की नही बल्कि जीने की परमिशन मिल गयी.
पिछले दिनों चर्चा हुई कि क्यों न अंगूठे की बजाय सभी के गलो में इलेक्ट्रोनिक कार्ड टांग दिए जाए. कार्ड मशीन से लगाओ और अंदर जाओ. लेकिन कुछ बड़े लोगो को ये सुझाव पसंद नही आया कि वो गले में पट्टा डाले घूमे. वैसे भी गले में कम्पनी के नाम का पट्टा डाले कई लोग बसों और मेट्रो में दिख जाते है. लगता कि घर में घुसने के लिए भी कार्ड लगाते करते होंगे.
फिलहाल मशीन का रूठना और मनाना जारी है, उसकी दया हो तो अन्दर जाते है और उसकी दया न हो तो अंगूठा और मुहं दोनों लटकाए किसी के आने का इन्तजार रहाता है. कोई आए तो ले जाए, हमारी लाख दुआये पाये.
Wednesday, July 2, 2008
क्या कश्मीर हमारा नही
Thursday, June 26, 2008
Wednesday, June 25, 2008
तिरंगा या माल्या...
Tuesday, June 24, 2008
गंगा जी के घाट पे...
नहाने वालो को पुण्य कमाना है तो गंगा जी में एक डुबकी काफ़ी नही, साबुन और उबटन लगा लगा कर नहाएँगे. अंडरवीयर भी गंगा जी में ही धोयेंगे. महिलाये अपने और अपने साथ आए सभी लोगो के कपड़े लत्ते भी यहाँ ही धो लेंगी (जाने घर जाकर पानी मिले या न मिले). बच्चों की पोटी मुत्ती सब गोपनीय रूप से संपन कर लिए जायेंगे गंगा जी के घाट पर. अब एक नज़ गंगा जी पर. अविरल बह रही हैं. हर कि पडी भले ही गन्दी हो गयी हो लेकिन हरिद्वार में और कई घाट हैं जहा अब भी साफ़ सफाई मिल जायेगी. पुन्य कमाने के चक्कर में सब हर कि पैडी पर ही भागते है. अन्य घाटों पर साफ़ सफाई भी है और भीड़ भी कम है. भिखारियो कि तादात भी कम होगी. कुछ आश्रमों ने भी गंगा जी को अपने अपने घाटों में बाँट लिया है. यहाँ सीढिया भी मिलेंगी और उनसे जुड़ी लोहे की चेन भी. पास ही पीपल का पेड़ और उसके नीच शिवलिंग की पूजा करती कई बूढी महिलायें. यहाँ आपको बाजारीकरण नही मिलेगा. शोर शराबा नही मिलेगा. मिलेगी तो केवल गंगा जी की साफ़ और अविरल धार. पुन्य कमाना है तो हर की पैडी पर जाइये. अगर आप भी गंगा जी जा रहे है तो मेरी एक ही अपील है कि नहाइए तो खूब लेकिन गंगा जी को गन्दा मत कीजिये. क्यूकि करोडो लोगो कि श्रद्धा का केन्द्र है गंगा जी के घाट पर.
Saturday, June 21, 2008
हाय री महंगाई निकल भागी
Friday, June 20, 2008
ये हाल अखबारे गुलिस्ता का...अब खबरे चमन का क्या होगा...
कभी कभी सोचती हू कि ये जल्दबाजी आख़िर किसलिए. अभी तो बहुत कुछ सीखना है. पत्रकारिता केवल डिप्लोमा या डिग्री कर लेने से आने वाली विधा नही है. ये काम के आपका पूरा समय और समर्पण मांगती है. आप एक महीना में दस अखबारों में काम करके पत्रकार नही बन सकते. एक स्थान पर समय और पूरा दिमाग लगाना होगा. घटनाओं और समाज पर अपनी एक राय विकसित करनी होगी. इसके लिए डिप्लोमा नही वरन सामायिक दृष्टि चाहिए. पर ये नए खिलाडी नही जान पाते या फिर जानना नही चाहते. इन्हे तो जल्द से जल्द बड़ा पत्रकार बनना है जो किसी बड़े दंगे या चुनावों की लाइव रिपोर्टिंग कर रहा हो. विज़न के बिना, केवल अपना रिज्यूमे बढाये जाने से पत्रकारिता नही आती. लेकिन कोई नही समझ पाता. ख़ुद मेरे अखबार में कई ऐसे ट्रेनी आए जो आने के बाद एक हफ्ता भी नही टिके, जागरण या भास्कर में सब एडिटर बन गये, वहा भी महीने भर से ज्यादा नही टिके और किसी और अखबार में ज्यादा पैसे पर काम करने लगे. ज्यादा पैसा और रिज्यूमे में ज्यादा संस्थान शगल सा बन गया है. इसमे केवल पत्रकारों का ही दोष नही, एक दूसरे के एम्प्लोई खींचने और तोड़ने की परंपरा मीडिया में भी चल पडी है.
आज वो नजारा मैं देख रही हू. यहाँ लड़के आपस में बतिया रहे है...अरे दिवाकर की तो एन डी टीवी में लग गयी. ट्रेनी और कवर करने भी जा रहा है. और प्रिया तो अपने लोहिया जी की पहचान के चलते भास्कर में चली गयी. बस मेरा जरा यहाँ कुछ हो जाए. फिर मामाजी ने कहा है कि अगले महीने जी न्यूज़ में करवा देंगे. उनका फ्रेंड वहा है न..यानि अब ये कह सकते हैं कि 'ये हाल है अखबारे गुलिस्ता का...अब खबरे चमन का क्या होगा...
Thursday, June 19, 2008
ये हाल अखबारे गुलिस्ता का...अब खबरे चमन का क्या होगा..
कभी कभी सोचती हू कि ये जल्दबाजी आख़िर किसलिए. अभी तो बहुत कुछ सीखना है. पत्रकारिता केवल डिप्लोमा या डिग्री कर लेने से आने वाली विधा नही है. ये काम के आपका पूरा समय और समर्पण मांगती है. आप एक महीना में दस अखबारों में काम करके पत्रकार नही बन सकते. एक स्थान पर समय और पूरा दिमाग लगाना होगा. घटनाओं और समाज पर अपनी एक राय विकसित करनी होगी. इसके लिए डिप्लोमा नही वरन सामायिक दृष्टि चाहिए. पर ये नए खिलाडी नही जान पाते या फिर जानना नही चाहते. इन्हे तो जल्द से जल्द बड़ा पत्रकार बनना है जो किसी बड़े दंगे या चुनावों की लाइव रिपोर्टिंग कर रहा हो. विज़न के बिना, केवल अपना रिज्यूमे बढाये जाने से पत्रकारिता नही आती. लेकिन कोई नही समझ पाता. ख़ुद मेरे अखबार में कई ऐसे ट्रेनी आए जो आने के बाद एक हफ्ता भी नही टिके, जागरण या भास्कर में सब एडिटर बन गये, वहा भी महीने भर से ज्यादा नही टिके और किसी और अखबार में ज्यादा पैसे पर काम करने लगे. ज्यादा पैसा और रिज्यूमे में ज्यादा संस्थान शगल सा बन गया है. इसमे केवल पत्रकारों का ही दोष नही, एक दूसरे के एम्प्लोई खींचने और तोड़ने की परंपरा मीडिया में भी चल पडी है.
आज वो नजारा मैं देख रही हू. यहाँ लड़के आपस में बतिया रहे है...अरे दिवाकर की तो एन डी टीवी में लग गयी. ट्रेनी और कवर करने भी जा रहा है. और प्रिया तो अपने लोहिया जी की पहचान के चलते भास्कर में चली गयी. बस मेरा जरा यहाँ कुछ हो जाए. फिर मामाजी ने कहा है कि अगले महीने जी न्यूज़ में करवा देंगे. उनका फ्रेंड वहा है न..यानि अब ये कह सकते हैं कि 'ये हाल है अखबारे गुलिस्ता का...अब खबरे चमन का क्या होगा...
Tuesday, June 17, 2008
हिमालय की यात्रा...
अमरनाथ पर जा रहे हैं क्या...
बाकी बाद में...